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Breaking News

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
पुण्य प्रसून वाजपेयी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
पुण्य प्रसून वाजपेयी
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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SKU 9788181435303 Category
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144

ब्रेकिंग न्यूज़ –
तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखिन की देखी-

कबीर ने जब यह दोहा कहा या लिखा होगा, तो उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन टीवी पत्रकारिता उनके इस दोहे को भविष्यवाणी की तरह सिद्ध कर देगी। टीवी पत्रकारिता ने दस से भी कम वर्षों में जिस तरह से समाज में अपने आपको स्थापित कर लिया है, सचमुच आश्चर्यजनक है। यह यात्रा शुरू हुई थी ‘आज तक’ नामक 20 मिनट के एक छोटे से कार्यक्रम से, जिसकी सफलता आज समाचार चैनलों की होड़ में बदल चुकी है। आज तक, एनडीटीवी इंडिया, ज़ी न्यूज, इंडिया टीवी, चैनल सेवन… ये महज कुछ समाचार चैनलों के नाम हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले कुछ वर्षों में कम से कम दर्जन भर समाचार चैनल हिन्दी में ही शुरू हो जायेंगे। महज पाँच सालों के भीतर ही समाचार चैनलों की भूमिका बढ़ी है। जिस तरह से उसने अपनी उपयोगिता साबित की है, उससे यह साबित हुआ है कि यह एक स्थायी माध्यम के रूप में समाज में बना रहने वाला है।
जिस तेज़ी से समाज में समाचार चैनलों की जगह बनी है, उसी तरह से उसको लेकर बहसें भी तेज़ हुई हैं। चाहे स्टिंग ऑपरेशन का मामला हो या नैतिकता का या अपराध और सेक्स से जुड़े पहलू हों, टीवी को लेकर इस तरह की बहसें भी बढ़ी हैं। स्वयं पत्रकारिता के पेशे को लेकर भी तरह-तरह की बहसें चल रही हैं। प्रिंट पत्रकारिता का दौर मिशन पत्रकारिता का दौर था जिसे निश्चित तौर पर टीवी ने एक प्रोफ़ेशन में बदल दिया है। अचानक पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े पहलुओं की चर्चा होने लगी है। देश भर में पत्रकारिता प्रशिक्षण को लेकर जागरूकता बढ़ी है।

‘ब्रेकिंग न्यूज़’ पुस्तक चर्चित टीवी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी की एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें टीवी पत्रकारिता से जुड़े विभिन्न बहसों की चर्चा तो है ही, साथ ही, पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े पहलुओं को समझने-समझाने की साफ़ और ईमानदार कोशिश इसमें दिखाई देती है। अगर आप यह जानना चाहते हैं कि एक आदर्श टीवी रिपोर्टर के क्या गुण होने चाहिए, एंकरिंग करते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, टीवी के लिए समाचार लिखते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। किन पहलुओं पर ज़ोर देना चाहिए, 24 घंटे चलने वाला समाचार चैनल किस रूप में काम करते हैं, टीवी पर प्रसारित होने वाले समाचारों के लिए उत्तरदायी कौन होता है, यह माध्यम प्रिंट पत्रकारिता से कितना भिन्न होता है या उसका पूरक होता है- इस तरह की तमाम जिज्ञासाओं को इस पुस्तक में शान्त करने की कोशिश की गयी है। चूँकि यह पुस्तक एक ऐसे टीवी पत्रकार द्वारा तैयार की गयी है, जो इस माध्यम से एकदम आरम्भ से ही जुड़े रहे हैं, जिन्होंने उसे जवान होते देखा है और उसके भविष्य को जानने-समझने की कोशिश कर रहे हैं। इसे एक ‘इनसाइडर’ की ‘इनसाइड स्टोरी’ की तरह भी पढ़ा जा सकता है।

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Description

ब्रेकिंग न्यूज़ –
तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखिन की देखी-

कबीर ने जब यह दोहा कहा या लिखा होगा, तो उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन टीवी पत्रकारिता उनके इस दोहे को भविष्यवाणी की तरह सिद्ध कर देगी। टीवी पत्रकारिता ने दस से भी कम वर्षों में जिस तरह से समाज में अपने आपको स्थापित कर लिया है, सचमुच आश्चर्यजनक है। यह यात्रा शुरू हुई थी ‘आज तक’ नामक 20 मिनट के एक छोटे से कार्यक्रम से, जिसकी सफलता आज समाचार चैनलों की होड़ में बदल चुकी है। आज तक, एनडीटीवी इंडिया, ज़ी न्यूज, इंडिया टीवी, चैनल सेवन… ये महज कुछ समाचार चैनलों के नाम हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले कुछ वर्षों में कम से कम दर्जन भर समाचार चैनल हिन्दी में ही शुरू हो जायेंगे। महज पाँच सालों के भीतर ही समाचार चैनलों की भूमिका बढ़ी है। जिस तरह से उसने अपनी उपयोगिता साबित की है, उससे यह साबित हुआ है कि यह एक स्थायी माध्यम के रूप में समाज में बना रहने वाला है।
जिस तेज़ी से समाज में समाचार चैनलों की जगह बनी है, उसी तरह से उसको लेकर बहसें भी तेज़ हुई हैं। चाहे स्टिंग ऑपरेशन का मामला हो या नैतिकता का या अपराध और सेक्स से जुड़े पहलू हों, टीवी को लेकर इस तरह की बहसें भी बढ़ी हैं। स्वयं पत्रकारिता के पेशे को लेकर भी तरह-तरह की बहसें चल रही हैं। प्रिंट पत्रकारिता का दौर मिशन पत्रकारिता का दौर था जिसे निश्चित तौर पर टीवी ने एक प्रोफ़ेशन में बदल दिया है। अचानक पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े पहलुओं की चर्चा होने लगी है। देश भर में पत्रकारिता प्रशिक्षण को लेकर जागरूकता बढ़ी है।

‘ब्रेकिंग न्यूज़’ पुस्तक चर्चित टीवी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी की एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें टीवी पत्रकारिता से जुड़े विभिन्न बहसों की चर्चा तो है ही, साथ ही, पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े पहलुओं को समझने-समझाने की साफ़ और ईमानदार कोशिश इसमें दिखाई देती है। अगर आप यह जानना चाहते हैं कि एक आदर्श टीवी रिपोर्टर के क्या गुण होने चाहिए, एंकरिंग करते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, टीवी के लिए समाचार लिखते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। किन पहलुओं पर ज़ोर देना चाहिए, 24 घंटे चलने वाला समाचार चैनल किस रूप में काम करते हैं, टीवी पर प्रसारित होने वाले समाचारों के लिए उत्तरदायी कौन होता है, यह माध्यम प्रिंट पत्रकारिता से कितना भिन्न होता है या उसका पूरक होता है- इस तरह की तमाम जिज्ञासाओं को इस पुस्तक में शान्त करने की कोशिश की गयी है। चूँकि यह पुस्तक एक ऐसे टीवी पत्रकार द्वारा तैयार की गयी है, जो इस माध्यम से एकदम आरम्भ से ही जुड़े रहे हैं, जिन्होंने उसे जवान होते देखा है और उसके भविष्य को जानने-समझने की कोशिश कर रहे हैं। इसे एक ‘इनसाइडर’ की ‘इनसाइड स्टोरी’ की तरह भी पढ़ा जा सकता है।

About Author

पुण्य प्रसून वाजपेयी – पिछले 17 वर्षों से बतौर पत्रकार देश की सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों को टटोलने की प्रक्रिया में नागपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक 'लोकमत समाचार' से 1988 में पत्रकार के तौर पर कैरियर की शुरुआत। इस दौर में संडे-आब्जर्वर, संडे मेल, दिनमान और जनसत्ता में लगातार लेखन। साथ ही, राष्ट्रीय हिन्दी दैनिकों में लेखन। इसी दौर में 1995 में 'आदिवासियों पर टाडा' नामक किताब प्रकाशित। 1996 में टी.वी. पत्रकारिता से 'आजतक' के ज़रिये जुड़ना। 2003 में एनडीटीवी के हिन्दी चैनल 'एनडीटीवी इंडिया' की लाँचिंग टीम में बतौर एंकर/विशेष संवाददाता जुड़ना इस दौरान पहली बार स्टूडियों से बाहर एंकरिंग सीधे जनता के बीच जनता के साथ इंडिया यात्रा कार्यक्रम के माध्यम से किसी विशेष मुद्दे के अलग-अलग पहुलओं को पकड़ने का प्रयास। साथ ही, चुनाव के दौरान वोट यात्रा के जरिये चुनावी ज़मीन को दिखाने अनूठा प्रयास। टी.वी. पर पहली बार पी.ओ.के. (पाकिस्तान कब्ज़े वाले कश्मीर) की रिपोर्टिंग साथ ही आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तोएबा के चीफ़ मोहम्मद हाफिज़ सईद का इंटरव्यू कश्मीर से जुड़े तमाम पहलुओं को टी.वी. रिपोर्ट के ज़रिये उभारने का प्रयास इंटरव्यू आधारित कार्यक्रम 'कश्मकश के ज़रिये राजनेताओं के छुपे पहलुओं को उभारने की अनोखी पहल, टी.वी. के ज़रिये। बतौर एंकर संसद पर हमले के दौरान 'आजतक' पर बिना ब्रेक के लगातार साढ़े चार घंटे की एंकरिंग। 2004 में पुस्तक 'संसद: 'लोकतन्त्र या नज़रों का धोखा' प्रकाशित।

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