SaleHardback
Jagdish Chandra Mathur Rachanawali : Vol. 1 4 (HB)
₹5,000 ₹4,000
Save: 20%
Bharatendu Yug Aur Hindi Bhasha Ki Vikas Parampara (HB)
₹1,195 ₹837
Save: 30%
Nadi Mein Khada Kavi (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Sharad Joshi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Sharad Joshi
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹595 ₹417
Save: 30%
In stock
Ships within:
3-5 days
In stock
ISBN:
SKU
9788126722846
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
अस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बज़िद कि अब नहीं उठूँगी।फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि बदलकर हो जाती है अब तो नई ही उठूँगी। दादी उठती है। बिलकुल नई। नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छन्द।कथा लेखन की एक नई छटा है इस उपन्यास में। इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अन्दाज़ में चलते हैं। हमारी चिर-परिचित हदों-सरहदों को नकारते लाँघते। जाना-पहचाना भी बिलकुल अनोखा और नया है यहाँ। इसका संसार परिचित भी है और जादुई भी, दोनों के अन्तर को मिटाता। काल भी यहाँ अपनी निरन्तरता में आता है। हर होना विगत के होनों को समेटे रहता है, और हर क्षण सुषुप्त सदियाँ। मसलन, वाघा बार्डर पर हर शाम होनेवाले आक्रामक हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी राष्ट्रवादी प्रदर्शन में ध्वनित होते हैं ‘क़त्लेआम के माज़ी से लौटे स्वर’, और संयुक्त परिवार के रोज़मर्रा में सिमटे रहते हैं काल के लम्बे साए।और सरहदें भी हैं जिन्हें लाँघकर यह कृति अनूठी बन जाती है, जैसे स्त्री और पुरुष, युवक और बूढ़ा, तन व मन, प्यार और द्वेष, सोना और जागना, संयुक्त और एकल परिवार, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, मानव और अन्य जीव-जन्तु (अकारण नहीं कि यह कहानी कई बार तितली या कौवे या तीतर या सड़क या पुश्तैनी दरवाज़े की आवाज़ में बयान होती है) या गद्य और काव्य : ‘धम्म से आँसू गिरते हैं जैसे पत्थर। बरसात की बूँद।’
Be the first to review “Nadi Mein Khada Kavi (HB)” Cancel reply
Description
अस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बज़िद कि अब नहीं उठूँगी।फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि बदलकर हो जाती है अब तो नई ही उठूँगी। दादी उठती है। बिलकुल नई। नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छन्द।कथा लेखन की एक नई छटा है इस उपन्यास में। इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अन्दाज़ में चलते हैं। हमारी चिर-परिचित हदों-सरहदों को नकारते लाँघते। जाना-पहचाना भी बिलकुल अनोखा और नया है यहाँ। इसका संसार परिचित भी है और जादुई भी, दोनों के अन्तर को मिटाता। काल भी यहाँ अपनी निरन्तरता में आता है। हर होना विगत के होनों को समेटे रहता है, और हर क्षण सुषुप्त सदियाँ। मसलन, वाघा बार्डर पर हर शाम होनेवाले आक्रामक हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी राष्ट्रवादी प्रदर्शन में ध्वनित होते हैं ‘क़त्लेआम के माज़ी से लौटे स्वर’, और संयुक्त परिवार के रोज़मर्रा में सिमटे रहते हैं काल के लम्बे साए।और सरहदें भी हैं जिन्हें लाँघकर यह कृति अनूठी बन जाती है, जैसे स्त्री और पुरुष, युवक और बूढ़ा, तन व मन, प्यार और द्वेष, सोना और जागना, संयुक्त और एकल परिवार, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, मानव और अन्य जीव-जन्तु (अकारण नहीं कि यह कहानी कई बार तितली या कौवे या तीतर या सड़क या पुश्तैनी दरवाज़े की आवाज़ में बयान होती है) या गद्य और काव्य : ‘धम्म से आँसू गिरते हैं जैसे पत्थर। बरसात की बूँद।’
About Author
शरद जोशी
21 मई, 1931 को उज्जैन, मध्य प्रदेश में जन्मे शरद जोशी, होल्कर कॉलेज, इन्दौर के दिनों में ही एक लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके थे। इन्दौर के ‘नई दुनिया’ अख़बार में ‘परिक्रमा’ कॉलम से उनकी प्रसिद्धि और लेखक के रूप में पहचान बनी। पहली पुस्तक ‘परिक्रमा’ (उन्हीं लेखों का समावेश) 1958 में छपी।
उनके दो व्यंग्य नाटक ‘अन्धों का हाथी’ और ‘एक था गधा उर्फ़ अलादाद ख़ाँ’ आज भी देश-विदेश में मंचित हो रहे हैं।
अन्तिम कॉलम 'प्रतिदिन’ नवभारत टाइम्स में लगातार 7 वर्षों तक छपा।
शरद जी की 21 पुस्तकें छपी हैं—‘परिक्रमा’; ‘किसी बहाने’; ‘रहा किनारे बैठ’; ‘दूसरी सतह’; ‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ’; ‘यथासम्भव’; ‘यत्र-तत्र-सर्वत्र’; ‘यथासमय’; ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे’; ‘प्रतिदिन’ 3 भागों में; ‘नावक के तीर’; ‘मुद्रिका रहस्य’; ‘झरता नीम शाश्वत थीम’; ‘मैं, मैं और केवल मैं’; ‘शरद जोशी एक यात्रा’ (अन्य लेखकों के विचार, डॉ. शशि मिश्रा); ‘जादू की सरकार’; ‘पिछले दिनों’; ‘दो व्यंग्य नाटक’; ‘राग भोपाली’; ‘नदी में खड़ा कवि’; ‘घाव करे गम्भीर’।
सरकारी पुरस्कारों से बचते रहे। मात्र एक ‘पद्मश्री’ 1990 में उनके खाते में। पीएच.डी. के घोर विरोधी रहे, आज उन पर ही कई पीएच.डी. हो गई हैं।
हिन्दी की पहली कॉमेडी Sitcom सीरियल ‘यह जो है ज़िन्दगी’ लिखने का श्रेय भी। ‘मालगुडी डेज़’ (हिन्दी संवाद), ‘विक्रम और बेताल’, ‘सिंहासन बत्तीसी’, ‘वाह जनाब’, ‘दाने अनार के’, ‘यह दुनिया ग़ज़ब की’ सीरियल्स भी लिखे... और ‘क्षितिज’, ‘गोधूलि’, ‘उत्सव’, ‘उड़ान’, ‘चोरनी’, ‘साँच को आँच नहीं’ और ‘दिल है कि मानता नहीं’ फ़िल्मों के संवाद भी...!
निधन : 5 सितम्बर, 1991
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Nadi Mein Khada Kavi (HB)” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Horaratnam of Srimanmishra Balabhadra (Vol. 2): Hindi Vyakhya
Save: 20%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.