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Jagdish Chandra Mathur Rachanawali : Vol. 1 4 (HB)
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Jagdish Chandra Mathur, Ed. Suresh Awasthi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Radhakrishna Prakashan
Author:
Jagdish Chandra Mathur, Ed. Suresh Awasthi
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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9788183613170
Category Hindi
Category: Hindi
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जगदीशचन्द्र माथुर सृजनात्मक प्रतिभा के धनी थे। वे 14–15 वर्ष की आयु से ही लिखने लगे थे। नाटककार के रूप में विख्यात माथुर जी ने अपनी विशिष्ट शैली में चरित लेख, ललित निबन्ध और नाट्य–निबन्ध भी लिखे हैं। लेखन में उनकी इतनी रुचि थी कि जिन विभागों में उन्होंने काम किया उनकी समस्याओं के सम्बन्ध में भी बराबर लिखा। उनकी आरम्भिक रचनाएँ उस समय की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं—‘चाँद’, ‘भारत’, ‘माधुरी’, ‘सरस्वती’ और ‘रूपाभ’ में छपती थीं।
बिहार में शिक्षा सचिव के पद पर काम करते हुए उन्होंने कई सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाओं की स्थापना की और उनमें गहरी रुचि ली। अपने विचारों और मूल्यों में श्री माथुर ग्रामीण और नागर, लोक और शास्त्रीय संस्कारों व परम्पराओं के समन्वय के पक्षधर थे। इस पक्षधरता का स्वर उनके साहित्य में पूर्णत: मुखर है। उन्होंने अपनी रचनाओं की प्रकृति, रचना–प्रक्रिया और अपने विचारों एवं विश्वासों के बारे में पुस्तकों की भूमिकाओं में बहुत–कुछ लिखा है, जो उनके साहित्य को समझने में सहायक है।
प्रस्तुत रचनावली उनके सम्पूर्ण रचनाकर्म को एक स्थान पर समेटने का प्रयास है। जगदीशचन्द्र माथुर रचनावली के इस खंड को चार भागों में बाँटा गया है। इसमें उनके एकांकी तथा दो कठपुतली नाटक संकलित हैं। पहले भाग में ‘मेरे सर्वश्रेष्ठ रंग एकांकी’, दूसरे में उनके दो एकांकी ‘भोर का तारा’ और ‘ओ मेरे सपने’, तथा तीसरे भाग में पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित स्फुट एकांकी हैं, इनमें ‘मेरी बाँसुरी’ और ‘लव–कुश’ जैसी आरम्भिक रचनाएँ हैं। चौथे व अन्तिम भाग में ‘कुँवर सिंह की टेक’ और ‘गगन सवारी’ दो कठपुतली नाटकों को रखा गया है।
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Description
जगदीशचन्द्र माथुर सृजनात्मक प्रतिभा के धनी थे। वे 14–15 वर्ष की आयु से ही लिखने लगे थे। नाटककार के रूप में विख्यात माथुर जी ने अपनी विशिष्ट शैली में चरित लेख, ललित निबन्ध और नाट्य–निबन्ध भी लिखे हैं। लेखन में उनकी इतनी रुचि थी कि जिन विभागों में उन्होंने काम किया उनकी समस्याओं के सम्बन्ध में भी बराबर लिखा। उनकी आरम्भिक रचनाएँ उस समय की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं—‘चाँद’, ‘भारत’, ‘माधुरी’, ‘सरस्वती’ और ‘रूपाभ’ में छपती थीं।
बिहार में शिक्षा सचिव के पद पर काम करते हुए उन्होंने कई सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाओं की स्थापना की और उनमें गहरी रुचि ली। अपने विचारों और मूल्यों में श्री माथुर ग्रामीण और नागर, लोक और शास्त्रीय संस्कारों व परम्पराओं के समन्वय के पक्षधर थे। इस पक्षधरता का स्वर उनके साहित्य में पूर्णत: मुखर है। उन्होंने अपनी रचनाओं की प्रकृति, रचना–प्रक्रिया और अपने विचारों एवं विश्वासों के बारे में पुस्तकों की भूमिकाओं में बहुत–कुछ लिखा है, जो उनके साहित्य को समझने में सहायक है।
प्रस्तुत रचनावली उनके सम्पूर्ण रचनाकर्म को एक स्थान पर समेटने का प्रयास है। जगदीशचन्द्र माथुर रचनावली के इस खंड को चार भागों में बाँटा गया है। इसमें उनके एकांकी तथा दो कठपुतली नाटक संकलित हैं। पहले भाग में ‘मेरे सर्वश्रेष्ठ रंग एकांकी’, दूसरे में उनके दो एकांकी ‘भोर का तारा’ और ‘ओ मेरे सपने’, तथा तीसरे भाग में पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित स्फुट एकांकी हैं, इनमें ‘मेरी बाँसुरी’ और ‘लव–कुश’ जैसी आरम्भिक रचनाएँ हैं। चौथे व अन्तिम भाग में ‘कुँवर सिंह की टेक’ और ‘गगन सवारी’ दो कठपुतली नाटकों को रखा गया है।
About Author
जगदीशचन्द्र माथुर
जन्म : 16 जुलाई, 1917; शाहजहाँपुर (उ.प्र.)।
शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेज़ी) इलाहाबाद विश्वविद्यालय। सन् 1941 में आई.सी.एस. परीक्षा उत्तीर्ण। अमेरिका में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया।
प्रमुख कृतियाँ : सन् 1936 में प्रथम एकांकी ‘मेरी बाँसुरी’ का मंचन व ‘सरस्वती’ में प्रकाशन। पाँच एकांकी नाटकों का संग्रह ‘भोर का तारा’ सन् 1946 में प्रकाशित। इसके बाद ‘ओ मेरे अपने’ (1950), ‘मेरे श्रेष्ठ रंग एकांकी’, ‘कोणार्क’ (1951), ‘बंदी’ (1954), ‘शारदीया’ (1959), ‘पहला राजा’ (1969), ‘दशरथ नन्दन’ (1974) तथा ‘कुँवरसिंह की टेक’ (1954) और ‘गगन सवारी’ (1958) के अलावा दो कठपुतली नाटक भी लिखे। ‘दस तस्वीरें’ और ‘जिन्होंने जीना जाना’ में रेखाचित्र संस्मरण हैं। ‘परम्पराशील नाट्य’ उनकी समीक्षा दृष्टि का परिचायक है। ‘बहुजन-सम्प्रेषण के माध्यम’ जगदीश जी की ‘जन-संचार’ पर विशिष्ट पुस्तक मानी गई है।
सन् 1944 में बिहार के सुप्रसिद्ध सांस्कृतिक पर्व वैशाली महोत्सव का बीजारोपण किया।
सम्मान : ‘विद्यावारिधि’ की उपाधि से विभूषित, ‘कालिदास अवार्ड’ और ‘बिहार राजभाषा पुरस्कार’ से सम्मानित।
कार्य : ऑल इंडिया रेडियो में महानिदेशक रहे, फिर सूचना और प्रसारण मंत्रालय में संयुक्त सचिव। गृह मंत्रालय में हिन्दी सलाहकार के पद पर भी कार्य किया। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विज़़िटिंग फ़ेलो के अतिरिक्त अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स से जुड़े थे।
निधन : 14 मई, 1978; दिल्ली में।
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