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Janjatiye Mithak : Udiya Aadivasiyon Ki Kahaniyan (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Veriar Elwin
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Veriar Elwin
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹1,595 ₹1,117
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ISBN:
SKU
9788126715473
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
यह पुस्तक हमें ओड़िया की जनजातियों की लगभग एक हज़ार लोककथाओं से परिचित कराती है। इसमें भतरा, बिंझवार, गदबा, गोंड और मुरिया, झोरिया और पेंगू, जुआंग, कमार, कोंड, परेंगा, साँवरा आदि की लोककथाओं को संगृहीत किया गया है।
इन कहानियों के माध्यम से आदिवासियों के जीवन को सही परिप्रेक्ष्य में देखा-परखा जा सकता है। इन जनजातियों में आपस में अनेक समानताएँ हैं। उनकी दैनन्दिन जीवन-शैली, उनकी अर्थव्यवस्था, उनके सामाजिक संगठन, यहाँ तक कि उनके विश्वासों और आचार-व्यवहार में भी समानता पाई जाती है। जहाँ भी उनमें विभिन्नताएँ हैं, वह जातीय वैशिष्ट्य के कारण नहीं, वरन् परिवेश, शिक्षा और हिन्दू प्रभाव के फलस्वरूप आई हैं। तुलनात्मक दृष्टि से एक आदिम कोंड एक आदिम दिदयि से अधिक समानता रखता है बजाय उत्तर-पश्चिम पर्वतीय क्षेत्र के किसी कोंड के जो रसेलकोंडा मैदानी क्षेत्र के कोंड के अधिक समीप लगता है।
इन रोचक कहानियों का क्रमवार व विषयवार संयोजन किया गया है, ताकि पाठक की तारतम्यता बनी रहे। सदियों से दबे आदिवासियों की ये कहानियाँ जहाँ सामान्य पाठक के लिए ज्ञानवर्द्धक हैं, वहीं शोधकर्त्ताओं को शोध के लिए एक नई ज़मीन भी मुहैया कराती हैं।
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Description
यह पुस्तक हमें ओड़िया की जनजातियों की लगभग एक हज़ार लोककथाओं से परिचित कराती है। इसमें भतरा, बिंझवार, गदबा, गोंड और मुरिया, झोरिया और पेंगू, जुआंग, कमार, कोंड, परेंगा, साँवरा आदि की लोककथाओं को संगृहीत किया गया है।
इन कहानियों के माध्यम से आदिवासियों के जीवन को सही परिप्रेक्ष्य में देखा-परखा जा सकता है। इन जनजातियों में आपस में अनेक समानताएँ हैं। उनकी दैनन्दिन जीवन-शैली, उनकी अर्थव्यवस्था, उनके सामाजिक संगठन, यहाँ तक कि उनके विश्वासों और आचार-व्यवहार में भी समानता पाई जाती है। जहाँ भी उनमें विभिन्नताएँ हैं, वह जातीय वैशिष्ट्य के कारण नहीं, वरन् परिवेश, शिक्षा और हिन्दू प्रभाव के फलस्वरूप आई हैं। तुलनात्मक दृष्टि से एक आदिम कोंड एक आदिम दिदयि से अधिक समानता रखता है बजाय उत्तर-पश्चिम पर्वतीय क्षेत्र के किसी कोंड के जो रसेलकोंडा मैदानी क्षेत्र के कोंड के अधिक समीप लगता है।
इन रोचक कहानियों का क्रमवार व विषयवार संयोजन किया गया है, ताकि पाठक की तारतम्यता बनी रहे। सदियों से दबे आदिवासियों की ये कहानियाँ जहाँ सामान्य पाठक के लिए ज्ञानवर्द्धक हैं, वहीं शोधकर्त्ताओं को शोध के लिए एक नई ज़मीन भी मुहैया कराती हैं।
About Author
वेरियर एलविन
सन् 1902; डोवर, इंग्लैड में जन्म।
वेरियर एलविन जब ऑक्सफ़ोर्ड में छात्र थे, तब उन्होंने भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि दिखाई थी। वह एक धर्मनिष्ठ ईसाई थे और उन्होंने एक मिशनरी के रूप में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था। वे 1927 में एक मिशनरी के रूप में भारत आए तथा पुणे में क्रिश्चियन सर्विस सोसाइटी में शामिल हुए।
एलविन इंग्लैंड से भारत मुख्यतः मिशनरी कार्य के लिए आए थे मगर अपने अन्तर्द्वन्द्वों, गांधी जी के विचारों और सान्निध्य, जनजातियों की स्थिति, मिशनरियों के कार्यों के तरीक़ों को देखकर उनके विचार बदल गए। फिर उन्होंने जनजातियों के बीच रहकर उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए काम करने का निश्चय किया और इसी दौरान अपने विख्यात मानवशास्त्रीय शोध-कार्य किए।
अपने शोध-कार्यों के कारण वह भारतीय जनजातीय जीवन-शैली और संस्कृति के क्षेत्र में बड़े विद्वानों में से एक बन गए, ख़ासकर गोंडी लोगों के बीच बहुत मशहूर हुए। उन्होंने 1945 में मानव विज्ञान सर्वेक्षण के उप-निदेशक के रूप में भी कार्य किया। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने भारतीय नागरिकता ले ली। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने उन्हें उत्तर-पूर्वी भारत के आदिवासी मामलों के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया और बाद में वे नेफा जिसे अब अरुणाचल प्रदेश के नाम से जाना जाता है, वहाँ की सरकार के एंथ्रोपोलॉजिकल सलाहकार बनाए गए। भारत सरकार ने उन्हें 1961 में पद्मभूषण से सम्मानित किया। उनकी आत्मकथा ‘द ट्राइबल वर्ल्ड ऑफ़ वेरियर एलविन’ के लिए मरणोपरान्त उन्हें 1965 का ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ दिया गया।
प्रमुख कृतियाँ—‘हत्या और आत्महत्या के बीच मारिया’, ‘एक गोंड गाँव में जीवन’, ‘अगरिया’, ‘जनजातीय मिथक : उड़िया आदिवासियों की कहानियाँ’, ‘महाकोशल अंचल की लोककथाएँ’ आदि।
22 फ़रवरी, 1964; दिल्ली में निधन।
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