Mere Priya (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Syed Haider Raza, Krishna Khanna, Ed. Ashok Vajpeyi, Tr. Prabhat Ranjan
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
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Syed Haider Raza, Krishna Khanna, Ed. Ashok Vajpeyi, Tr. Prabhat Ranjan
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Hindi
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रज़ा साहब जब 2010 के अन्त में अपने जीवन का आख़िरी चरण बिताने दिल्ली आ गए तो अपने साथ पुस्तकों, कैटलॉगों व अन्य काग़ज़ात का एक बड़ा संग्रह भी लाए। इस सारी सामग्री को एकत्र और व्यवस्थित कर रज़ा अभिलेखागार बनाया जा रहा है। जो काग़ज़ात हमें मिले उनमें रज़ा के कलाकार-मित्रों के कई पत्र भी मिले हैं। इनमें मक़बूल फिदा हुसेन, फ्रांसिस न्यूटन सूज़ा, के.एच. आरा, रामकुमार, कृष्ण खन्ना और तैयब मेहता शामिल हैं। उनके पत्राचार में निजी, कलात्मक, सामाजिक आदि कई विषयों पर लिखा गया है और उन्हें पढ़ने से एक मूर्धन्य कलाकार की संघर्ष-गाथा के कई पहलू समझ में आते हैं। उस परिवेश, उन मित्रों और उनके सम्बन्धों पर भी रोशनी पड़ती है जिन्होंने रज़ा को एक व्यक्ति और कलाकार के रूप में विकसित होने में भूमिका निभाई। यह एक तरह का अनौपचारिक रिकॉर्ड भी है जो हमें बताता है कि हमारे कुछ कला-मूर्धन्य अपने समय कैसे देख-समझ रहे थे, उनकी उत्सुकताएँ और बेचैनियाँ क्या थीं और एक विकासशील सौन्दर्य-बोध कैसे आकार ले रहा था।
इस पत्राचार को क्रमश: कुछ पुस्तकों में प्रकाशित करने का इरादा है। इस सीरीज़ में पहली पुस्तक रज़ा और कृष्ण खन्ना के पत्राचार की है। सौभाग्य से इन दोनों ने एक-दूसरे के पत्र सँभालकर रखे। दो मूर्धन्य कलाकारों के बीच यह पत्र-संवाद बिरला है और इसे हिन्दी अनुवाद में प्रकाशित करते हमें प्रसन्नता है।
—अशोक वाजपेयी

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Description

रज़ा साहब जब 2010 के अन्त में अपने जीवन का आख़िरी चरण बिताने दिल्ली आ गए तो अपने साथ पुस्तकों, कैटलॉगों व अन्य काग़ज़ात का एक बड़ा संग्रह भी लाए। इस सारी सामग्री को एकत्र और व्यवस्थित कर रज़ा अभिलेखागार बनाया जा रहा है। जो काग़ज़ात हमें मिले उनमें रज़ा के कलाकार-मित्रों के कई पत्र भी मिले हैं। इनमें मक़बूल फिदा हुसेन, फ्रांसिस न्यूटन सूज़ा, के.एच. आरा, रामकुमार, कृष्ण खन्ना और तैयब मेहता शामिल हैं। उनके पत्राचार में निजी, कलात्मक, सामाजिक आदि कई विषयों पर लिखा गया है और उन्हें पढ़ने से एक मूर्धन्य कलाकार की संघर्ष-गाथा के कई पहलू समझ में आते हैं। उस परिवेश, उन मित्रों और उनके सम्बन्धों पर भी रोशनी पड़ती है जिन्होंने रज़ा को एक व्यक्ति और कलाकार के रूप में विकसित होने में भूमिका निभाई। यह एक तरह का अनौपचारिक रिकॉर्ड भी है जो हमें बताता है कि हमारे कुछ कला-मूर्धन्य अपने समय कैसे देख-समझ रहे थे, उनकी उत्सुकताएँ और बेचैनियाँ क्या थीं और एक विकासशील सौन्दर्य-बोध कैसे आकार ले रहा था।
इस पत्राचार को क्रमश: कुछ पुस्तकों में प्रकाशित करने का इरादा है। इस सीरीज़ में पहली पुस्तक रज़ा और कृष्ण खन्ना के पत्राचार की है। सौभाग्य से इन दोनों ने एक-दूसरे के पत्र सँभालकर रखे। दो मूर्धन्य कलाकारों के बीच यह पत्र-संवाद बिरला है और इसे हिन्दी अनुवाद में प्रकाशित करते हमें प्रसन्नता है।
—अशोक वाजपेयी

About Author

सैयद हैदर रज़ा

सैयद हैदर रज़ा का जन्म 1922 में मध्य प्रदेश में हुआ था और उन्होंने नागपुर स्कूल ऑफ़ आर्ट तथा सर जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट में पेंटिंग की पढ़ाई की। 1950 में फ़्रेंच सरकार की वृत्ति मिलने के बाद वे इकोले नेशनले देस ब्यू आर्ट्स, पेरिस चले गए। 1956 में रज़ा को ‘प्रिक्स दे ला क्रिटिक पुरस्कार’ मिला। 1962 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया बर्कले, अमेरिका में अतिथि व्याख्याता के रूप में सेवाएँ दी।

रज़ा ‘प्रगतिशील कलाकार समूह’ के संस्थापकों में एक थे, जिसकी स्थापना उन्होंने के.एच. आरा और एफ़.एन. सूजा के साथ की थी। उन्होंने अनेक प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया, जिनमें साओ पाउलो बिनाले—1958, 1966, 1968 तथा 1978 में फ्रांस में बिनाले दे मेंटन में तथा रॉयल अकादेमी ऑफ़ लन्दन की कंटेम्पररी इंडियन पेंटिंग की प्रदर्शनी में भी हिस्सा लिया, जो 1982 में आयोजित की गई थी।

दिसम्बर 1978 में मध्य प्रदेश की सरकार ने उनको अपने गृह राज्य में सम्मान देने के लिए तथा भोपाल में कलाकृतियों की प्रदर्शनी के लिए आमंत्रित किया। 1983 में वे ‘ललित कला अकादेमी’ के फ़ेलो निर्वाचित किए गए। 1997 में रज़ा साहब को मध्य प्रदेश सरकार का प्रतिष्ठित ‘कालिदास सम्मान’ दिया गया।

1981 में उनको भारत के राष्ट्रपति ने ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया, 2007 में ‘पद्मभूषण’ तथा 2013 में ‘पद्म-विभूषण’ से। 23 जुलाई, 2016 को उनका निधन हुआ।

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