Mahan Hastiyon Ke Antim Pal (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Sukhendu Kumar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Sukhendu Kumar
Language:
Hindi
Format:
Hardback

245

Save: 30%

In stock

Ships within:
3-5 days

In stock

Weight 0.282 g
Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789381863718 Category
Category:
Page Extent:

दर्शन के चिर प्रश्नों में मृत्यु के सवाल ने हर दौर के दार्शनिकों और विचारकों को व्याकुल किया है। लगभग सभी ने इसे समझने, इसकी व्याख्या करने और फिर जीवन-चक्र में इसकी भूमिका को जानने का प्रयास किया। लेकिन अन्तत: मृत्यु के रास्ते पर जाना पड़ा सबको ही। उन्हें भी जिन्होंने दिग-दिगन्त से अपनी ताक़त का लोहा मनवाया, और उन्हें भी जिन्होंने अपनी विनम्रता तथा आत्मबल से संसार को रहने लायक़, जीने लायक़ बनाया। जीवन अपने उरूज पर पहुँचकर जब ढलना शुरू होता है, हर किसी को मृत्यु की वास्तविकता लगातार ज़्यादा मूर्त दिखाई देने लगती है, चाहे वह कोई भी हो।
इस पुस्तक में मूल प्रश्न तो मृत्यु का ही है लेकिन उसका अवलोकन उन लोगों के सन्दर्भ में किया गया है जिन्हें हम ‘अमर’ कहते हैं, ऐसे लोग जो मरकर भी नहीं मरते। लेकिन पुस्तक का उद्देश्य यह दिखाना नहीं है कि मृत्यु ही अन्तिम सत्य है और जीवन का अन्तत: कोई अर्थ नहीं। इसका उद्देश्य मात्र इस साधारण जिज्ञासा को शान्त करना है कि जिन लोगों ने हमें जीवन के बड़े अर्थ दिए, उनके अन्तिम पल कैसे गुज़रे। अपने उपलब्धिपूर्ण जीवन को अन्तिम विदा कहते हुए उन्होंने जीवन और जगत को कैसे देखा और कैसे उन्होंने अपने जीने की व्याख्या की।
अनेक पाठकों ने हो सकता है कि अलग-अलग लोगों के जीवन-वृत्त को पढ़ते हुए इनमें से कुछ प्रसंग पढ़े हों, लेकिन यहाँ एक स्थान पर उन्हें पढ़ना हमें कुछ भिन्न निष्कर्षों तक ले जाएगा।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Mahan Hastiyon Ke Antim Pal (HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

दर्शन के चिर प्रश्नों में मृत्यु के सवाल ने हर दौर के दार्शनिकों और विचारकों को व्याकुल किया है। लगभग सभी ने इसे समझने, इसकी व्याख्या करने और फिर जीवन-चक्र में इसकी भूमिका को जानने का प्रयास किया। लेकिन अन्तत: मृत्यु के रास्ते पर जाना पड़ा सबको ही। उन्हें भी जिन्होंने दिग-दिगन्त से अपनी ताक़त का लोहा मनवाया, और उन्हें भी जिन्होंने अपनी विनम्रता तथा आत्मबल से संसार को रहने लायक़, जीने लायक़ बनाया। जीवन अपने उरूज पर पहुँचकर जब ढलना शुरू होता है, हर किसी को मृत्यु की वास्तविकता लगातार ज़्यादा मूर्त दिखाई देने लगती है, चाहे वह कोई भी हो।
इस पुस्तक में मूल प्रश्न तो मृत्यु का ही है लेकिन उसका अवलोकन उन लोगों के सन्दर्भ में किया गया है जिन्हें हम ‘अमर’ कहते हैं, ऐसे लोग जो मरकर भी नहीं मरते। लेकिन पुस्तक का उद्देश्य यह दिखाना नहीं है कि मृत्यु ही अन्तिम सत्य है और जीवन का अन्तत: कोई अर्थ नहीं। इसका उद्देश्य मात्र इस साधारण जिज्ञासा को शान्त करना है कि जिन लोगों ने हमें जीवन के बड़े अर्थ दिए, उनके अन्तिम पल कैसे गुज़रे। अपने उपलब्धिपूर्ण जीवन को अन्तिम विदा कहते हुए उन्होंने जीवन और जगत को कैसे देखा और कैसे उन्होंने अपने जीने की व्याख्या की।
अनेक पाठकों ने हो सकता है कि अलग-अलग लोगों के जीवन-वृत्त को पढ़ते हुए इनमें से कुछ प्रसंग पढ़े हों, लेकिन यहाँ एक स्थान पर उन्हें पढ़ना हमें कुछ भिन्न निष्कर्षों तक ले जाएगा।

About Author

सुखेन्दु कुमार

बिहार के मुंगेर ज़िला अन्तर्गत बरबीघा में 17 फरवरी, 1969 को जन्मे सुखेन्दु कुमार की मैट्रिक तक की शिक्षा बरबीघा में पूरी हुई। तत्पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए बिहार के प्रमुख टी.एन.बी. कॉलेज भागलपुर, पटना विश्वविद्यालय अन्तर्गत स्नातकोत्तर, इतिहास में दरभंगा हाउस से एम.ए. और पटना ट्रेनिंग कॉलेज से बी.एड.। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के पटना केन्द्र से पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक के साथ ही राँची स्थित दैनिक 'प्रभात खबर' में एक माह का प्रशिक्षण। 

क़रीब तीन वर्षों तक मासिक पत्रिका 'समग्र विचार' का सम्पादन, हरिद्वार से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'शाश्वत ज्योति' के सम्पादकीय मंडल में शामिल। राष्ट्रकवि दिनकर की कर्मभूमि पर स्थापित साहित्य परिषद् के प्रवक्ता का दायित्व। इसकी वार्षिक पत्रिका 'प्रेरणा' का सम्पादन।

वर्तमान में शेखपुरा ज़िला अन्तर्गत प्रतिष्ठित +2 उच्च विद्यालय, बरबीघा में विगत 11 वर्षों से अद्यतन सामाजिक विज्ञान का अध्यापन।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Mahan Hastiyon Ke Antim Pal (HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED