Hum Hushmat : Vol. 1 (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Krishna Sobti
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Krishna Sobti
Language:
Hindi
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Hardback

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‘हम हशमत’ बोलते शब्द-चित्रों की एक घूमती हुई रील है। एक विस्तृत जीवन-फलक जैसे घूमता है और सामने एक के बाद एक चित्र उभरते जाते हैं—साफ़ और जीवन्त। और, अन्त में जब पूरी रील घूम जाती है तो एक कथा अपने-आप बुन जाती है—एक लम्बी जीवन-चित्र-कथा, जिसमें हर चित्र घटना है और हर चेहरा नायक। इन चेहरों में विख्यात लेखक हैं, पत्रकार हैं और अन्य अज़ीज़ हैं जिनमें से बहुतेरे आपके परिचित हैं। पार्टियाँ और दावतें आपने भी देखी होंगी, लेकिन टैक्सी ड्राइवर और नानबाई जैसे लोगों के बारे में आप शायद न जानने का भाव दिखाएँ, जबकि वास्तव में आप इन्हें भी जान रहे होते हैं—किसी भी मोड़ पर, किसी भी समय इनसे आपकी मुलाक़ात हो जाती है। यही चेहरे हैं जिनसे ‘हशमत’ मिलते हैं और जो एक-दूसरे से अलग होकर भी परस्पर जुड़े हुए हैं तथा उसी जीवन-प्रवाह के अंग हैं जिसमें हम-आप और सारे ही लोग बह रहे हैं।
‘हशमत’ को जीवन के सही और सम्पूर्ण मूल्यों की शिनाख़्त की बेचैनी है। अन्तरंग बातचीत और अपनी तटस्थ दृष्टि के ज़रिए वे साहित्य के वास्तविक सन्दर्भों को खोजना और समाज व व्यक्ति के सत्य को उजागर करना चाहते हैं, वैचारिक गुत्थियों और व्यवस्थामूलक पेचीदगियों को सुलझाना चाहते हैं। और, अन्त में जब ‘हशमत’ अपना परिचय भी दे डालते हैं तो पाठकीय जिज्ञासा सुखद विस्मय में बदल जाती है क्योंकि ‘हशमत’ के रूप में स्वयं कृष्णा सोबती हैं जिन्होंने ‘हम हशमत’ जैसी समर्थ रचना द्वारा फिर यह सिद्ध कर दिया है कि वह एक सिद्धहस्त कथा-लेखिका के साथ-साथ सार्थक रचना-दृष्टि से सम्पन्न शब्द-चित्रकार भी हैं।

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Description

‘हम हशमत’ बोलते शब्द-चित्रों की एक घूमती हुई रील है। एक विस्तृत जीवन-फलक जैसे घूमता है और सामने एक के बाद एक चित्र उभरते जाते हैं—साफ़ और जीवन्त। और, अन्त में जब पूरी रील घूम जाती है तो एक कथा अपने-आप बुन जाती है—एक लम्बी जीवन-चित्र-कथा, जिसमें हर चित्र घटना है और हर चेहरा नायक। इन चेहरों में विख्यात लेखक हैं, पत्रकार हैं और अन्य अज़ीज़ हैं जिनमें से बहुतेरे आपके परिचित हैं। पार्टियाँ और दावतें आपने भी देखी होंगी, लेकिन टैक्सी ड्राइवर और नानबाई जैसे लोगों के बारे में आप शायद न जानने का भाव दिखाएँ, जबकि वास्तव में आप इन्हें भी जान रहे होते हैं—किसी भी मोड़ पर, किसी भी समय इनसे आपकी मुलाक़ात हो जाती है। यही चेहरे हैं जिनसे ‘हशमत’ मिलते हैं और जो एक-दूसरे से अलग होकर भी परस्पर जुड़े हुए हैं तथा उसी जीवन-प्रवाह के अंग हैं जिसमें हम-आप और सारे ही लोग बह रहे हैं।
‘हशमत’ को जीवन के सही और सम्पूर्ण मूल्यों की शिनाख़्त की बेचैनी है। अन्तरंग बातचीत और अपनी तटस्थ दृष्टि के ज़रिए वे साहित्य के वास्तविक सन्दर्भों को खोजना और समाज व व्यक्ति के सत्य को उजागर करना चाहते हैं, वैचारिक गुत्थियों और व्यवस्थामूलक पेचीदगियों को सुलझाना चाहते हैं। और, अन्त में जब ‘हशमत’ अपना परिचय भी दे डालते हैं तो पाठकीय जिज्ञासा सुखद विस्मय में बदल जाती है क्योंकि ‘हशमत’ के रूप में स्वयं कृष्णा सोबती हैं जिन्होंने ‘हम हशमत’ जैसी समर्थ रचना द्वारा फिर यह सिद्ध कर दिया है कि वह एक सिद्धहस्त कथा-लेखिका के साथ-साथ सार्थक रचना-दृष्टि से सम्पन्न शब्द-चित्रकार भी हैं।

About Author

कृष्णा सोबती

कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी, 1925 को गुजरात के उस हिस्से में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। अपनी लम्बी साहित्यिक यात्रा में कृष्णा सोबती ने हर नई कृति के साथ अपनी क्षमताओं का अतिक्रमण किया। निकष में विशेष कृति के रूप में प्रकाशित डार से बिछुड़ी से लेकर मित्रो मरजानी, यारों के यार, तिन पहाड़, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अँधेरे के, ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की, दिलो-दानिश, गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान, चन्ना, हम हशमत, समय सरगम, शब्दों के आलोक में, जैनी मेहरबान सिंह, सोबती-वैद संवाद, लद्दाख : बुद्ध का कमण्डल, मुक्तिबोध : एक व्यक्तित्व सही की तलाश में, लेखक का जनतंत्र और मार्फ़त दिल्ली तक उनकी रचनात्मकता ने जो बौद्धिक उत्तेजना, आलोचनात्मक विमर्श, सामाजिक और नैतिक बहसें साहित्य-संसार में पैदा कीं, उनकी अनुगूँज पाठकों में बराबर बनी रही।

ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार और साहित्य अकादेमी की महत्तर सदस्यता के अतिरिक्त अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों और अलंकरणों से शोभित कृष्णा सोबती कम लिखने को ही अपना परिचय मानती थीं, जिसे स्पष्ट इस तरह किया जा सकता है कि उनका ‘कम लिखना’ दरअसल ‘विशिष्ट’ लिखना था।

निधन 25 जनवरी, 2019 को दिल्ली में हुआ।

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