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Hindi Sahitya Beesvin Shatabdi (HB)
Publisher:
Lokbharti
| Author:
Nand Dulare Bajpai
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Lokbharti
Author:
Nand Dulare Bajpai
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹500 ₹425
Save: 15%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
ISBN:
SKU
9788180315237
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
यह पुस्तक निबन्धों का संग्रह है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रारम्भिक चालीस वर्षों के ही कुछ प्रमुख साहित्यिक व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है। यद्यपि इस समय के सभी प्रमुख साहित्यकार पुस्तक में नहीं आ सके हैं, परन्तु जितने आए हैं, उतने ही इस काल के साहित्य के स्वरूप, उसकी समृद्धि-सीमा और उसकी विकास-दिशा को दिखा देने के लिए पर्याप्त है।
बीसवीं शताब्दी के साहित्य की जिस सामान्य रूपरेखा का उल्लेख किया गया, उससे इस साहित्य का विस्तार और इसकी अनेकरूपता तो प्रकट हुई ही, उसके आलोचन-कार्य को पेचीदगी का भी कुछ-न-कुछ आभास मिला। इन निबन्धों में इस युग के साहित्य की समीक्षा का प्राथमिक प्रयास किया गया है। इसके पहले इस विषय की कोई व्यवस्थित सामग्री उपलब्ध न थी।
ये निबन्ध किसी नियमित क्रम या शैली पर नहीं लिखे गए हैं। लेखकों की सम्पूर्ण रचनाओं को सब समय सामने नहीं रखा गया है। कहीं-कहीं तो किसी एक ही रचना पर पूरा निबन्ध आधारित है (यद्यपि ऐसे निबन्धों में लेखक की अन्य रचनाएँ भी अप्रत्यक्ष रूप से ध्यान में रही हैं) किसी निबन्ध में किसी लेखक पर प्रशंसात्मक चर्चा की गई है और किसी अन्य पर विरोधी ढंग से लिखा गया है। जिनकी आवश्यकता से अधिक प्रशंसा हो रही थी, उनके सम्बन्ध में दूसरे पक्ष को सामने रखा गया है। इसमें लक्ष्य लेखकों की स्थिति में सामंजस्य स्थापित करने का रहा है। किन्तु प्रशंसा या अप्रशंसा द्वारा भी रचयिता के व्यक्तित्व को सीमित और साकार करने की चेष्टा ही मुख्य रही है। इस प्रकार अनुकूल या प्रतिकूल विवेचन से लेखकों की वास्तविक रचना-क्षमता ही स्पष्ट हुई है।
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Description
यह पुस्तक निबन्धों का संग्रह है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रारम्भिक चालीस वर्षों के ही कुछ प्रमुख साहित्यिक व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है। यद्यपि इस समय के सभी प्रमुख साहित्यकार पुस्तक में नहीं आ सके हैं, परन्तु जितने आए हैं, उतने ही इस काल के साहित्य के स्वरूप, उसकी समृद्धि-सीमा और उसकी विकास-दिशा को दिखा देने के लिए पर्याप्त है।
बीसवीं शताब्दी के साहित्य की जिस सामान्य रूपरेखा का उल्लेख किया गया, उससे इस साहित्य का विस्तार और इसकी अनेकरूपता तो प्रकट हुई ही, उसके आलोचन-कार्य को पेचीदगी का भी कुछ-न-कुछ आभास मिला। इन निबन्धों में इस युग के साहित्य की समीक्षा का प्राथमिक प्रयास किया गया है। इसके पहले इस विषय की कोई व्यवस्थित सामग्री उपलब्ध न थी।
ये निबन्ध किसी नियमित क्रम या शैली पर नहीं लिखे गए हैं। लेखकों की सम्पूर्ण रचनाओं को सब समय सामने नहीं रखा गया है। कहीं-कहीं तो किसी एक ही रचना पर पूरा निबन्ध आधारित है (यद्यपि ऐसे निबन्धों में लेखक की अन्य रचनाएँ भी अप्रत्यक्ष रूप से ध्यान में रही हैं) किसी निबन्ध में किसी लेखक पर प्रशंसात्मक चर्चा की गई है और किसी अन्य पर विरोधी ढंग से लिखा गया है। जिनकी आवश्यकता से अधिक प्रशंसा हो रही थी, उनके सम्बन्ध में दूसरे पक्ष को सामने रखा गया है। इसमें लक्ष्य लेखकों की स्थिति में सामंजस्य स्थापित करने का रहा है। किन्तु प्रशंसा या अप्रशंसा द्वारा भी रचयिता के व्यक्तित्व को सीमित और साकार करने की चेष्टा ही मुख्य रही है। इस प्रकार अनुकूल या प्रतिकूल विवेचन से लेखकों की वास्तविक रचना-क्षमता ही स्पष्ट हुई है।
About Author
आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी
जन्म : 14 सितम्बर, 1906; उन्नाव, उत्तर प्रदेश।
हिन्दी के साहित्यकार, पत्रकार, सम्पादक, आलोचक और अन्त में प्रशासक भी रहे। छायावादी कविता के शीर्षस्थ आलोचक के रूप में प्रसिद्ध।
प्रारम्भिक शिक्षा हजारीबाग में सम्पन्न हुई। आगे की पढ़ाई काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पूरी की। कुछ समय ‘भारतֺ’ के सम्पादक रहे। इसके बाद उन्होंने काशी नागरीप्रचारिणी सभा में ‘सूरसागरֹ’ तथा बाद में गीता प्रेस, गोरखपुर में ‘रामचरितमानस’ का सम्पादन किया।
वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहे तथा सागर विश्वविद्यालय, उज्जैन के उपकुलपति नियुक्त हुए।
प्रमुख कृतियाँ : ‘हिन्दी साहित्य : बीसवीं शताब्दी’, ‘जयशंकर प्रसाद’, ‘प्रेमचन्द : साहित्यिक विवेचन’, ‘आधुनिक साहित्य’, ‘नया साहित्य : नए प्रश्न’, ‘जयशंकर प्रसाद’, ‘महाकवि सूरदास’, ‘कवि निराला’ एवं ‘सुमित्रानन्दन पन्त’।
निधन : 21 अगस्त, 1967; उज्जैन।
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