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Sudhiyan Us Chandan Ke Van Ki (HB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
Vishnukant Shastri
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Lokbharti
Author:
Vishnukant Shastri
Language:
Hindi
Format:
Hardback

280

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SKU 9789390625710 Category
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मैं इस दृष्टि से भाग्यवान् हूँ कि मुझे विविध क्षेत्रों के सत्पुरुषों का स्नेह-सौहार्द मिलता रहा है। जिन विशिष्ट व्यक्तियों के संपर्क  से या स्थानों के भ्रमण से जीवन समृद्ध हुआ है, उनकी याद बार-बार आती ही है। हर बार लगता है कि उस याद ने अपनी सुगन्ध से जीवन को पुन: सुरभित कर दिया। वस्तुत: घटनाएँ जब घटती हैं तब उनका प्रभाव किन-किन स्तरों पर कितनी गहराई से पड़ रहा है, इसका सम्यक बोध नहीं हो पाता। उन प्रीतिकर स्मृतियों का रोमन्थन ही स्पष्ट करता है कि उन व्यक्तियों या घटनाओं ने जीवन को कितनी प्रेरणा और स्पूâर्ति प्रदान की थी। उनके प्रति कृतज्ञता-बोध ही मुझे उनकी स्मृतियों को लिपिबद्ध करने को उत्साहित करता रहा है। इस तरह ये संस्मरण लिखे जाते रहे।

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Description

मैं इस दृष्टि से भाग्यवान् हूँ कि मुझे विविध क्षेत्रों के सत्पुरुषों का स्नेह-सौहार्द मिलता रहा है। जिन विशिष्ट व्यक्तियों के संपर्क  से या स्थानों के भ्रमण से जीवन समृद्ध हुआ है, उनकी याद बार-बार आती ही है। हर बार लगता है कि उस याद ने अपनी सुगन्ध से जीवन को पुन: सुरभित कर दिया। वस्तुत: घटनाएँ जब घटती हैं तब उनका प्रभाव किन-किन स्तरों पर कितनी गहराई से पड़ रहा है, इसका सम्यक बोध नहीं हो पाता। उन प्रीतिकर स्मृतियों का रोमन्थन ही स्पष्ट करता है कि उन व्यक्तियों या घटनाओं ने जीवन को कितनी प्रेरणा और स्पूâर्ति प्रदान की थी। उनके प्रति कृतज्ञता-बोध ही मुझे उनकी स्मृतियों को लिपिबद्ध करने को उत्साहित करता रहा है। इस तरह ये संस्मरण लिखे जाते रहे।

About Author

विष्णुकान्त शास्त्री

जन्म : 2 मई, 1929; कलकत्ता।
शिक्षा : एम.ए., एल-एल.बी.।
1953 से कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक। आचार्य के पद से मई 1994 को अवकाश ग्रहण।
प्रमुख कृतियाँ : ‘कवि निराला की वेदना तथा अन्य निबन्ध’, ‘कुछ चन्दन की कुछ कपूर की’, ‘चिन्तन मुद्रा’, ‘अनुचिन्तन’ (साहित्य समीक्षा); ‘तुलसी के हिय हेरि’ (तुलसी केन्द्रित निबन्ध); ‘बांग्लादेश के सन्दर्भ में’ (रिपोर्ताज); ‘स्मरण को पाथेय बनने दो’, ‘सुधियाँ उस चन्दन के वन की’ (संस्मरण एवं यात्रा वृत्तान्त); ‘अनन्त पथ के यात्री : धर्मवीर भारती’, ‘भक्ति और शरणागति’ (विवेचन); ‘शान और कर्म’ (ईशावास्य प्रवचन); ‘जीवन पथ पर चलते-चलते’ (काव्य)।
देश-विदेश की विविध साहित्यिक संस्थाओं में व्याख्यान, विविध साहित्यिक सम्मानों एवं पुरस्कारों से समादृत। 1944 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध, 1977 से सक्रिय राजनीति में प्रवेश। ‘जनता पार्टी’ के सदस्य के रूप में पश्चिम बंगाल विधानसभा में विधायक (1977-1982); प. बंगाल प्रदेश भाजपा के दो बार अध्यक्ष, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (1988-1993); संसद सदस्य-राज्यसभा (1992 से 1998); 2 दिसम्बर, 1999 को हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त, 24 नवम्बर, 2000 से उत्तर प्रदेश के राज्यपाल।
निधन : 17 अप्रैल, 2005

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