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Kiya Ankiya (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Purushottam Agarwal
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Purushottam Agarwal
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹750 ₹525
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ISBN:
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9788126728664
Category Hindi
Category: Hindi
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पुरुषोत्तम अग्रवाल हमारे समय की एक महत्त्वपूर्ण बौद्धिक और सर्जनात्मक उपस्थिति हैं। उनका लेखन रूप और अन्तर्वस्तु की दृष्टि से विविध और विशाल है। उनकी कई स्वतंत्र छवियाँ हैं, लेकिन कोई एक छवि नहीं है। चिन्तक, आलोचक, कवि, कथाकार, विमर्शकार, कार्यकर्ता, पत्रकार, व्यंग्यकार, प्राध्यापक, फ़िल्म-विशेषज्ञ, धर्मशास्त्री से मिलकर उनकी छवि बनती है। उनकी समग्र छवि की परख और पहचान के लिए उनके सम्पूर्ण लेखन का परिचय प्राप्त करना जितना ज़रूरी है, उतना ही कठिन भी। उनका समग्र पाठ श्रमसाध्य है, इसलिए उनकी रचनाओं का एक प्रतिनिधि चयन और प्रकाशन विलम्बित माँग थी जिसे इस संचयन के प्रकाशन से पूरा करने का प्रयास किया गया है।
नवीन और प्राचीन वैश्विक वैचारिक निरूपणों और साहित्यिक सिद्धान्तों की स्पष्ट समझदारी और उनसे संवाद की प्रवृत्ति पुरुषोत्तम अग्रवाल की शक्ति है, जो उनके लेखन को निरन्तर आकर्षक और विचारोत्तेजक बनाए रखती है। इसी से उनमें बौद्धिक साहस उत्पन्न होता है, इस साहस का एक प्रमाण है अस्मितावाद की शक्ति और सीमाओं का तटस्थ व साहसपूर्ण मूल्यांकन। इसी साहस का एक और प्रमाण है—धर्म, अध्यात्म और साम्प्रदायिकता पर उनका रुख़। वे धर्म को सत्ता-तंत्र मानते हैं लेकिन आध्यात्मिकता को सहज मानवीय प्रवृत्ति के रूप में देखते हैं। कबीर, कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के धर्म और अध्यात्म सम्बन्धी विचारों के आधार पर अपनी अवधारणा को तैयार करते हैं। उनकी दृढ़ मान्यता है कि धर्म का फलतः साम्प्रदायिकता का, उन्मूलन तभी सम्भव है जब आध्यात्मिकता को मानव सुलभ मानकर धर्म से उसे स्वायत्त किया जाए।
पुरुषोत्तम अग्रवाल के लेखन का एक बड़ा हिस्सा भक्तिकाल पर है। ख़ास तौर पर कबीर पर। जाति, धर्म, औपनिवेशिक आधुनिकता, अस्मितावाद इत्यादि वैचारिक निरूपणों से आच्छादित कबीर के कवि रूप को सामने लाकर उन्होंने उनकी प्रासंगिकता को पुनः अनुभूत बनाया है।
बौद्धिक बेचैनी, साहित्यिक अभिरुचि, सांस्कृतिक अन्तर्दृष्टि और आलोचकीय विवेक के साथ समकालीन जीवन के विविध पक्षों और प्रश्नों पर विचार करनेवाले बुद्धिजीवी विरल हैं। पुरुषोत्तम अग्रवाल की पत्रकारिता इस दृष्टि से आश्वस्तिदायक है। उनका कथा साहित्य विविध संकटों से आच्छन्न बौद्धिक-जीवन के संघर्ष और जिजीविषा को सामने लाता है। उनके साहित्य में फासीवाद के देशी संस्करण के दबाव में अभिव्यक्ति के संकट और कला-बुद्धि-विरोधी दमघोंटू वातावरण की भयावहता का एहसास मुक्तिबोध की याद दिलाता है।
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Description
पुरुषोत्तम अग्रवाल हमारे समय की एक महत्त्वपूर्ण बौद्धिक और सर्जनात्मक उपस्थिति हैं। उनका लेखन रूप और अन्तर्वस्तु की दृष्टि से विविध और विशाल है। उनकी कई स्वतंत्र छवियाँ हैं, लेकिन कोई एक छवि नहीं है। चिन्तक, आलोचक, कवि, कथाकार, विमर्शकार, कार्यकर्ता, पत्रकार, व्यंग्यकार, प्राध्यापक, फ़िल्म-विशेषज्ञ, धर्मशास्त्री से मिलकर उनकी छवि बनती है। उनकी समग्र छवि की परख और पहचान के लिए उनके सम्पूर्ण लेखन का परिचय प्राप्त करना जितना ज़रूरी है, उतना ही कठिन भी। उनका समग्र पाठ श्रमसाध्य है, इसलिए उनकी रचनाओं का एक प्रतिनिधि चयन और प्रकाशन विलम्बित माँग थी जिसे इस संचयन के प्रकाशन से पूरा करने का प्रयास किया गया है।
नवीन और प्राचीन वैश्विक वैचारिक निरूपणों और साहित्यिक सिद्धान्तों की स्पष्ट समझदारी और उनसे संवाद की प्रवृत्ति पुरुषोत्तम अग्रवाल की शक्ति है, जो उनके लेखन को निरन्तर आकर्षक और विचारोत्तेजक बनाए रखती है। इसी से उनमें बौद्धिक साहस उत्पन्न होता है, इस साहस का एक प्रमाण है अस्मितावाद की शक्ति और सीमाओं का तटस्थ व साहसपूर्ण मूल्यांकन। इसी साहस का एक और प्रमाण है—धर्म, अध्यात्म और साम्प्रदायिकता पर उनका रुख़। वे धर्म को सत्ता-तंत्र मानते हैं लेकिन आध्यात्मिकता को सहज मानवीय प्रवृत्ति के रूप में देखते हैं। कबीर, कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के धर्म और अध्यात्म सम्बन्धी विचारों के आधार पर अपनी अवधारणा को तैयार करते हैं। उनकी दृढ़ मान्यता है कि धर्म का फलतः साम्प्रदायिकता का, उन्मूलन तभी सम्भव है जब आध्यात्मिकता को मानव सुलभ मानकर धर्म से उसे स्वायत्त किया जाए।
पुरुषोत्तम अग्रवाल के लेखन का एक बड़ा हिस्सा भक्तिकाल पर है। ख़ास तौर पर कबीर पर। जाति, धर्म, औपनिवेशिक आधुनिकता, अस्मितावाद इत्यादि वैचारिक निरूपणों से आच्छादित कबीर के कवि रूप को सामने लाकर उन्होंने उनकी प्रासंगिकता को पुनः अनुभूत बनाया है।
बौद्धिक बेचैनी, साहित्यिक अभिरुचि, सांस्कृतिक अन्तर्दृष्टि और आलोचकीय विवेक के साथ समकालीन जीवन के विविध पक्षों और प्रश्नों पर विचार करनेवाले बुद्धिजीवी विरल हैं। पुरुषोत्तम अग्रवाल की पत्रकारिता इस दृष्टि से आश्वस्तिदायक है। उनका कथा साहित्य विविध संकटों से आच्छन्न बौद्धिक-जीवन के संघर्ष और जिजीविषा को सामने लाता है। उनके साहित्य में फासीवाद के देशी संस्करण के दबाव में अभिव्यक्ति के संकट और कला-बुद्धि-विरोधी दमघोंटू वातावरण की भयावहता का एहसास मुक्तिबोध की याद दिलाता है।
About Author
पुरुषोत्तम अग्रवाल
जन्म : 25 अगस्त, 1955
पुरुषोत्तम अग्रवाल ने जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय से 'कबीर की भक्ति का सामाजिक अर्थ’ विषय पर पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की और रामजस कॉलेज, दिल्ली तथा जेएनयू में अध्यापन कार्य किया।
प्रकाशित कृतियाँ हैं : 'संस्कृति : वर्चस्व और प्रतिरोध’, 'तीसरा रुख’, 'विचार का अनन्त’, 'शिवदानसिंह चौहान’, 'निज ब्रह्म विचार’, 'कबीर : साखी और सबद’, 'हिन्दी सराय : अस्त्राखान वाया येरेवान’ तथा 'पद्मावत : एन एपिक लव स्टोरी’ (अंग्रेज़ी में)।
उनकी पुस्तक 'अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय’ भक्ति-सम्बन्धी विमर्श में अनिवार्य ग्रन्थ का दर्जा हासिल कर चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में प्रकाशित कहानियाँ जीवन्त और विचारोत्तेजक चर्चा के केन्द्र में रही हैं, जिनमें शामिल हैं, 'चेंग-चुई’, 'चौराहे पर पुतला’, 'पैरघंटी’, 'पान पत्ते की गोठ’ और 'उदासी का कोना’। 'नाकोहस’ उनका पहला और अत्यन्त चर्चित उपन्यास है।
भक्ति-संवेदना, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक इतिहास से सम्बद्ध समस्याओं पर आयोजित गोष्ठियों और भाषणमालाओं के लिए अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, फ़्रांस, आयरलैंड, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की यात्राएँ कीं। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और कॉलेज ऑफ़ मेक्सिको में विजिटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे।
आलोचना पुस्तक 'तीसरा रुख’ के लिए 1996 में ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’, 'संस्कृति : वर्चस्व और प्रतिरोध’ के लिए 1997 में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् के ‘मुकुटधर पाण्डेय सम्मान’ तथा 'अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय’ के लिए 2001 में राजकमल प्रकाशन के प्रथम ‘राजकमल कृति सम्मान—कबीर, हजारीप्रसाद द्विवेदी पुरस्कार’ से सम्मानित।
राजकमल प्रकाशन की 'भक्ति शृंखला’ के सम्पादक हैं। इसके तहत अभी तक डेविड लोरेंजन की पुस्तक 'निर्गुण संतों के स्वप्न’, जॉन स्टैटन हॉली की 'भक्ति के तीन स्वर’ और डॉ. रमण सिन्हा की पुस्तक 'रामचरितमानस : पाठ : लीला : चित्र : संगीत’ का विस्तृत भूमिकाओं के साथ सम्पादन कर चुके हैं।
एनसीईआरटी की हिन्दी पाठ्य-पुस्तक समिति के मुख्य सलाहकार, भारतीय भाषा केन्द्र, जेएनयू के अध्यक्ष तथा संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य भी रह चुके हैं।
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