SaleHardback
Uttal Hawa
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
तसलीमा नसरीन, अनुवाद - सुशील गुप्ता
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
तसलीमा नसरीन, अनुवाद - सुशील गुप्ता
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹500 ₹350
Save: 30%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9789352295777
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
496
सन् 1999 में प्रकाशित, तसलीमा तसरीन की आत्मकथा का पहला खंड, ‘आमार मेयेर बेला’ ने बंगाली पाठकों और उसका हिंदी अनुवाद, ‘मेरे बचपन के दिन’ ने हिंदी पाठकों का मन उत्ताल कर दिया था। आज यह पुस्तक अविस्मरणीय आत्मकथा के रूप में प्रतिष्ठित! ‘उत्ताल हवा’ उस आत्मकथा का दूसरा खंड है। इस खंड में तसलीमा के 16 से 26 की उम्र तक की कहानी समेटी गई है। लेखिका ने अपनी कथा में असहनीय स्पष्टवादिता के साथ गहरे ममत्वबोध का एक हैरतंगेज संगम प्रस्तुत किया है। लेकिन अब तसलीमा और बड़ी… और विराट होती जा रही है; अपनी चारों तरफ को जानने-परखनेवाली नज़र और ज़्यादा तीखी होती गई है; तजुर्बा की परिधि और अधिक विस्तृत होती गई है। इसलिए, इस खंड में तसलीमा के असली तसलीमा बनने की गोपन कथा, पाठकों के सामने, काफी हद तक उजागर हो उठती है। एक अदद पिछड़ा हुआ समाज और दकियानूसी परिवार में पल-बढ़कर बड़ी होती हुई लड़की, कैसे भयंकर कशमकश झेलती हुई, धीरे-धीरे प्राचीनता के बंधन तोड़कर, असाधारण विश्वसनीयता के साथ खिल उठी है। उनका प्यार, प्यार के सुख-दुःख, खुशी-वेदना, रिश्तों के उठते-गिरते, ऊँचे-नीचे झूमते अनिर्णीत झूले में झूलता मन और अंत में एक उत्तरण ! पाठकों के लिए एक मर्मस्पर्शी घना विषाद भरा तजुर्बा ! शुरू से लेकर अंत तक काव्य-सुषमा से मंडित गद्य । गद्य के रुल-मिलकर एकाएक कविता ! पाठकों के मन में भी ‘दुकूल बहता हुआ’-
Be the first to review “Uttal Hawa” Cancel reply
Description
सन् 1999 में प्रकाशित, तसलीमा तसरीन की आत्मकथा का पहला खंड, ‘आमार मेयेर बेला’ ने बंगाली पाठकों और उसका हिंदी अनुवाद, ‘मेरे बचपन के दिन’ ने हिंदी पाठकों का मन उत्ताल कर दिया था। आज यह पुस्तक अविस्मरणीय आत्मकथा के रूप में प्रतिष्ठित! ‘उत्ताल हवा’ उस आत्मकथा का दूसरा खंड है। इस खंड में तसलीमा के 16 से 26 की उम्र तक की कहानी समेटी गई है। लेखिका ने अपनी कथा में असहनीय स्पष्टवादिता के साथ गहरे ममत्वबोध का एक हैरतंगेज संगम प्रस्तुत किया है। लेकिन अब तसलीमा और बड़ी… और विराट होती जा रही है; अपनी चारों तरफ को जानने-परखनेवाली नज़र और ज़्यादा तीखी होती गई है; तजुर्बा की परिधि और अधिक विस्तृत होती गई है। इसलिए, इस खंड में तसलीमा के असली तसलीमा बनने की गोपन कथा, पाठकों के सामने, काफी हद तक उजागर हो उठती है। एक अदद पिछड़ा हुआ समाज और दकियानूसी परिवार में पल-बढ़कर बड़ी होती हुई लड़की, कैसे भयंकर कशमकश झेलती हुई, धीरे-धीरे प्राचीनता के बंधन तोड़कर, असाधारण विश्वसनीयता के साथ खिल उठी है। उनका प्यार, प्यार के सुख-दुःख, खुशी-वेदना, रिश्तों के उठते-गिरते, ऊँचे-नीचे झूमते अनिर्णीत झूले में झूलता मन और अंत में एक उत्तरण ! पाठकों के लिए एक मर्मस्पर्शी घना विषाद भरा तजुर्बा ! शुरू से लेकर अंत तक काव्य-सुषमा से मंडित गद्य । गद्य के रुल-मिलकर एकाएक कविता ! पाठकों के मन में भी ‘दुकूल बहता हुआ’-
About Author
तसलीमा नसरीन का जन्म 25 अगस्त 1962 में बांग्लादेश के मैमनसिंह में। मैमनसिंह मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. की डिग्री। 1986 से 1998 तक सरकारी अस्पताल में नौकरी। 'नौकरी में रहीं, तो लिखना वगैरह छोड़ना होगा'- सरकार से यह निदेश पाकर, उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। लेखन स्कूल जीवन में ही शुरू हो चुका था। कुछेक साल 'कविता' पत्रिका का संपादन ! सन् 1986 में पहले काव्य-संग्रह का प्रकाशन! उसके बाद गद्य लेखन की शुरुआत! अपने लेखन के जरिये असाधारण लोकप्रियता अर्जित की, साथ ही तर्कों के घेरे में भी घिरी रहीं। औरत की आज़ादी में धर्म और पितृतंत्र सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़े हो जाते हैं-इस हक़ीक़त को स्पष्ट करते हुए, धर्म कैसे और किस क़दर औरत की अवमानना करता है, इसका शब्द-शब्द विवरण दिया। इस वजह से वे सिर्फ कट्टरपंथी धर्मवादियों के हमलों की ही शिकार नहीं हुईं, समूची राष्ट्र-व्यवस्था और पुरुष - प्रधान समाज ने उनके खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। धर्म के कट्टर ठेकेदारों ने उनकी फांसी के लिए समूचे देश भर में आ लन छेड़ दिया, यहाँ तक कि उनके सिर की भी कीमत घोषित कर दी गई। इस वजह से, वे अपने प्रिय स्वदेश से विताड़ित होकर, पिछले आठ सालों से यूरोप में निर्वासन झेल रही हैं। उनके देश में अभी भी उनके खिलाफ फतवा जारी है और साथ ही उनके सिर पर झूल रहे हैं, वाक-स्वाधीनता-विरोधी लोगों द्वारा दायर किए गए अनगिनत मुकदमे। मानवता के समर्थन में लिखा गया, उनका तथ्य-आधारित उपन्यास, 'लज्जा' और उनके बचपन की यादों का संकलन, 'मेरे बचपन के दिन'- इन दोनों पुस्तकों को बांग्लादेश सरकार ने निषिद्ध घोषित कर दिया।
तसलीमा को स्वीडन का कूट टूखोलस्की पुरस्कार, अमेरिका का 'फेमिनिस्ट ऑफ द ईयर', 1994, एडिट द नानत पुरस्कार, बेल्जियम के गेन्ट विश्वविद्यालय की तरफ से 'डॉक्टरेट' की डिग्री से सम्मानित, स्वीडन के उपासला विश्वविद्यालय से मनिसेमियन पुरस्कार, इंटरनेशनल ह्यूमैनिस्ट एंड एथिकल यूनियन से डिस्टिंग्विस्ट ह्युमैनिस्ट पुरस्कार । वे कनाडियन, स्वीडिश, इंगलिश पेन क्लब में 'निर्वाचित कलाम' 'मेरे बचपन के दिन' के लिए दो-दो बार आनंद पुरस्कार से सम्मानित !कविता, उपन्यास, निबंध और आत्मकथा समेत उनकी 23 पुस्तकें प्रकाशित अंग्रेजी, फ्रांसीसी, स्पेनिश समेत दुनिया के 30 विभिन्न भाषाओं में उनकी पुस्तकों का अनुवाद उन्होंने मानवाधिकार, नारी अधिकार, ख्यालों की आज़ादी और धार्मिक संत्रास आदि विषयों पर उन्होंने संयुक्त राज्य के ऑक्सफोर्ड, नॉटिंगहम, एडिनबरा, संयुक्त राष्ट्र के हार्वर्ड, मिशिगन, फ्रांस सरबॉन, आयरलैंड के ट्रिनिटी कॉलेज, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ डब्लिन, ऑस्ट्रिया के ग्राज, नॉर्वे ट्रेन्डहेड्म, कनाडा के कॉनकॉर्डिया, किवेक, टोरेंटो, दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग समेत विभिन्न विश्वविद्यालयों में वक्तव्य! इसके अलावा भी सरकारी आमंत्रण पर और विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं, नारीवादी और मानवाधिकार संगठनों के आमंत्रण पर उन्होंने फिनलैंड, आइसलैंड, डेनमार्क, हॉलैंड, स्विट्ज़रलैंड, इटली, स्पेन, मेक्सिको समेत असंख्य देशों में अपने विश्वास और आदर्श की मान्यताओं को उजागर किया है।
सुशील गुप्ता-
जब दुनिया ने इस दुनिया में बसी, मेरी ही छोटी-सी दुनिया ने उस छोटी-सी दुनिया में शामिल, अपनों का मुखौटा पहने, खुदगर्ज रिश्तों ने मेरे समूचे वजूद को झुठला दिया और मेरे सच को जुर्म साबित करते हुए, मेरे जीने के तमाम दरवाजे बंद कर दिए, तो एकमात्र 'अनुवाद' ने 'अनुकृति' बनकर मेरे कंधे पर हाथ रखकर, मुझे आश्वस्त किया-मैं हूँ न ! उस दिन से अनुवाद, मेरी हर जंग, मेरे हर दर्द, मेरे हर अकेलेपन में मेरे साथ है। मेरी उँगली थामे, औरों के सच से मेरी दोस्ती कराता चल रहा है। अनुवाद ने मुझे जो दिया है, उसने मेरे तमाम तथाकथित अपनों के मुकर जाने की भरपाई कर दी, बल्कि इससे आगे भी बहुत कुछ देकर, मुझे पोर पोर भर दिया। इसलिए, अनुवाद मेरे लिए साँस लेने का खुला दरवाजा है, मेरे जीने की राह है, मेरी जिंदगी है! अब तक लगभग 40 उपन्यासों का अनुवाद ! 3 काव्य-संग्रह कई-कई पुरस्कारों सहित, हिंदी पाठकों का अमित प्यार का पुरस्कार!
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Uttal Hawa” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.