Pratinidhi Kahaniyan : Zilani Bano (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Zilani Bano
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Zilani Bano
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जीलानी बानो उर्दू की ऐसी कथाकार हैं जिन्होंने पर्दे में रहते हुए भी अपने ज़माने की अदबी चहल-पहल की आहटें सुनकर लिखना आरम्‍भ किया। यह वो ज़माना था जब हैदराबाद में पुलिस कार्रवाई के नतीजे में आसिफ़जादी पीढ़ी के आख़िरी नवाब मीर उस्मान अली ख़ाँ को अपनी दस्तार में ‘राज-प्रमुख’ की कलगी लगाने पर मज़बूर होना पड़ा था। यह नई और पुरानी क़द्रों और सभ्यता के आकारों में टूट-फूट का ज़माना था। ज़िन्दगी बसर करने का एक ख़ास ढाँचा था। सुबह व शाम अपने रूटीन थे। बड़े, छोटे—अहम और ग़ैर—अहम, आका और ग़ुलाम, कनीज और रखैल ये सारे झूठे-सच्चे रिश्‍ते थे जिनके बीच लाड बाज़ार की चूड़ियाँ, ज़र्क-बर्क लिबास, शेरवानी, तुर्की टोपी, चिलमन बजूर्दार शिकरा में, सिनेमाघर, दावतें,  शादी-ब्याह, और शेरो-शायरी सब अपनी ख़ास सज-धज के साथ कहानीकार से हाथ मिलाते रहते थे। जीलानी बानो ने हैदराबाद की इस टूट-फूट को बड़े क़रीब से देखा है जो हैदराबादी दीवानख़ानों के बजाय ज़नानख़ानों में ज़िन्दगी के दुख-सुख को नई-नई सूरतें दे रही थीं।
एक कथाकार के तौर पर जीलानी बानो का विज़न बेहद ताक़तवर है। वह ज़िन्दगी में बहुत दूर तक पैठता है। ज़िन्दगी के पाताल में उतरकर उसके ओर-छोर की खोज कहानी के माध्यम से कम ही कहानीकारों ने की होगी।
जीलानी बानो का लहज़ा सँभला हुआ, गम्‍भीर और सोचता हुआ है। वह अपनी कहानी में ज़ायके की ख़ातिर वह सबकुछ नहीं मिलातीं जिससे कहानी की ख़ूब चर्चा हो और वह पसन्‍द की जाए।
जीलानी बानो ने अपनी कहानियों में एक असलूब तराशा है जो उनके लम्बे रचनात्मक सफ़र की देन है। वह यक़ीनन हमारे दौर के उर्दू कथा-साहित्य की अगली सफ़ में बैठी हुई कहानीकार हैं।

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Description

जीलानी बानो उर्दू की ऐसी कथाकार हैं जिन्होंने पर्दे में रहते हुए भी अपने ज़माने की अदबी चहल-पहल की आहटें सुनकर लिखना आरम्‍भ किया। यह वो ज़माना था जब हैदराबाद में पुलिस कार्रवाई के नतीजे में आसिफ़जादी पीढ़ी के आख़िरी नवाब मीर उस्मान अली ख़ाँ को अपनी दस्तार में ‘राज-प्रमुख’ की कलगी लगाने पर मज़बूर होना पड़ा था। यह नई और पुरानी क़द्रों और सभ्यता के आकारों में टूट-फूट का ज़माना था। ज़िन्दगी बसर करने का एक ख़ास ढाँचा था। सुबह व शाम अपने रूटीन थे। बड़े, छोटे—अहम और ग़ैर—अहम, आका और ग़ुलाम, कनीज और रखैल ये सारे झूठे-सच्चे रिश्‍ते थे जिनके बीच लाड बाज़ार की चूड़ियाँ, ज़र्क-बर्क लिबास, शेरवानी, तुर्की टोपी, चिलमन बजूर्दार शिकरा में, सिनेमाघर, दावतें,  शादी-ब्याह, और शेरो-शायरी सब अपनी ख़ास सज-धज के साथ कहानीकार से हाथ मिलाते रहते थे। जीलानी बानो ने हैदराबाद की इस टूट-फूट को बड़े क़रीब से देखा है जो हैदराबादी दीवानख़ानों के बजाय ज़नानख़ानों में ज़िन्दगी के दुख-सुख को नई-नई सूरतें दे रही थीं।
एक कथाकार के तौर पर जीलानी बानो का विज़न बेहद ताक़तवर है। वह ज़िन्दगी में बहुत दूर तक पैठता है। ज़िन्दगी के पाताल में उतरकर उसके ओर-छोर की खोज कहानी के माध्यम से कम ही कहानीकारों ने की होगी।
जीलानी बानो का लहज़ा सँभला हुआ, गम्‍भीर और सोचता हुआ है। वह अपनी कहानी में ज़ायके की ख़ातिर वह सबकुछ नहीं मिलातीं जिससे कहानी की ख़ूब चर्चा हो और वह पसन्‍द की जाए।
जीलानी बानो ने अपनी कहानियों में एक असलूब तराशा है जो उनके लम्बे रचनात्मक सफ़र की देन है। वह यक़ीनन हमारे दौर के उर्दू कथा-साहित्य की अगली सफ़ में बैठी हुई कहानीकार हैं।

About Author

जीलानी बानो

जन्म : 1936; बदायूँ (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए. (उर्दू)।

इनकी कहानियों और उपन्यासों से आज के समय के बदलते जीवन-मूल्यों और समाज में औरत की हैसियत का एहसास होता है। जीलानी बानो अपनी धरती और दुनिया को ही अपनी कहानियों का मज़मून बनाती हैं।

हैदराबाद की तहज़ीबी ज़िन्दगी पर उनका पहला उर्दू उपन्यास ‘ऐवान ग़ज़ल’ काफ़ी चर्चित हुआ। अब तक हिन्दी और गुजराती में इसका अनुवाद हो चुका है। नेशनल बुक ट्रस्ट की योजना इसे हिन्दुस्तान की चौदह भाषाओं में प्रकाशित करने की है। इनके एक अन्य उपन्यास का नाम है—‘बारिश-ए-संग’। इसका हिन्दी अनुवाद ‘पत्थरों की बारिश’ नाम से छपा। इसके अतिरिक्त नौ कहानी-संग्रह प्रकाशित।

इनकी कई कहानियों का अनुवाद विभिन्न देशी और विदेशी भाषाओं में हो चुका है। इन्होंने रेडियो और टी.वी. के लिए कई नाटक लिखे।

सम्मान : ‘ग़ालिब एवार्ड’ (1978), ‘सोवियत लैंड नेहरू एवार्ड’ (1985), ‘महाराष्ट्र उर्दू एकेडमी एवार्ड’ (1988), ‘हरियाणा उर्दू एकेडमी एवार्ड’ (1989), ‘पाकिस्तान का नुकुश एवार्ड’ (1991)। इनके अतिरिक्त कई अन्य पुरस्कार।

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