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Sampurna Kahaniyan : Markandey (HB)
Publisher:
Lokbharti
| Author:
oth
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Lokbharti
Author:
oth
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹995 ₹796
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ISBN:
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9789386863621
Category Hindi
Category: Hindi
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प्रस्तुत संकलन में मार्कण्डेय के अब तक प्रकाशित सात कहानी-संग्रह शामिल हैं। कहना न होगा कि स्वतंत्रता के बाद लिखी गई इन कहानियों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ है। देश-विदेश में भी इनके अनुवादों पर वहाँ के आलोचकों ने लेख एवं समीक्षाएँ लिखी हैं। अत्यन्त सहज वाचन और शिल्पगत नवीनता के कारण इन कहानियों में चिन्हित समकालीन सन्दर्भ भारतीय जीवन की वास्तविकताओं को लोगों के सामने ला खड़ा करते हैं। आदर्श और बाह्य मान्यताओं वाली दृष्टि से देखे जाने के कारण संघर्ष और बदलाव की जो बातें हवा में उठाई जा रही थीं, उनके सामने इन कहानियों ने एक नया दृश्य ला खड़ा किया। अन्धकार, अशिक्षा, ग़रीबी ही नहीं धार्मिक अन्धविश्वास, शोषण और अनाचार के परिवेश को उजागर करने के कारण इन कहानियों को लोगों ने एक उपलब्धि की तरह स्वीकार किया। इस संकलन में ‘पान-फूल’, ‘महुए का पेड़‘, ‘हंसा जाई अकेला’, ‘भूदान’, ‘माही’, ‘सहज और शुभ’ तथा ‘बीच के लोग’ नामक पुस्तकें शामिल हैं।
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Description
प्रस्तुत संकलन में मार्कण्डेय के अब तक प्रकाशित सात कहानी-संग्रह शामिल हैं। कहना न होगा कि स्वतंत्रता के बाद लिखी गई इन कहानियों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ है। देश-विदेश में भी इनके अनुवादों पर वहाँ के आलोचकों ने लेख एवं समीक्षाएँ लिखी हैं। अत्यन्त सहज वाचन और शिल्पगत नवीनता के कारण इन कहानियों में चिन्हित समकालीन सन्दर्भ भारतीय जीवन की वास्तविकताओं को लोगों के सामने ला खड़ा करते हैं। आदर्श और बाह्य मान्यताओं वाली दृष्टि से देखे जाने के कारण संघर्ष और बदलाव की जो बातें हवा में उठाई जा रही थीं, उनके सामने इन कहानियों ने एक नया दृश्य ला खड़ा किया। अन्धकार, अशिक्षा, ग़रीबी ही नहीं धार्मिक अन्धविश्वास, शोषण और अनाचार के परिवेश को उजागर करने के कारण इन कहानियों को लोगों ने एक उपलब्धि की तरह स्वीकार किया। इस संकलन में ‘पान-फूल’, ‘महुए का पेड़‘, ‘हंसा जाई अकेला’, ‘भूदान’, ‘माही’, ‘सहज और शुभ’ तथा ‘बीच के लोग’ नामक पुस्तकें शामिल हैं।
About Author
मार्कण्डेय
2 मई, 1930 में गाँव—बराई, ज़िला—जौनपुर में जन्मे मार्कण्डेय की प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुई। उन्होंने आगे की पढाई प्रतापगढ़ और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अर्जित की।
मार्कण्डेय गहरे अर्थों में भारतीय सामाजिक चेतना के एक विरल कथाकार हैं। उन्होंने अपनी कहानी का आरम्भ वहीं से किया जहाँ प्रेमचन्द ने कहानी को छोडा था। प्रेमचन्द की ही तरह मार्कण्डेय भी मूलत: देशज संवेदना के कथाकार हैं। प्रेमचन्द की परम्परा से मार्कण्डेय का रिश्ता महज़ ग्रामीण यथार्थ का ही न होकर उस समूचे सामाजिक ताने-बाने का भी है जिसके बिना न तो किसी पारम्परिक समाज को समझा जा सकता है और न उसके आगत की आहटें सुनी जा सकती हैं। मार्कण्डेय देश के राजनीतिक जनतंत्र का उत्सवीकरण करने के बजाय अपनी कहानियों में उसका सामाजिक और आर्थिक क्रिटीक रचते हैं।
प्रमुख कृतियाँ—उपन्यास—'सेमल के फूल', ‘अग्निबीज’; ‘पानफूल’, ‘हंसा जाई अकेला’, ‘महुए का पेड़’, ‘भूदान’, ‘माही’, ‘सहज और शुभ’, ‘बीच के लोग’, ‘हलयोग’; एकांकी-संग्रह—‘पत्थर व परछाइयाँ’; काव्य-संग्रह—'सपने तुम्हारे थे', ‘यह पृथ्वी तुम्हें देता हूँ’; आलोचना—‘कहानी की बात’, ‘नयी कहानी : यथार्थवादी नजरिया’, ‘प्रगतिशील साहित्य की ज़िम्मेदारी’; ‘कल्पना’ में चक्रधर नाम से लिखा गया स्तम्भ ‘चक्रधर की साहित्यधारा' (साहित्य-संवाद) आदि। प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘कथा’ का सम्पादन।
निधन : 18 मार्च, 2010 ।
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