Vishnugupta Chanakya (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Virendra Kumar Gupta
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
Author:
Virendra Kumar Gupta
Language:
Hindi
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Paperback

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कवि, कथाकार एवं चिन्तक वीरेंद्रकुमार गुप्त का प्रस्तुत उपन्यास उनके चिन्तनशील, शोधक व्यक्तित्व की उत्कृष्ट देन है। उपन्यास अत्यन्त मनोरंजक है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सकता है। साथ-साथ वह उस काल-विशेष के इतिहास एवं जीवन की एक प्रामाणिक प्रस्तुति भी है। उस काल में सामाजिक व्यवहार, संस्कृति एवं राजनीतिक घटनाओं का इतना जीवन्त चित्रण शायद ही कहीं प्राप्त हो। श्री गुप्त ने सिकन्दर-सिल्यूकस और चाणक्य-चन्द्रगुप्त के बीच संघर्ष के निमित्त से भारत की एकता, राजनीतिक सुदृढ़ता एवं सामाजिक सामंजस्य की अवधारणाओं को भारतीय मानस में स्थापित करने का सशक्त प्रयास किया है। विशेषता यह कि घटनाओं की संकुलता एवं चरित्रों की मानसिक जटिलता ने भाषा को क्लिष्ट नहीं बनाया है। वह इतनी सरल और बोधगम्य है कि सामान्य पाठक भी कृति का भरपूर आनन्द ले सकता है।
इस उपन्यास का केन्द्र चाणक्य एक षड्यंत्रकारी राजनेता न होकर एक जीवन्त पुरुष, ऋषि एवं प्रतिबद्ध राष्ट्र-निर्माता है।

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Description

कवि, कथाकार एवं चिन्तक वीरेंद्रकुमार गुप्त का प्रस्तुत उपन्यास उनके चिन्तनशील, शोधक व्यक्तित्व की उत्कृष्ट देन है। उपन्यास अत्यन्त मनोरंजक है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सकता है। साथ-साथ वह उस काल-विशेष के इतिहास एवं जीवन की एक प्रामाणिक प्रस्तुति भी है। उस काल में सामाजिक व्यवहार, संस्कृति एवं राजनीतिक घटनाओं का इतना जीवन्त चित्रण शायद ही कहीं प्राप्त हो। श्री गुप्त ने सिकन्दर-सिल्यूकस और चाणक्य-चन्द्रगुप्त के बीच संघर्ष के निमित्त से भारत की एकता, राजनीतिक सुदृढ़ता एवं सामाजिक सामंजस्य की अवधारणाओं को भारतीय मानस में स्थापित करने का सशक्त प्रयास किया है। विशेषता यह कि घटनाओं की संकुलता एवं चरित्रों की मानसिक जटिलता ने भाषा को क्लिष्ट नहीं बनाया है। वह इतनी सरल और बोधगम्य है कि सामान्य पाठक भी कृति का भरपूर आनन्द ले सकता है।
इस उपन्यास का केन्द्र चाणक्य एक षड्यंत्रकारी राजनेता न होकर एक जीवन्त पुरुष, ऋषि एवं प्रतिबद्ध राष्ट्र-निर्माता है।

About Author

वीरेंद्रकुमार गुप्त

जन्म : 29 अगस्त, 1928; सहारनपुर (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए., साहित्यरत्न।

मूलतः कवि; बाद में उपन्यास लेखन; कथा के क्षेत्र में खोजपूर्ण ऐतिहासिक विषयों में विशेष रुचि; कथा-लेखन के साथ-साथ चिन्तनपरक निबन्ध-लेखन; 1950 से 1988 तक अध्यापन; थारो, जैक लंडन, डिकेन्स, अरविन्द आदि की कई रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद; जैनेन्द्र से एक लम्बा संवाद जो ‘समय और हमֹ’ शीर्षक से 1962 में प्रकाशित; इस सबके समानान्तर बाल-साहित्य में योगदान; अंग्रेज़ी में भी चिन्तनात्मक लेखन।

प्रमुख कृतियाँ : नाटक—‘सुभद्रा-परिणय’ (1952); प्रबन्ध-काव्य—‘प्राण-द्वन्द्व’ (1963); उपन्यास—‘विष्णु गुप्त चाणक्य’, ‘मध्यरेखा’, ‘शब्द का दायरा’, ‘चार दिन’, ‘प्रियदर्शी’, ‘विजेता’; बाल उपन्यास—‘झील के पार’, ‘समुद्र पर सात दिन’ (पुरस्कृत); चिन्तन—‘Ahinsa in India's Destiny’; अप्रकाशित—उपन्यास—‘विरूप’, ‘खोने-पावने’; खंड काव्य—‘राधा सुनो’; चिन्तन—‘समय और हम’, ‘दृष्टिकोण’, ‘Nirvan-Upanishad’।

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