SaleHardback
Ishq Mein Shahar Hona (HB)
₹299 ₹209
Save: 30%
‘Kaun Hain Bharat Mata?’ (PB)
₹599 ₹419
Save: 30%
Sansad Se Sarak Tak (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Sudama Pandey Dhoomil
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Sudama Pandey Dhoomil
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹395 ₹277
Save: 30%
In stock
Ships within:
3-5 days
In stock
ISBN:
SKU
9788126707683
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
धूमिल मात्र अनुभूति के नहीं, विचार के भी कवि हैं। उनके यहाँ अनुभूतिपरकता और विचारशीलता, इतिहास और समझ, एक-दूसरे से घुले-मिले हैं और उनकी कविता केवल भावात्मक स्तर पर नहीं बल्कि बौद्धिक स्तर पर भी सक्रिय होती है।
धूमिल ऐसे युवा कवि हैं जो उत्तरदायी ढंग से अपनी भाषा और फ़ार्म को संयोजित करते हैं।
धूमिल की दायित्व-भावना का एक और पक्ष उनका स्त्री की भयावह लेकिन समकालीन रूढि़ से मुक्त रहना है। मसलन, स्त्री को लेकर लिखी गई उनकी कविता ‘उस औरत की बग़ल में लेटकर’ में किसी तरह का आत्मप्रदर्शन, जो इस ढंग से युवा कविताओं की लगभग एकमात्र चारित्रिक विशेषता है, नहीं है बल्कि एक ठोस मानव स्थिति की जटिल गहराइयों में खोज और टटोल है जिसमें दिखाऊ आत्महीनता के बजाय अपनी ऐसी पहचान है जिसे आत्म-साक्षात्कार कहा जा सकता है।
उत्तरदायी होने के साथ धूमिल में गहरा आत्मविश्वास भी है जो रचनात्मक उत्तेजना और समझ के घुले-मिले रहने से आता है और जिसके रहते वे रचनात्मक सामग्री का स्फूर्त लेकिन सार्थक नियंत्रण कर पाते हैं।
यह आत्मविश्वास उन अछूते विषयों के चुनाव में भी प्रकट होता है जो धूमिल अपनी कविताओं के लिए चुनते हैं। ‘मोचीराम’, ‘राजकमल चौधरी के लिए’, ‘अकाल-दर्शन’, ‘गाँव’, ‘प्रौढ़ शिक्षा’ आदि कविताएँ, जैसा कि शीर्षकों से भी आभास मिलता है, युवा कविता के सन्दर्भ में एकदम ताज़ा बल्कि कभी-कभी तो अप्रत्याशित भी लगती हैं। इन विषयों में धूमिल जो काव्य-संसार बसाते हैं, वह हाशिए की दुनिया नहीं, बीच की दुनिया है। यह दुनिया जीवित और पहचाने जा सकनेवाले समकालीन मानव-चरित्रों की दुनिया है जो अपने ठोस रूप-रंगों और अपने चारित्रिक मुहावरों में धूमिल के यहाँ उजागर होती है।
—अशोक वाजपेयी
Be the first to review “Sansad Se Sarak Tak (HB)” Cancel reply
Description
धूमिल मात्र अनुभूति के नहीं, विचार के भी कवि हैं। उनके यहाँ अनुभूतिपरकता और विचारशीलता, इतिहास और समझ, एक-दूसरे से घुले-मिले हैं और उनकी कविता केवल भावात्मक स्तर पर नहीं बल्कि बौद्धिक स्तर पर भी सक्रिय होती है।
धूमिल ऐसे युवा कवि हैं जो उत्तरदायी ढंग से अपनी भाषा और फ़ार्म को संयोजित करते हैं।
धूमिल की दायित्व-भावना का एक और पक्ष उनका स्त्री की भयावह लेकिन समकालीन रूढि़ से मुक्त रहना है। मसलन, स्त्री को लेकर लिखी गई उनकी कविता ‘उस औरत की बग़ल में लेटकर’ में किसी तरह का आत्मप्रदर्शन, जो इस ढंग से युवा कविताओं की लगभग एकमात्र चारित्रिक विशेषता है, नहीं है बल्कि एक ठोस मानव स्थिति की जटिल गहराइयों में खोज और टटोल है जिसमें दिखाऊ आत्महीनता के बजाय अपनी ऐसी पहचान है जिसे आत्म-साक्षात्कार कहा जा सकता है।
उत्तरदायी होने के साथ धूमिल में गहरा आत्मविश्वास भी है जो रचनात्मक उत्तेजना और समझ के घुले-मिले रहने से आता है और जिसके रहते वे रचनात्मक सामग्री का स्फूर्त लेकिन सार्थक नियंत्रण कर पाते हैं।
यह आत्मविश्वास उन अछूते विषयों के चुनाव में भी प्रकट होता है जो धूमिल अपनी कविताओं के लिए चुनते हैं। ‘मोचीराम’, ‘राजकमल चौधरी के लिए’, ‘अकाल-दर्शन’, ‘गाँव’, ‘प्रौढ़ शिक्षा’ आदि कविताएँ, जैसा कि शीर्षकों से भी आभास मिलता है, युवा कविता के सन्दर्भ में एकदम ताज़ा बल्कि कभी-कभी तो अप्रत्याशित भी लगती हैं। इन विषयों में धूमिल जो काव्य-संसार बसाते हैं, वह हाशिए की दुनिया नहीं, बीच की दुनिया है। यह दुनिया जीवित और पहचाने जा सकनेवाले समकालीन मानव-चरित्रों की दुनिया है जो अपने ठोस रूप-रंगों और अपने चारित्रिक मुहावरों में धूमिल के यहाँ उजागर होती है।
—अशोक वाजपेयी
About Author
धूमिल
9 नवम्बर, 1936 को उत्तर प्रदेश के एक गाँव खेवली (वाराणसी) में जन्मे धूमिल का मूल नाम सुदामा पाण्डेय था।
आरम्भिक शिक्षा गाँव के प्राइमरी स्कूल से पाई। हरिश्चन्द्र इंटर कॉलेज, वाराणसी में ग्यारहवीं कक्षा में दाखिले के बावजूद अर्थाभाव के कारण पढ़ाई छूट गई।
कुछ समय आजीविका की तलाश में काशी से कलकत्ता तक भटकते रहे। 1958 में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, वाराणसी से विद्युत-डिप्लोमा हासिल किया। 12 जुलाई, 1958 को वहीं
विद्युत-अनुदेशक के पद पर नियुक्त हुए।
लेखन की शुरुआत तभी हो गई थी जब सातवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। आरम्भिक गीत विभिन्न
पत्र-पत्रिकाओं में छपे लेकिन संग्रह कभी प्रकाशित नहीं हुआ। पहली कहानी ‘फिर भी वह जिन्दा है’ ‘साकी’ के जून, 1960 अंक में छपी। 1972 में पहला कविता-संग्रह ‘संसद से सड़क तक’ प्रकाशित हुआ। इसके बाद दो कविता-संग्रह और प्रकाशित हुए : 1977 में ‘कल सुनना मुझे’ तथा 1984 में ‘सुदामा पाँड़े का प्रजातंत्र’।
‘संसद से सड़क तक’ को 1975 में मध्य प्रदेश शासन साहित्य परिषद का ‘मुक्तिबोध पुरस्कार’, जबकि ‘कल सुनना मुझे’ को 1979 का ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्रदान किया गया ।
10 फरवरी, 1975 को के.जी. मेडिकल कॉलेज, लखनऊ में ब्रेन ट्यूमर के कारण निधन हुआ।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Sansad Se Sarak Tak (HB)” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balabhadra (Vol. 2): Hindi Vyakhya
Save: 20%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.