SaleSold outPaperback
Bhagawan Parshuram (HB)
₹795 ₹636
Save: 20%
Krishnavtar : Vol. 2 : Rukmini Haran (HB)
₹550 ₹440
Save: 20%
Bhagwan Parshuram (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
K. M. Munshi
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
K. M. Munshi
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹350 ₹245
Save: 30%
Out of stock
Receive in-stock notifications for this.
Ships within:
3-5 days
Out of stock
ISBN:
SKU
9788171788248
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
आर्य-संस्कृति का उषःकाल ही था, जब भृगुवंशी महर्षि जमदग्नि-पत्नी रेणुका के गर्भ से परशुराम का जन्म हुआ। यह वह समय था जब सरस्वती और हषद्वती नदियों के बीच फैले आर्यावर्त्त में यदु और पुरु, भरत और तृत्सु, तर्वसु और अनु, द्रह्यू और जन्हु तथा भृगु जैसी आर्य जातियाँ निवसित थीं और जहाँ वसिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, अंगिरा, गौतम और कण्व आदि महापुरुषों के आश्रमों से गुंजरित दिव्य ऋचाएँ आर्यधर्म का संस्कार-संस्थापन कर रही थीं। लेकिन दूसरी ओर सम्पूर्ण आर्यावर्त्त, नर्मदा से मथुरा तक शासन कर रहे हैहयराज सहस्रार्जुन के लोमहर्षक अत्याचारों से त्रस्त था। ऐसे में युवावस्था में प्रवेश कर रहे परशुराम ने आर्य-संस्कृति को ध्वस्त करने वाले हैहयराज की प्रचंडता को चुनौती दी और अपनी आर्यनिष्ठा, तेजस्विता, संगठन-क्षमता, साहस और अपरिमित शौर्य के बल पर विजयी हुए। संक्षेप में कहें तो यह उपन्यास एक युगपुरुष की ऐसी शौर्यगाथा है जो किसी भी युग में अन्याय और दमन के सक्रिय प्रतिरोध की प्रेरणा देती रहेगी।
Be the first to review “Bhagwan Parshuram (PB)” Cancel reply
Description
आर्य-संस्कृति का उषःकाल ही था, जब भृगुवंशी महर्षि जमदग्नि-पत्नी रेणुका के गर्भ से परशुराम का जन्म हुआ। यह वह समय था जब सरस्वती और हषद्वती नदियों के बीच फैले आर्यावर्त्त में यदु और पुरु, भरत और तृत्सु, तर्वसु और अनु, द्रह्यू और जन्हु तथा भृगु जैसी आर्य जातियाँ निवसित थीं और जहाँ वसिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, अंगिरा, गौतम और कण्व आदि महापुरुषों के आश्रमों से गुंजरित दिव्य ऋचाएँ आर्यधर्म का संस्कार-संस्थापन कर रही थीं। लेकिन दूसरी ओर सम्पूर्ण आर्यावर्त्त, नर्मदा से मथुरा तक शासन कर रहे हैहयराज सहस्रार्जुन के लोमहर्षक अत्याचारों से त्रस्त था। ऐसे में युवावस्था में प्रवेश कर रहे परशुराम ने आर्य-संस्कृति को ध्वस्त करने वाले हैहयराज की प्रचंडता को चुनौती दी और अपनी आर्यनिष्ठा, तेजस्विता, संगठन-क्षमता, साहस और अपरिमित शौर्य के बल पर विजयी हुए। संक्षेप में कहें तो यह उपन्यास एक युगपुरुष की ऐसी शौर्यगाथा है जो किसी भी युग में अन्याय और दमन के सक्रिय प्रतिरोध की प्रेरणा देती रहेगी।
About Author
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
गुजराती के सुप्रसिद्ध कथाकार, इतिहास और संस्कृति के मर्मज्ञ तथा प्राच्य विद्या के बहुश्रुत विद्वान।
जन्म : 30 दिसम्बर, 1887, भड़ौच (गुजरात)।
शिक्षा : बी.ए., एल.एल.बी., डी.लिट्., एल.एल.डी.।
प्रारम्भ (1915) में ‘यंग इंडिया’ के संयुक्त सम्पादक, सन् 1938 से आजीवन, भारतीय विद्या भवन के अध्यक्ष और ‘भवन्स जर्नल’ के सम्पादक। सन् 1937-57 के दौरान दस वर्षों तक गुजराती साहित्य परिषद की अध्यक्षता की। सन् 1944 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष। सन् 1951 से मृत्युपर्यन्त वह संस्कृत विश्व परिषद के भी अध्यक्ष रहे। सन् 1952 से 1957 तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का पद-भार सँभाला। उसी दौरान सन् 1957 में उन्होंने भारतीय इतिहास कांग्रेस की अध्यक्षता की।
प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ : ‘लोमहर्षिणी’, ‘लोपामुद्रा’, ‘भगवान परशुराम’, ‘तपस्विनी’, ‘पृथ्वीवल्लभ’, ‘भग्नपादुका’, ‘पाटण का प्रभुत्व’, कृष्णावतार के सात खंड—‘बंसी की धुन’, ‘रुक्मिणीहरण’, ‘पाँच पांडव’, ‘महाबली भीम’, ‘सत्यभामा’, ‘महामुनि व्यास’, ‘युधिष्ठिर’ (उपन्यास); ‘वाह रे मैं वाह’ (नाटक); ‘आधे रास्ते’, ‘सीधी चढ़ान’, ‘स्वप्नसिद्धि की खोज में’ (आत्मकथा के तीन खंड)।
निधन : 8 फरवरी, 1971
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Bhagwan Parshuram (PB)” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Ganeshshankar Vidyarthi – Volume 1 & 2
Save: 30%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.