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Jitna Tumhara Sach Hai
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अज्ञेय, सम्पादन : यतीन्द्र मिश्र
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
अज्ञेय, सम्पादन : यतीन्द्र मिश्र
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹100 ₹99
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ISBN:
SKU
9789387155336
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
168
हिन्दी-संस्कृति के अनन्य गौरव अज्ञय की जन्मशताब्दी के अवसर पर यह देखना प्रीतिकर है कि अपने कालजयी रचना-कर्म से इस कवि ने अपनी उपस्थिति को न सिर्फ शीर्षस्थानीय बनाया है बल्कि अपने शताब्दी वर्ष में भी उतने ही प्रासंगिक और विचारोत्तेजक बने हुए हैं। अज्ञेय हिन्दी में आधुनिकता, नयी कविता एवं प्रयोगवाद के स्थापितकर्त्ता रहे हैं। वे अकेले उन बिरले लोगों में रहे हैं, जिन्होंने नयी कविता एवं प्रयोगवाद की स्थापना तथा उसके अवगाहन में हिन्दी के तत्कालीन वर्तमान स्वरूप को एकबारगी बदल डाला है।
अज्ञेय के पहले कविता-संग्रह भग्नदूत 1933 से लेकर अन्तिम कविता-संग्रह ऐसा कोई घर आपने देखा है 1986 तक उनके अन्तश्चेतना के ढेरों सोपान तक उनके जीवन के तमाम सारे किरदारों को आपस में जुड़ते हुए जीवनानुभवों की आन्तरिक लय पर अन्तःसलिल देखा जा सकता है। उनकी कविताओं की पाँच दशकों में फैली लम्बी और महाकाव्यात्मक यात्रा में सांस्कृतिक अस्मिता का बोध, जातीय स्मृति की संरचना और समय तथा काल चिन्तन को उनकी स्वयं की विकास प्रक्रिया के रूप में भी देखा जा सकता है। यह अकारण नहीं है कि हिन्दी पुनर्जागरण काल के दौरान, छायावादी वृत्तियों को तोड़ते हुए नयी कविता व प्रयोगवाद की जमीन रचने वाला यह कवि परम्परा और वर्तमान के बीच एक विद्रोही की भाँति उपस्थित है।
अज्ञेय काव्य में वाक्यों की संक्षिप्ति, मौन की मुखर अभिव्यक्ति, जीवन और मूल्यों को लेकर शाश्वत से प्रश्न की जद्दोजहद, मृत्यु और मृत्यु से इतर समाज से संवाद, प्रकृति के लगभग सभी प्रत्ययों से बेहिचक आत्मीय संलाप, समाज में अध्यात्म की गुंजाइश पर बहस तथा समय के साथ न जाने कितने तरीकों से काल चिन्तन-यह सब एक कवि अज्ञेय के वैचारिकता के आँगन के विमर्शपरक विषय ही नहीं हैं बल्कि वह उनकी पूरी रचना यात्रा में पूरी ऊष्मा के साथ उद्भासित हो सके हैं। जितना तुम्हारा सच है में चयनित अज्ञेय की सी महत्त्वपूर्ण कविताओं के पुनर्पाठ से हम आसानी से यह लक्ष्य कर सकते हैं कि उन्होंने कई संस्कृतियों और उसके साहित्य के अवगाहन व मैत्री से खुद अपनी संस्कृति और उसके रूप, रंग को समझने की एक भारतीय दृष्टि हमें सौंपी है। यदि हम उन्हीं के शब्दों में अपना स्वर मिलाकर कहें, तो ‘जितना तुम्हारा सच है’ की यह सौ कविताएँ अज्ञेय की विचार सम्पदा के आँगन के इस पार कृतज्ञतापूर्वक पा लागन है।
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Description
हिन्दी-संस्कृति के अनन्य गौरव अज्ञय की जन्मशताब्दी के अवसर पर यह देखना प्रीतिकर है कि अपने कालजयी रचना-कर्म से इस कवि ने अपनी उपस्थिति को न सिर्फ शीर्षस्थानीय बनाया है बल्कि अपने शताब्दी वर्ष में भी उतने ही प्रासंगिक और विचारोत्तेजक बने हुए हैं। अज्ञेय हिन्दी में आधुनिकता, नयी कविता एवं प्रयोगवाद के स्थापितकर्त्ता रहे हैं। वे अकेले उन बिरले लोगों में रहे हैं, जिन्होंने नयी कविता एवं प्रयोगवाद की स्थापना तथा उसके अवगाहन में हिन्दी के तत्कालीन वर्तमान स्वरूप को एकबारगी बदल डाला है।
अज्ञेय के पहले कविता-संग्रह भग्नदूत 1933 से लेकर अन्तिम कविता-संग्रह ऐसा कोई घर आपने देखा है 1986 तक उनके अन्तश्चेतना के ढेरों सोपान तक उनके जीवन के तमाम सारे किरदारों को आपस में जुड़ते हुए जीवनानुभवों की आन्तरिक लय पर अन्तःसलिल देखा जा सकता है। उनकी कविताओं की पाँच दशकों में फैली लम्बी और महाकाव्यात्मक यात्रा में सांस्कृतिक अस्मिता का बोध, जातीय स्मृति की संरचना और समय तथा काल चिन्तन को उनकी स्वयं की विकास प्रक्रिया के रूप में भी देखा जा सकता है। यह अकारण नहीं है कि हिन्दी पुनर्जागरण काल के दौरान, छायावादी वृत्तियों को तोड़ते हुए नयी कविता व प्रयोगवाद की जमीन रचने वाला यह कवि परम्परा और वर्तमान के बीच एक विद्रोही की भाँति उपस्थित है।
अज्ञेय काव्य में वाक्यों की संक्षिप्ति, मौन की मुखर अभिव्यक्ति, जीवन और मूल्यों को लेकर शाश्वत से प्रश्न की जद्दोजहद, मृत्यु और मृत्यु से इतर समाज से संवाद, प्रकृति के लगभग सभी प्रत्ययों से बेहिचक आत्मीय संलाप, समाज में अध्यात्म की गुंजाइश पर बहस तथा समय के साथ न जाने कितने तरीकों से काल चिन्तन-यह सब एक कवि अज्ञेय के वैचारिकता के आँगन के विमर्शपरक विषय ही नहीं हैं बल्कि वह उनकी पूरी रचना यात्रा में पूरी ऊष्मा के साथ उद्भासित हो सके हैं। जितना तुम्हारा सच है में चयनित अज्ञेय की सी महत्त्वपूर्ण कविताओं के पुनर्पाठ से हम आसानी से यह लक्ष्य कर सकते हैं कि उन्होंने कई संस्कृतियों और उसके साहित्य के अवगाहन व मैत्री से खुद अपनी संस्कृति और उसके रूप, रंग को समझने की एक भारतीय दृष्टि हमें सौंपी है। यदि हम उन्हीं के शब्दों में अपना स्वर मिलाकर कहें, तो ‘जितना तुम्हारा सच है’ की यह सौ कविताएँ अज्ञेय की विचार सम्पदा के आँगन के इस पार कृतज्ञतापूर्वक पा लागन है।
About Author
स. ही. वात्स्यायन 'अज्ञेय'
मूल नाम : सच्चिदानन्द वात्स्यायन, जन्म 07 मार्च, 1911, कुशीनगर, जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश में एक पुरातत्त्व उत्खनन शिविर में । शिक्षा : बी.एससी. (लाहौर) प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान । युवावस्था में चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव और भगवती चरण वोहरा से सम्पर्क, क्रान्तिकारी जीवन की शुरुआत । 1927 में पहली कविता की रचना । हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी में सम्मिलित, बम बनाने के जुर्म में गिरफ्तारी। इसी दौरान चिन्ता एवं शेखर : एक जीवनी की रचना ।
सेना में नौकरी। 1946 में सेना से त्यागपत्र । इसी वर्ष ऐतिहासिक तार सप्तक का सम्पादन। इलाहाबाद और दिल्ली से प्रतीक का प्रकाशन - सम्पादन । इसके अतिरिक्त दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक, थॉट, वाक्, नया प्रतीक, दिनमान, एवरीमेन्स वीकली, नवभारत टाइम्स, चौथा सप्तक का सम्पादन । कैलीफोर्निया, हॉइडेलबर्ग तथा बर्कले में अध्यापन । सत्तरह कविता-संग्रह, चार उपन्यास, सात कहानी-संग्रह, दो यात्रा-वृत्तान्त, बारह निबन्ध-संग्रह, दो संस्मरण, चार डायरियाँ, चार ललित निबन्ध-संग्रह, तीन साक्षात्कार-संग्रह तथा एक गीति नाट्य प्रकाशित । समग्र कविताएँ सदानीरा भाग 1 एवं 2 में संकलित ।
इसके अतिरिक्त लगभग 20 से अधिक साहित्यिक ग्रन्थों का सम्पादन एवं अंग्रेजी-हिन्दी में अनुवाद की एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित । युगोस्लाविया के अन्तरराष्ट्रीय कविता सम्मान गोल्डन-रीथ, कबीर सम्मान, साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित । ज्ञानपीठ पुरस्कार राशि के बराबर राशि अपनी ओर से जोड़कर 1980 में वत्सल निधि न्यास की स्थापना। 04 अप्रैल, 1987 को निधन ।
यतीन्द्र मिश्र
यतीन्द्र मिश्र हिन्दी कवि, सम्पादक और संगीत अध्येता हैं। उनके अब तक तीन कविता-संग्रह, शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी, नृत्यांगना सोनल मानसिंह एवं शहनाई उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ पर हिन्दी में प्रामाणिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। फिल्म निर्देशक एवं गीतकार गुलज़ार की कविताओं एवं गीतों के चयन क्रमशः 'यार जुलाहे' तथा 'मीलों से दिन' नाम से सम्पादित हैं। वरिष्ठ कवि कुँवरनारायण पर एकाग्र संचयन क्रमशः कुँवरनारायण - 'संसार' एवं 'उपस्थिति' तथा अशोक वाजपेयी पर एक संचयन 'किस भूगोल में किस सपने में प्रकाशित हैं। 'गिरिजा' का अंग्रेजी, 'यार जुलाहे' का उर्दू तथा अयोध्या श्रृंखला कविताओं का जर्मन अनुवाद प्रकाशित है। वे रज़ा पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, भारतीय भाषा परिषद युवा पुरस्कार, हेमन्त स्मृति कविता सम्मान सहित भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की कनिष्ठ शोधवृत्ति एवं सराय, नयी दिल्ली की स्वतंत्र शोधवृत्ति मिली हैं। अयोध्या में रहते हैं।
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