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Lok Aur Shastra : Anwaya Aur Samanwaya
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
मुख्य सम्पादक : दयानिधि मिश्र, सम्पादक : उदयन मिश्र, प्रकाश उदय, नर्मदा प्रसाद उपाध्याय
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
मुख्य सम्पादक : दयानिधि मिश्र, सम्पादक : उदयन मिश्र, प्रकाश उदय, नर्मदा प्रसाद उपाध्याय
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9789350729960
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
248
प्रत्येक समाज में स्तर भेद होते हैं और वैचारिक अभिव्यक्ति के रूपों की बहुलता होती है। इस प्रकार की विविधता संस्कृति को समृद्ध करती है। जैवविविधता की ही तरह वैचारिक तथा ज्ञान परम्पराओं की विविधता भी हमें सम्पन्न बनाती है। इस दृष्टि से लोक और शास्त्र की हमारी विरासत अनोखी है। ‘लोक’ पूरे समाज और उसके व्यवहार की भाषा है और ‘शास्त्र’ एक प्रकार से उस भाषा लिए व्याकरण की भूमिका में होता है। दोनों का अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर होता है। आज विचार और चिन्तन के क्षेत्र में ‘लोक’ और ‘शास्त्र’ दोनों को एक-दूसरे पर प्रतिपक्ष के रूप में रखकर समझने की एक भ्रामक प्रथा-सी चल पड़ी है। ऐसे में, यदि साहित्य और समाज को, लोक और शास्त्र के साझे, अन्तगुंफित प्रदेशों की तरह इंगित किया जाता है तो कई तरह के भ्रम-विभ्रम टूटते हैं। तब लोक और शास्त्र दोनों को हम एक-दूसरे के पूरक, न कि प्रतियोगी के रूप में पाते हैं। इससे भारतीय समाज की अपनी विशिष्टता और संश्लिष्टता की एक सहज समझ बनती है। यह तभी सम्भव है, जब लोक और शास्त्र को अनुभव के स्तर पर जिया जाये। यह अनुभव लोक की उपलब्धियों जैसे लोकवार्ता, लोककाव्य, लोककला ही नहीं बल्कि शास्त्र के निहितार्थी तक पहुँच कर ही हो सकता है।
पुस्तक में शामिल आलेखों का प्रतिपाद्य वैसे केन्द्रीय विषय के भिन्न-भिन्न आयामों को स्पर्श करता है। इनमें चर्चित विषय है लोक और शास्त्र के स्वरूप और उनकी व्याप्ति, उनके सम्बन्ध – परस्पर, एक-दूसरे में उनकी स्थिति और गति; साहित्य और कला के अलग-अलग सन्दर्भों में, अलग-अलग रूपों में उनकी अभिव्यक्ति के साथ ही भोजपुरी, व्रज, मैथिली, मराठी आदि विभिन्न भाषाओं के सन्दर्भ में उनके वैशिष्ट्य के अलावा उनमें निहित स्त्री और पर्यावरण सम्बन्धी चिन्ता और चेतना । निश्चय ही यह सब किसी भी तरह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता परन्तु इनमें हमारी सोच विचार की दिशा अवश्य प्रकट होती है।
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Description
प्रत्येक समाज में स्तर भेद होते हैं और वैचारिक अभिव्यक्ति के रूपों की बहुलता होती है। इस प्रकार की विविधता संस्कृति को समृद्ध करती है। जैवविविधता की ही तरह वैचारिक तथा ज्ञान परम्पराओं की विविधता भी हमें सम्पन्न बनाती है। इस दृष्टि से लोक और शास्त्र की हमारी विरासत अनोखी है। ‘लोक’ पूरे समाज और उसके व्यवहार की भाषा है और ‘शास्त्र’ एक प्रकार से उस भाषा लिए व्याकरण की भूमिका में होता है। दोनों का अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर होता है। आज विचार और चिन्तन के क्षेत्र में ‘लोक’ और ‘शास्त्र’ दोनों को एक-दूसरे पर प्रतिपक्ष के रूप में रखकर समझने की एक भ्रामक प्रथा-सी चल पड़ी है। ऐसे में, यदि साहित्य और समाज को, लोक और शास्त्र के साझे, अन्तगुंफित प्रदेशों की तरह इंगित किया जाता है तो कई तरह के भ्रम-विभ्रम टूटते हैं। तब लोक और शास्त्र दोनों को हम एक-दूसरे के पूरक, न कि प्रतियोगी के रूप में पाते हैं। इससे भारतीय समाज की अपनी विशिष्टता और संश्लिष्टता की एक सहज समझ बनती है। यह तभी सम्भव है, जब लोक और शास्त्र को अनुभव के स्तर पर जिया जाये। यह अनुभव लोक की उपलब्धियों जैसे लोकवार्ता, लोककाव्य, लोककला ही नहीं बल्कि शास्त्र के निहितार्थी तक पहुँच कर ही हो सकता है।
पुस्तक में शामिल आलेखों का प्रतिपाद्य वैसे केन्द्रीय विषय के भिन्न-भिन्न आयामों को स्पर्श करता है। इनमें चर्चित विषय है लोक और शास्त्र के स्वरूप और उनकी व्याप्ति, उनके सम्बन्ध – परस्पर, एक-दूसरे में उनकी स्थिति और गति; साहित्य और कला के अलग-अलग सन्दर्भों में, अलग-अलग रूपों में उनकी अभिव्यक्ति के साथ ही भोजपुरी, व्रज, मैथिली, मराठी आदि विभिन्न भाषाओं के सन्दर्भ में उनके वैशिष्ट्य के अलावा उनमें निहित स्त्री और पर्यावरण सम्बन्धी चिन्ता और चेतना । निश्चय ही यह सब किसी भी तरह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता परन्तु इनमें हमारी सोच विचार की दिशा अवश्य प्रकट होती है।
About Author
पं. विद्यानिवास मिश्र (1926-2005)
हिन्दी और संस्कृत के अग्रणी विद्वान, प्रख्यात निबंधकार, भाषाविद् और चिन्तक थे। आपका जन्म गोरखपुर जिले के 'पकड़डीहा ' ग्राम में हुआ। प्रारम्भ में सरकारी पदों पर रहे। तत्पश्चात् गोरखपुर विश्वविद्यालय, आगरा विश्वविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ और फिर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, आचार्य, निदेशक, अतिथि आचार्य और कुलपति के पदों को सुशोभित किया। कैलिफोर्निया और वाशिंगटन विश्वविद्यालयों में अतिथि प्रोफेसर एवं 'नवभारत टाइम्स' के प्रधान सम्पादक भी रहे ।
अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए आप भारतीय ज्ञानपीठ के 'मूर्तिदेवी पुरस्कार', के.के. बिड़ला फाउंडेशन के 'शंकर सम्मान', उत्तर प्रदेश संस्कृत अकादमी के सर्वोच्च 'विश्व भारती सम्मान', भारत सरकार के 'पद्मश्री' और 'पद्मभूषण', 'भारत भारती सम्मान', 'महाराष्ट्र भारती सम्मान’, ‘हेडगेवार प्रज्ञा पुरस्कार', साहित्य अकादमी के सर्वोच्च सम्मान 'महत्तर सदस्यता', हिन्दी साहित्य सम्मेलन से 'मंगलाप्रसाद पारितोषिक' तथा उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी से 'रत्न सदस्यता सम्मान' से सम्मानित किये गये और राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे ।
बड़ी संख्या में प्रकाशित आपकी पुस्तकों में व्यक्ति-व्यंजक निबन्ध संग्रह, आलोचनात्मक तथा विवेचनात्मक कृतियाँ, भाषा-चिन्तन के क्षेत्र में शोधग्रन्थ और कविता संकलन सम्मिलित हैं ।
दयानिधि मिश्र
जन्म : 01 अक्टूबर, 1948, गोरखपुर।
विभिन्न महाविद्यालयों में 8 वर्षों का अध्यापन अनुभव। पुलिस उपमहानिरीक्षक पद से अवकाश प्राप्त। सचिव, विद्याश्री न्यास। उपाध्यक्ष, भारत धर्म महामण्डल। न्यासी, वेणी माधव ट्रस्ट विद्यात्री न्यास के तत्वावधान में राष्ट्रीय संगोष्ठियों, व्याख्यानों, सम्मान समारोहों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का नियमित आयोजन। पं. विद्यानिवास मिश्र के साहित्य के प्रकाशन और प्रचार-प्रसार में संलग्न ।
सम्पादन: अक्षर पुरुष; भाषा, संस्कृति और लोक गंगा तट से भूमध्य सागर तक: विद्यानिवास मिश्र
संचयिता । सम्प्रति: विद्यानिवास मिश्र रचनावली (21 खण्डों में) का सम्पादन वाराणसी में निवास ।
T.: 09415776312
उदयन मिश्र
जन्म : 15 दिसम्बर, 1971, गोरखपुर।।
हरिश्चन्द्र पी.जी. कॉलेज में 24.07.1995 से 19.01.2009 तक मनोविज्ञान के रीडर के रूप में अध्यापन ।
सम्प्रति: प्राचार्य, श्री बलदेव पी.जी. कॉलेज, बड़ागांव, वाराणसी।
प्रबन्ध सम्पादक, 'चिकितुषी, त्रैमासिक शोध-पत्रिका शोध-पत्रिका 'इण्डियन जर्नल ऑफ सोशल साइंस एण्ड सोसाइटी' एवं 'इण्टरनेशनल जर्नल ऑफ सोशल साइंस एण्ड सोसाइटी के सम्पादन से सम्बद्ध । अन्तरराष्ट्रीय युवा प्रभारी, विश्व भोजपुरी सम्मेलन आजीवन सदस्य, भारतीय विज्ञान कांग्रेस पचास से अधिक राष्ट्रीय संगोष्ठियों, कार्यशालाओं का संयोजन ओम हिन्दू मीडिया हॉलैंड द्वारा आयोजित सिम्पोजियम में कॉन्सेप्ट ऑफ मेण्टल हेल्थ इन भगवद्गीता' पर व्याख्यान 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ 1 वैसिक एजुकेशन' (3 खण्डों में) के अलावा एक दर्जन से अधिक पुस्तकों का लेखन-सम्पादन मॉरिशस सरकार एवं इन्दिरा गाँधी सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा 'कर्मयोगी' सम्मान, 2009 एवं संकल्प संस्थान द्वारा 'शिक्षारत्न' से सम्मानित ।
सम्पर्क : 68, अभिलाषा कॉलोनी, यू. पी. मोटर्स के पीछे, नदेसर, वाराणसी।
मो. 09415225452
प्रकाश उदय
जन्म : 20 अगस्त, 1964, भोजपुर ।
हिन्दी विभाग, श्री वलदेव पी.जी. कॉलेज, बड़ागाँव, वाराणसी में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत । हिन्दी भोजपुरी में कविता-कहानी-समीक्षा के क्षेत्र में सक्रिय वाचिक कविता भोजपुरी, हिन्दी की जनपदीय कविता एवं विद्यानिवास मिश्र संचयिता का सह-सम्पादन। भोजपुरी पत्रिका 'समकालीन भोजपुरी साहित्य' और हिन्दी पत्रिका 'प्रसंग' के सम्पादन से सम्बद्ध ।
सम्पर्क : शिव 5/41, आर-2, लक्ष्मणपुर, शिवपुर ।
T.: 09415290286
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