Kissa Besir pair (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Prabhat Tripathi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Prabhat Tripathi
Language:
Hindi
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Hardback

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यह उपन्यास स्मृतियों की क़िस्सागोई है जिसके केन्द्र में इतिहास प्रवर्तक घटनाएँ और व्यक्तित्व नहीं हैं। हो भी नहीं सकते; क्योंकि वे हमारे दैनिक जीवन से दूर कहीं, वाक़ई इतिहास नाम की उस जगह में रहते होंगे, जहाँ तनखैये इतिहासकार बग़ल में काग़ज़-क़लम-कूची लेकर बैठते होंगे। हमारे इस जीवन में जिनकी मौजूदगी, बस कुछ डरावनी छायाओं की तरह दर्ज होती चलती है। हम यानी लोग, जिनके ऊपर जीवन को बदलने की नहीं, सिर्फ़ उसे जीने की ज़िम्मेदारी होती है।
यह उन्हीं हममें से एक के मानसिक भूगोल की यात्रा है, जिसमें हम दिन-दिन बनते इतिहास को जैसे एक सूक्ष्मदर्शी की मदद से, उसकी सबसे पतली शिराओं में गति करते देखते हैं। जो नंगी आँखों दिखाई नहीं देती। वह गति, जिसका दायित्व एक व्यक्ति के ऊपर है, वही जिसका भोक्ता है, वही द्रष्टा। वह गति जो उसकी भौतिक-सामाजिक-राजनीतिक उपस्थिति के इहलोक से उधर एक इतने ही विराट संसार की उपस्थिति के प्रति हमें सचेत करती है।
लेखक यहाँ हमारे इहलोक के अन्तिम सिरे पर एक चहारदीवारी के दरवाज़े-सा खड़ा मिलता है, जो इस वृत्तान्त में खुलता है; और हमें उस चहारदीवारी के भीतर बसी अत्यन्त जटिल और समानान्तर जारी दुनिया में ले जाता है, जो हम सबकी दुनिया है, अलग-अलग जगहों पर खड़े हम उसके अलग-अलग दरवाज़े हैं।
उन्हीं में से एक दरवाज़ा यहाँ इन पन्नों में खुल रहा है।
अद्भुत है यहाँ से समय को बहते देखना।
यह उपन्यास सोदाहरण बताता है कि न तो जीना ही, केवल शारीरिक प्रक्रिया है, और न लिखना ही।

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Description

यह उपन्यास स्मृतियों की क़िस्सागोई है जिसके केन्द्र में इतिहास प्रवर्तक घटनाएँ और व्यक्तित्व नहीं हैं। हो भी नहीं सकते; क्योंकि वे हमारे दैनिक जीवन से दूर कहीं, वाक़ई इतिहास नाम की उस जगह में रहते होंगे, जहाँ तनखैये इतिहासकार बग़ल में काग़ज़-क़लम-कूची लेकर बैठते होंगे। हमारे इस जीवन में जिनकी मौजूदगी, बस कुछ डरावनी छायाओं की तरह दर्ज होती चलती है। हम यानी लोग, जिनके ऊपर जीवन को बदलने की नहीं, सिर्फ़ उसे जीने की ज़िम्मेदारी होती है।
यह उन्हीं हममें से एक के मानसिक भूगोल की यात्रा है, जिसमें हम दिन-दिन बनते इतिहास को जैसे एक सूक्ष्मदर्शी की मदद से, उसकी सबसे पतली शिराओं में गति करते देखते हैं। जो नंगी आँखों दिखाई नहीं देती। वह गति, जिसका दायित्व एक व्यक्ति के ऊपर है, वही जिसका भोक्ता है, वही द्रष्टा। वह गति जो उसकी भौतिक-सामाजिक-राजनीतिक उपस्थिति के इहलोक से उधर एक इतने ही विराट संसार की उपस्थिति के प्रति हमें सचेत करती है।
लेखक यहाँ हमारे इहलोक के अन्तिम सिरे पर एक चहारदीवारी के दरवाज़े-सा खड़ा मिलता है, जो इस वृत्तान्त में खुलता है; और हमें उस चहारदीवारी के भीतर बसी अत्यन्त जटिल और समानान्तर जारी दुनिया में ले जाता है, जो हम सबकी दुनिया है, अलग-अलग जगहों पर खड़े हम उसके अलग-अलग दरवाज़े हैं।
उन्हीं में से एक दरवाज़ा यहाँ इन पन्नों में खुल रहा है।
अद्भुत है यहाँ से समय को बहते देखना।
यह उपन्यास सोदाहरण बताता है कि न तो जीना ही, केवल शारीरिक प्रक्रिया है, और न लिखना ही।

About Author

प्रभात त्रिपाठी

जन्म : 14 सितम्बर, 1941; रायगढ़ (छ.ग.)।

०शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी., सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.)।

प्रकाशन : ‘खिड़की से बरसात’ (अशोक वाजपेयी द्वारा सम्पादित 'पहचान' सीरिज), ‘नहीं लिख सका मैं’, ‘आवाज़’, ‘जग से ओझल’, ‘सड़क पर चुपचाप’, ‘लिखा मुझे वृक्षों ने’, ‘साकार समय में’, ‘बेतरतीब’ (कविता); ‘सपना शुरू’, ‘अनात्मकथा’ (उपन्यास); ‘प्रतिबद्धता और मुक्तिबोध का काव्य’, ‘रचना के साथ’, ‘पुनश्च’ (आलोचना); ‘तलघर और अन्य कहानियाँ’ (कहानी); ‘कुछ सच कुछ सपने’, ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ (अन्य गद्य)।

ओड़िया से अनुवाद : ‘समुद्र : सीताकान्त महापात्र’, ‘सीताकान्त महापात्र की प्रतिनिधि कविताएँ’, ‘गोपीनाथ मोहंती की कहानियाँ’, ‘अपार्थिव प्रेम कविता : हरप्रसाद दास’, ‘वंश : महाभारत कविता : हरप्रसाद दास’, ‘शैल कल्प : राजेन्द्र किशोर पंडा’।

सम्पादन : ‘पूर्वग्रह’ के प्रारम्भिक अंकों के सम्पादन में विशेष सहयोग, 1994-95 में म.प्र. साहित्य अकादेमी की पत्रिका ‘साक्षात्कार’ का सम्पादन, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के लिए भवानीप्रसाद मिश्र की रचनाओं के संकलन का सम्पादन, चन्द्रकान्त देवताले की कविताओं का सम्पादन।

पुरस्कार : ‘वागीश्वरी पुरस्कार’, ‘माखनलाल चतुर्वेदी सम्मान’, ‘सौहार्द्र पुरस्कार’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘मुक्तिबोध सम्मान’, ‘कृष्ण बलदेव वैद सम्मान’ आदि।

1994-95 में ‘म.प्र. साहित्य अकादेमी’ के सचिव, 2002-03 में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में अतिथि लेखक।

 

 

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