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Pratinidhi Kahaniyan : Arun Prakash (PB)
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Mamooli Cheezon Ka Devata (PB)
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Mamooli Cheezon Ka Devata (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Arundhati Roy
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Arundhati Roy
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹895 ₹627
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In stock
ISBN:
SKU
9788126708406
Category Hindi
Category: Hindi
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एक विशुद्ध व्यावहारिक अर्थ में तो शायद यह कहना सही होगा कि यह सब उस समय शुरू हुआ, जब सोफ़ी मोल आयमनम आई। शायद यह सच है कि एक ही दिन में चीज़ें बदल सकती हैं। कि चंद घंटे समूची ज़िन्दगियों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। और यह कि जब वे ऐसा करते हैं, उन चंद घंटों को किसी जले हुए घर से बचाए गए अवशेषों की तरह—करियाई हुई घड़ी, आँच लगी तस्वीर, झुलसा हुआ फ़र्नीचर—खंडहरों से समेटकर उनकी जाँच-परख करनी पड़ती है। सँजोना पड़ता है। उनका लेखा-जोखा करना पड़ता है।
छोटी-छोटी घटनाएँ, मामूली चीज़ें, टूटी-फूटी और फिर से जोड़ी गईं। नए अर्थों से भरी। अचानक वे किसी कहानी की निर्वर्ण हड्डियाँ बन जाती हैं।
फिर भी, यह कहना कि वह सब कुछ तब शुरू हुआ जब सोफ़ी मोल आयमनम आई, उसे देखने का महज़ एक पहलू है।
साथ ही यह दावा भी किया जा सकता था कि वह प्रकरण सचमुच हज़ारों साल पहले शुरू हुआ था। मार्क्सवादियों के आने से बहुत पहले। अंग्रेज़ों के मलाबार पर क़ब्ज़ा करने से पहले, डच उत्थान से पहले, वास्को डी गामा के आगमन से पहले, ज़मोरिन की कालिकट विजय से पहले।
किश्ती में सवार ईसाइयत के आगमन और चाय की थैली से चाय की तरह रिसकर केरल में उसके फैल जाने से भी बहुत पहले हुई थी।
कि वह सब कुछ दरअसल उन दिनों शुरू हुआ जब प्रेम के क़ानून बने। वे क़ानून जो यह निर्धारित करते थे कि किस से प्रेम किया जाना चाहिए, और कैसे।
और कितना।
बहरहाल, व्यावहारिक रूप से एक नितान्त व्यावहारिक दुनिया में…वह दिसम्बर उनहत्तर का (उन्नीस सौ अनुच्चरित था) एक आसमानी नीला दिन था। एक आसमानी रंग की प्लिमथ, अपने टेलफ़िनों में सूरज को लिए, धान के युवा खेतों और रबर के बूढ़े पेड़ों को तेज़ी से पीछे छोड़ती कोचीन की तरफ़ भागी जा रही थी…
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Description
एक विशुद्ध व्यावहारिक अर्थ में तो शायद यह कहना सही होगा कि यह सब उस समय शुरू हुआ, जब सोफ़ी मोल आयमनम आई। शायद यह सच है कि एक ही दिन में चीज़ें बदल सकती हैं। कि चंद घंटे समूची ज़िन्दगियों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। और यह कि जब वे ऐसा करते हैं, उन चंद घंटों को किसी जले हुए घर से बचाए गए अवशेषों की तरह—करियाई हुई घड़ी, आँच लगी तस्वीर, झुलसा हुआ फ़र्नीचर—खंडहरों से समेटकर उनकी जाँच-परख करनी पड़ती है। सँजोना पड़ता है। उनका लेखा-जोखा करना पड़ता है।
छोटी-छोटी घटनाएँ, मामूली चीज़ें, टूटी-फूटी और फिर से जोड़ी गईं। नए अर्थों से भरी। अचानक वे किसी कहानी की निर्वर्ण हड्डियाँ बन जाती हैं।
फिर भी, यह कहना कि वह सब कुछ तब शुरू हुआ जब सोफ़ी मोल आयमनम आई, उसे देखने का महज़ एक पहलू है।
साथ ही यह दावा भी किया जा सकता था कि वह प्रकरण सचमुच हज़ारों साल पहले शुरू हुआ था। मार्क्सवादियों के आने से बहुत पहले। अंग्रेज़ों के मलाबार पर क़ब्ज़ा करने से पहले, डच उत्थान से पहले, वास्को डी गामा के आगमन से पहले, ज़मोरिन की कालिकट विजय से पहले।
किश्ती में सवार ईसाइयत के आगमन और चाय की थैली से चाय की तरह रिसकर केरल में उसके फैल जाने से भी बहुत पहले हुई थी।
कि वह सब कुछ दरअसल उन दिनों शुरू हुआ जब प्रेम के क़ानून बने। वे क़ानून जो यह निर्धारित करते थे कि किस से प्रेम किया जाना चाहिए, और कैसे।
और कितना।
बहरहाल, व्यावहारिक रूप से एक नितान्त व्यावहारिक दुनिया में…वह दिसम्बर उनहत्तर का (उन्नीस सौ अनुच्चरित था) एक आसमानी नीला दिन था। एक आसमानी रंग की प्लिमथ, अपने टेलफ़िनों में सूरज को लिए, धान के युवा खेतों और रबर के बूढ़े पेड़ों को तेज़ी से पीछे छोड़ती कोचीन की तरफ़ भागी जा रही थी…
About Author
अरुन्धति रॉय
अरुंधति रॉय ने वास्तुकला का अध्ययन किया है। आप 'द गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स’ जिसके लिए आपको 1997 का ‘बुकर पुरस्कार’ प्राप्त हुआ और 'द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ की लेखिका हैं। दुनिया-भर में इन दोनों उपन्यासों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। आपकी पुस्तकें ‘मामूली चीज़ों का देवता’, 'अपार ख़ुशी का घराना’, 'बेपनाह शादमानी की ममलिकत’ (उर्दू में), 'न्याय का गणित’, 'आहत देश’, 'भूमकाल’, 'कॉमरेडों के साथ’, 'कठघरे में लोकतंत्र’ राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई हैं। 'माय सीडिशियस हार्ट’ आपकी समग्र कथेतर रचनाओं का संकलन है। आप 2002 के ‘लनन कल्चरल फ़्रीडम पुरस्कार’, 2015 के ‘आंबेडकर सुदर पुरस्कार’ और ‘महात्मा जोतिबा फुले पुरस्कार’ से सम्मानित हैं।
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