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Patrangpur Puran (PB)
Publisher:
RADHA
| Author:
Mrinal Pandey
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
RADHA
Author:
Mrinal Pandey
Language:
Hindi
Format:
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9788183613668
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Category: Hindi
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रचनात्मक गद्य की गहराई और पत्रकारिता की सहज सम्प्रेषणीयता से समृद्ध मृणाल पाण्डे की कथाकृतियाँ हिन्दी जगत में अपने अलग तेवर के लिए जानी जाती हैं। उनकी रचनाओं में कथा का प्रवाह और शैली उनका कथ्य स्वयं बुनता है।
‘पटरंगपुर पुराण’ के केन्द्र में पटरंगपुर नाम का एक गाँव है जो बाद में एक क़स्बे में तब्दील हो जाता है। इसी गाँव के विकास-क्रम के साथ चलते हुए यह उपन्यास कुमाऊँ-गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र के जीवन में पीढ़ी-दर-पीढ़ी आए बदलाव का अंकन करता है। कथा-रस का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हुए इसमें काली कुमाऊँ के राजा से लेकर भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति तक के समय को लिया गया है।
परिनिष्ठित हिन्दी के साथ-साथ पहाड़ी शब्दों और कथन-शैलियों का उपयोग इस उपन्यास को विशेष रूप से आकर्षित बनाता है, इसे पढ़ते हुए हम न केवल सम्बन्धित क्षेत्र के लोक-प्रचलित इतिहास से अवगत होते हैं, बल्कि भाषा के माध्यम से वहाँ का जीवन भी अपनी तमाम सांस्कृतिक और सामाजिक भंगिमाओं के साथ हमारे सामने साकार हो उठता है। कहानियों-क़िस्सों की चलती-फिरती खान, विष्णुकुटी की आमा की बोली में उतरी यह कथा सचमुच एक पुराण जैसी ही है।
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Description
रचनात्मक गद्य की गहराई और पत्रकारिता की सहज सम्प्रेषणीयता से समृद्ध मृणाल पाण्डे की कथाकृतियाँ हिन्दी जगत में अपने अलग तेवर के लिए जानी जाती हैं। उनकी रचनाओं में कथा का प्रवाह और शैली उनका कथ्य स्वयं बुनता है।
‘पटरंगपुर पुराण’ के केन्द्र में पटरंगपुर नाम का एक गाँव है जो बाद में एक क़स्बे में तब्दील हो जाता है। इसी गाँव के विकास-क्रम के साथ चलते हुए यह उपन्यास कुमाऊँ-गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र के जीवन में पीढ़ी-दर-पीढ़ी आए बदलाव का अंकन करता है। कथा-रस का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हुए इसमें काली कुमाऊँ के राजा से लेकर भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति तक के समय को लिया गया है।
परिनिष्ठित हिन्दी के साथ-साथ पहाड़ी शब्दों और कथन-शैलियों का उपयोग इस उपन्यास को विशेष रूप से आकर्षित बनाता है, इसे पढ़ते हुए हम न केवल सम्बन्धित क्षेत्र के लोक-प्रचलित इतिहास से अवगत होते हैं, बल्कि भाषा के माध्यम से वहाँ का जीवन भी अपनी तमाम सांस्कृतिक और सामाजिक भंगिमाओं के साथ हमारे सामने साकार हो उठता है। कहानियों-क़िस्सों की चलती-फिरती खान, विष्णुकुटी की आमा की बोली में उतरी यह कथा सचमुच एक पुराण जैसी ही है।
About Author
मृणाल पाण्डे
जन्म : 26 फरवरी, 1946 को टीकमगढ़, मध्य प्रदेश में।
शिक्षा : एम.ए. (अंग्रेज़ी साहित्य), प्रयाग विश्वविद्यालय, इलाहाबाद। गन्धर्व महाविद्यालय से ‘संगीत विशारद’ तथा कॉरकोरन स्कूल ऑफ़ आर्ट, वाशिंगटन में चित्रकला एवं डिजाइन का विधिवत् अध्ययन।
कई वर्षों तक विभिन्न विश्वविद्यालयों (प्रयाग, दिल्ली, भोपाल) में अध्यापन के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में आईं। ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘वामा’ तथा ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ के सम्पादक के बतौर समय-समय पर कार्य किया। ‘स्टार न्यूज़’ और ‘दूरदर्शन’ के लिए हिन्दी समाचार बुलेटिन का सम्पादन किया। तदुपरान्त प्रधान सम्पादक के रूप में ‘दैनिक हिन्दुस्तान’, ‘कादम्बिनी’ एवं ‘नन्दन’ से जुड़ीं। वर्ष 2010 से 2014 तक प्रसार भारती की चेयरमैन भी रहीं।
प्रकाशित पुस्तकें : ‘विरुद्ध’, ‘पटरंगपुर पुराण’, ‘देवी’, ‘हमका दियो परदेस’, ‘अपनी गवाही’ (उपन्यास); ‘दरम्यान’, ‘शब्दवेधी’, ‘एक नीच ट्रैजिडी’, ‘एक स्त्री का विदागीत’, ‘यानी कि एक बात थी’, ‘बचुली चौकीदारिन की कढ़ी’, ‘चार दिन की जवानी तेरी’ (कहानी-संग्रह); ‘मौजूदा हालात को देखते हुए’, ‘जो राम रचि राखा’, ‘आदमी जो मछुआरा नहीं था’, ‘चोर निकल के भागा’, ‘सम्पूर्ण नाटक’ (नाटक) और देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास ‘काजर की कोठरी’ का इसी नाम से नाट्य-रूपान्तरण; ‘परिधि पर स्त्री’, ‘स्त्री : देह की राजनीति से देश की राजनीति तक’, ‘स्त्री : लम्बा सफ़र’ (निबन्ध); ‘बन्द गलियों के विरुद्ध’ (सम्पादन); ‘ओ उब्बीरी’ (स्वास्थ्य); मराठी की अमर कृति ‘माझा प्रवास : उन्नीसवीं सदी’ तथा अमृतलाल नागर की हिन्दी कृति ‘गदर के फूल’ का अंग्रेज़ी में अनुवाद।
अंग्रेज़ी : ‘द सब्जेक्ट इज वूमन’ (महिला-विषयक लेखों का संकलन); ‘द डॉटर्स डॉटर’, ‘माई ओन विटनेस’ (उपन्यास); ‘देवी’ (उपन्यास-रिपोर्ताज); ‘स्टेपिंग आउट : लाइफ़ एंड सेक्सुअलिटी इन रुरल इंडिया’।
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