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Main Borishailla (HB)
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Pratinidhi Kahaniyan : Mannu Bhandari (PB)
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Main Borishailla (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Mahua Maji
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Mahua Maji
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹295 ₹207
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9788126718559
Category Hindi
Category: Hindi
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बांग्लादेश में एक सांस्कृतिक जगह है बोरिशाल। बोरिशाल के रहनेवाले एक पात्र से शुरू हुई यह कथा पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति-संग्राम और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के अभ्युदय तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि उन परिस्थितियों की भी पड़ताल करती है, जिनमें साम्प्रदायिक आधार पर भारत का विभाजन हुआ और फिर भाषायी तथा भौगोलिक आधार पर पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश बना।
समय तथा समाज की तमाम विसंगतियों को अपने भीतर समेटे यह एक ऐसा बहुआयामी उपन्यास है जिसमें प्रेम की अन्त:सलिला भी बहती है तथा एक देश का टूटना और बनना भी शामिल है। यह उपन्यास लेखिका के गम्भीर शोध पर आधारित है और इसमें बांग्लादेश मुक्ति-संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों तथा उर्दूभाषी नागरिकों द्वारा बांग्लाभाषियों पर किए गए अत्याचारों तथा उसके ज़बर्दस्त प्रतिरोध का बहुत प्रामाणिक चित्रण हुआ है। उपन्यास का एक बड़ा हिस्सा उस दौर के लूट, हत्या, बलात्कार, आगजनी की दारुण दास्तान बयान करता है। उस दौरान मानवीय आधार पर भारतीय सेना द्वारा पहुँचाई गई मदद और मुक्तिवाहिनी को प्रशिक्षण देने के लिए भारतीय सीमा क्षेत्र में बनाए गए प्रशिक्षण शिविरों तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार द्वारा निभाई गई भूमिका का भी ज़िक्र इसमें है।
युवा लेखिका महुआ माजी का यह पहला उपन्यास है। लेकिन उन्होंने राष्ट्र-राज्य बनाम साम्प्रदायिक राष्ट्र की बहस को बहुत ही गम्भीरता से इसमें उठाया है और मुक्तिकथा को भाषायी राष्ट्रवाद की अवधारणा की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया है। ज़मीन से जुड़ी कथा-भाषा और स्थानीय प्रकृति तथा घटनाओं के जीवन्त चित्रण की विलक्षण शैली के कारण यह उपन्यास एक गम्भीर मसले को उठाने के बावजूद बेहद रोचक और पठनीय है।
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Description
बांग्लादेश में एक सांस्कृतिक जगह है बोरिशाल। बोरिशाल के रहनेवाले एक पात्र से शुरू हुई यह कथा पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति-संग्राम और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के अभ्युदय तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि उन परिस्थितियों की भी पड़ताल करती है, जिनमें साम्प्रदायिक आधार पर भारत का विभाजन हुआ और फिर भाषायी तथा भौगोलिक आधार पर पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश बना।
समय तथा समाज की तमाम विसंगतियों को अपने भीतर समेटे यह एक ऐसा बहुआयामी उपन्यास है जिसमें प्रेम की अन्त:सलिला भी बहती है तथा एक देश का टूटना और बनना भी शामिल है। यह उपन्यास लेखिका के गम्भीर शोध पर आधारित है और इसमें बांग्लादेश मुक्ति-संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों तथा उर्दूभाषी नागरिकों द्वारा बांग्लाभाषियों पर किए गए अत्याचारों तथा उसके ज़बर्दस्त प्रतिरोध का बहुत प्रामाणिक चित्रण हुआ है। उपन्यास का एक बड़ा हिस्सा उस दौर के लूट, हत्या, बलात्कार, आगजनी की दारुण दास्तान बयान करता है। उस दौरान मानवीय आधार पर भारतीय सेना द्वारा पहुँचाई गई मदद और मुक्तिवाहिनी को प्रशिक्षण देने के लिए भारतीय सीमा क्षेत्र में बनाए गए प्रशिक्षण शिविरों तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार द्वारा निभाई गई भूमिका का भी ज़िक्र इसमें है।
युवा लेखिका महुआ माजी का यह पहला उपन्यास है। लेकिन उन्होंने राष्ट्र-राज्य बनाम साम्प्रदायिक राष्ट्र की बहस को बहुत ही गम्भीरता से इसमें उठाया है और मुक्तिकथा को भाषायी राष्ट्रवाद की अवधारणा की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया है। ज़मीन से जुड़ी कथा-भाषा और स्थानीय प्रकृति तथा घटनाओं के जीवन्त चित्रण की विलक्षण शैली के कारण यह उपन्यास एक गम्भीर मसले को उठाने के बावजूद बेहद रोचक और पठनीय है।
About Author
महुआ माजी
जन्म : 10 दिसम्बर, राँची।
शिक्षा : समाजशास्त्र में एम.ए., पीएच.डी.।
महुआ माजी ने फ़िल्म ऐंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट, पुणे से फ़िल्म अप्रीसिएशन कोर्स किया है।
नवम्बर 2013 से नवम्बर 2016 तक ‘झारखंड राज्य महिला आयोग’ की ‘अध्यक्ष’ रहीं।
पहला उपन्यास ‘मैं बोरिशाइल्ला’ (बांग्लादेश के अभ्युदय की महागाथा) 2006 में प्रकाशित हुआ।
2008 में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद हुआ जो 2010 में रोम (इटली) स्थित यूरोप के सबसे बड़े विश्वविद्यालय ‘सापिएन्जा यूनिवर्सिटी ऑफ़ रोम’ में मॉडर्न लिटरेचर के बी.ए. के कोर्स में शामिल किया गया।
दूसरा उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ (विकिरण, प्रदूषण और विस्थापन से जूझते आदिवासियों की गाथा) 2012 में प्रकाशित हुआ।
म्मान/पुरस्कार : 2007 में लन्दन के हाउस ऑफ़ लाड्र्स में ब्रिटेन के आन्तरिक सुरक्षा मंत्री के हाथों ‘अन्तरराष्ट्रीसय कथा यू.के. सम्मान’; 2010 में मध्य प्रदेश साहित्य अकादेमी तथा संस्कृति परिषद द्वारा ‘अखिल भारतीय वीरसिंह देव सम्मान’; 2010 में उज्जैन के कालिदास अकादमी द्वारा ‘विश्व हिन्दी सेवा सम्मान’; 2012 में ‘राजकमल प्रकाशन कृति सम्मान : ‘मैला आंचल’—फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार’। लोक सेवा समिति, झारखंड द्वारा ‘झारखंड रत्न सम्मान’। झारखंड सरकार का ‘राजभाषा सम्मान’। 2019 में ‘बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन शताब्दी सम्मान’ आदि।
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