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Reporter
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
महाश्वेता देवी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
महाश्वेता देवी
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹75 ₹74
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ISBN:
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9789352291618
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
96
रिपोर्टर –
मैजिस्ट्रेट ने जवाब तलब किया था-मणि बाबू आप ऐसी ख़बरें क्यों छापते हैं? बाऊजी ने जवाब दिया, ‘क्योंकि यही सब घट जो रहा है।’ मैजिस्ट्रेट ने अगला सवाल किया, ‘अनंग बाबू के बारे में इतना कुछ लिखने की क्या ज़रूरत थी’? बाऊ जी का जवाब था, ‘ज़रूरत थी’। अनंग बाबू जैसी उम्र का शख़्स, इस आन्दोलन में शामिल है, उनका पिछला इतिहास, जनता नहीं जानना चाहेगी?” मैजिस्ट्रेट ने मानो हथियार डाल दिये, ‘अब मैं आपसे क्या कहूँ?’ बाऊ जी का साफ़ जवाब था, ‘कुछ मत कहिए, मुमकिन है आपकी बात में न मानूँ।’ मैजिस्ट्रेट ने अफ़सोस ज़ाहिर किया,’ आपका अपना बेटा भी उग्रपंथी हो गया, वेरी सैड! आप ठहरे अहम् हस्ती… बाऊ जी के पास इसका भी जवाब था, ‘देखिए, जब मैंने राजनीति की, अपने पिता की बात नहीं मानी। इसलिए बेटे को रोकने वाला मैं कौन होता हूँ? वैसे मुझे नहीं लगता कि वह ग़लत कर रहा है।’ जज ने फिर पूछा, ‘यानी अख़बारों में आप इस क़िस्म की ख़बरें छापते रहेंगे?’ बाऊ जी ने छूटते ही जवाब दिया, ‘देखिए, मेरे ज़िला सफ़र में, अगर मेरे बंदी बच्चों पर गोलियाँ चल सकती हैं, तो अख़बार वह ख़बर दे ही सकता है और आप अपने फैसले मुताबिक क़दम उठा सकते हैं।’
-इसी पुस्तक से
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Description
रिपोर्टर –
मैजिस्ट्रेट ने जवाब तलब किया था-मणि बाबू आप ऐसी ख़बरें क्यों छापते हैं? बाऊजी ने जवाब दिया, ‘क्योंकि यही सब घट जो रहा है।’ मैजिस्ट्रेट ने अगला सवाल किया, ‘अनंग बाबू के बारे में इतना कुछ लिखने की क्या ज़रूरत थी’? बाऊ जी का जवाब था, ‘ज़रूरत थी’। अनंग बाबू जैसी उम्र का शख़्स, इस आन्दोलन में शामिल है, उनका पिछला इतिहास, जनता नहीं जानना चाहेगी?” मैजिस्ट्रेट ने मानो हथियार डाल दिये, ‘अब मैं आपसे क्या कहूँ?’ बाऊ जी का साफ़ जवाब था, ‘कुछ मत कहिए, मुमकिन है आपकी बात में न मानूँ।’ मैजिस्ट्रेट ने अफ़सोस ज़ाहिर किया,’ आपका अपना बेटा भी उग्रपंथी हो गया, वेरी सैड! आप ठहरे अहम् हस्ती… बाऊ जी के पास इसका भी जवाब था, ‘देखिए, जब मैंने राजनीति की, अपने पिता की बात नहीं मानी। इसलिए बेटे को रोकने वाला मैं कौन होता हूँ? वैसे मुझे नहीं लगता कि वह ग़लत कर रहा है।’ जज ने फिर पूछा, ‘यानी अख़बारों में आप इस क़िस्म की ख़बरें छापते रहेंगे?’ बाऊ जी ने छूटते ही जवाब दिया, ‘देखिए, मेरे ज़िला सफ़र में, अगर मेरे बंदी बच्चों पर गोलियाँ चल सकती हैं, तो अख़बार वह ख़बर दे ही सकता है और आप अपने फैसले मुताबिक क़दम उठा सकते हैं।’
-इसी पुस्तक से
About Author
महाश्वेता देवी -
बांग्ला की प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी का जन्म 1926 में ढाका में हुआ। वह वर्षों बिहार और बंगाल के घने क़बाइली इलाकों में रही हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में इन क्षेत्रों के अनुभव को अत्यन्त प्रामाणिकता के साथ उभारा है।
महाश्वेता देवी एक थीम से दूसरी थीम के बीच भटकती नहीं हैं। उनका विशिष्ट क्षेत्र है-दलितों और साधन-हीनों के हृदयहीन शोषण का चित्रण और इसी संदेश को वे बार-बार सही जगह पहुँचाना चाहती हैं ताकि अनन्त काल से ग़रीबी रेखा से नीचे साँस लेनेवाली विराट मानवता के बारे में लोगों को सचेत कर सकें।
ग़ैर-व्यावसायिक पत्रों में छपने के बावज़ूद उनके पाठकों की संख्या बहुत बड़ी है। उन्हें साहित्य अकादेमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार मैग्सेसे पुरस्कार समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
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