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Navshati Hindi Vyakaran (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Badrinath Kapoor
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Badrinath Kapoor
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹495 ₹347
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ISBN:
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9788126711185
Category Hindi
Category: Hindi
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हमारी भाषा की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि इसमें भाषा को निर्मित और विकसित करनेवाले देशज तत्त्वों की घोर उपेक्षा की जाती है। रचनात्मक साहित्य का एक हिस्सा भले ही ऐसा नहीं हो, लेकिन शेष लेखन पर तो अंग्रेज़ी भाषा का प्रभाव साफ़ दिखलाई पड़ता है। कहन और शैली ही नहीं, भाषा के स्वरूप का ज्ञान करानेवाला हमारा व्याकरण भी अंग्रेज़ी भाषा के व्याकरणिक ढाँचे से आवश्यकता से अधिक जकड़ा हुआ है। हालाँकि, पिछले कुछ दशकों से हिन्दी की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुरूप व्याकरण प्रस्तुत करने के प्रयास होने लगे हैं। लेखक की इस पुस्तक को इसी प्रयास के क्रम में देखा जाना चाहिए।
भाषाविद् तथा कोशकार के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके बदरीनाथ कपूर ने हिन्दी की स्वाभाविक प्रकृति के अनुरूप व्याकरण की रचना करके यह प्रमाणित किया है कि हिन्दी दुनिया की अन्य विकसित भाषाओं की तुलना में अधिक व्यवस्थित होने के साथ-साथ सरल और लचीली भी है। यह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन हैं।
इस पुस्तक से गुज़रते हुए सहज ही यह एहसास होता है कि व्याकरण नियमों का पुलिन्दा-भर नहीं होता, वह भाषा-भाषियों की ज्ञान-गरिमा, बुद्धि-वैभव, रचना-कौशल, सन्दर्भबोध और सर्जनक्षमता का भी परिचायक होता है।
हिन्दी का यह सर्वथा नवीन व्याकरण सिर्फ़ छात्रों के लिए ही उपयोगी नहीं होगा, यह उन जिज्ञासुओं को भी राह दिखाएगा जो भाषा की आत्मा तक पहुँचना चाहते हैं।
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Description
हमारी भाषा की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि इसमें भाषा को निर्मित और विकसित करनेवाले देशज तत्त्वों की घोर उपेक्षा की जाती है। रचनात्मक साहित्य का एक हिस्सा भले ही ऐसा नहीं हो, लेकिन शेष लेखन पर तो अंग्रेज़ी भाषा का प्रभाव साफ़ दिखलाई पड़ता है। कहन और शैली ही नहीं, भाषा के स्वरूप का ज्ञान करानेवाला हमारा व्याकरण भी अंग्रेज़ी भाषा के व्याकरणिक ढाँचे से आवश्यकता से अधिक जकड़ा हुआ है। हालाँकि, पिछले कुछ दशकों से हिन्दी की प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुरूप व्याकरण प्रस्तुत करने के प्रयास होने लगे हैं। लेखक की इस पुस्तक को इसी प्रयास के क्रम में देखा जाना चाहिए।
भाषाविद् तथा कोशकार के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके बदरीनाथ कपूर ने हिन्दी की स्वाभाविक प्रकृति के अनुरूप व्याकरण की रचना करके यह प्रमाणित किया है कि हिन्दी दुनिया की अन्य विकसित भाषाओं की तुलना में अधिक व्यवस्थित होने के साथ-साथ सरल और लचीली भी है। यह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन हैं।
इस पुस्तक से गुज़रते हुए सहज ही यह एहसास होता है कि व्याकरण नियमों का पुलिन्दा-भर नहीं होता, वह भाषा-भाषियों की ज्ञान-गरिमा, बुद्धि-वैभव, रचना-कौशल, सन्दर्भबोध और सर्जनक्षमता का भी परिचायक होता है।
हिन्दी का यह सर्वथा नवीन व्याकरण सिर्फ़ छात्रों के लिए ही उपयोगी नहीं होगा, यह उन जिज्ञासुओं को भी राह दिखाएगा जो भाषा की आत्मा तक पहुँचना चाहते हैं।
About Author
बदरीनाथ कपूर
जन्म : 16 सितम्बर, 1932 को, अकालगढ़, ज़िला—गुजराँवाला में (अब पाकिस्तान)।
शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी.।
डॉ. बदरीनाथ कपूर पिछले पाँच दशकों से भाषा, व्याकरण और कोश प्रणयन के क्षेत्र में निरन्तर कार्यरत हैं। डॉ. कपूर 1956 से 1965 तक ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’, प्रयाग द्वारा प्रकाशित ‘मानक हिन्दी कोश’ पर सहायक सम्पादक के रूप में काम करते रहे। बाद में जापान सरकार के आमंत्रण पर टोक्यो विश्वविद्यालय में, 1983 से 1986 तक, अतिथि प्रोफ़ेसर के रूप में सेवा प्रदान की।
प्रकाशित कृतियाँ : ‘वाक्य-संरचना और विश्लेषण : नए प्रयोग’, ‘उर्दू-हिन्दी-अंग्रेज़ी त्रिभाषी कोश’, ‘उर्दू हिन्दी कोश’, ‘लोकभारती प्रामाणिक हिन्दी बाल-कोश’, ‘हिन्दी-अंग्रेज़ी पर्यायवाची एवं विपर्याय कोश’, ‘लोकभारती हिन्दी मुहावरे और लोकोक्ति कोश’, ‘लोकभारती बृहत् प्रामाणिक हिन्दी कोश’, ‘आधुनिक हिन्दी प्रयोग कोश’, ‘अच्छी हिन्दी’, ‘हिन्दी प्रयोग’, ‘नवशती हिन्दी व्याकरण’, ‘हिन्दी क्रियाओं की रूप-रचना’ आदि।
डॉ. कपूर की अनेक पुस्तकें उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पुरस्कृत हैं। ‘हिन्दी गौरव सम्मान’, ‘श्री अन्नपूर्णानन्द वर्मा अलंकरण’, ‘सौहार्द सम्मान’, ‘काशी रत्न’, ‘महामना मदनमोहन मालवीय सम्मान’, ‘विद्या भूषण सम्मान’ आदि सम्मानों से सम्मानित।
निधन : 21 जनवरी, 2021
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