Bhartiya Dharmik Chetna Ke Ayam (HB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
RAVI NANDAN SINGH
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Lokbharti
Author:
RAVI NANDAN SINGH
Language:
Hindi
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Hardback

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दुनिया के सभी धर्म एक ही दिशा में संकेत करते हैं। पूजा-पद्धतियाँ, धर्म-ग्रन्थ, धार्मिक सिद्धान्त संकेत मात्र हैं, किन्तु हम इन संकेतों को ही धर्म समझ लेते हैं और धर्मों की आन्तरिक एकता को समझ नहीं पाते। पूरी मनुष्य जाति धर्म के इन संकेतों को लेकर विभाजित एवं संघर्षरत है। ये संकेत जिस ओर इशारा करते हैं, उस गन्तव्य तक हमारी दृष्टि ही नहीं जा पाती। ऊपर से देखने पर पूरी मनुष्यता ही धार्मिक दिखाई पड़ती है, किन्तु ऐसा वास्तविकता में नहीं है। अगर ऐसा होता तो दुनिया के सारे दुःख-सन्ताप मिट जाते। किन्तु बाहर धर्म के संकेतों में वृद्धि हो रही है और उसी अनुपात में मनुष्य अशान्त होता जा रहा है।
प्रस्तुत पुस्तक धर्म के संकेतों के माध्यम से भारत की सर्वांगीण चेतना को समझने की कोशिश करती है। प्रागैतिहासिक युग से अब तक भारत की धार्मिक चेतना को क्रमिक रूप से उद्घाटित करना ही पुस्तक का उद्देश्य है। इस विषय पर सामग्री बिखरी होने के कारण विद्यार्थी एवं शोधार्थियों को कठिनाई होती है। इस कठिनाई से निजात पाने की कोशिश में ही इस पुस्तक की रचना हुई है। भारतीय इतिहास के कालक्रमानुसार नवीनतम अनुसन्धानों एवं शोधों को सम्मिलित करते हुए पुस्तक को समृद्ध बनाया गया है। यह पुस्तक सिविल सेवा के प्रतियोगी छात्रों, विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों के भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के छात्रों तथा सामान्य जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त लाभप्रद एवं उपयोगी है।

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Description

दुनिया के सभी धर्म एक ही दिशा में संकेत करते हैं। पूजा-पद्धतियाँ, धर्म-ग्रन्थ, धार्मिक सिद्धान्त संकेत मात्र हैं, किन्तु हम इन संकेतों को ही धर्म समझ लेते हैं और धर्मों की आन्तरिक एकता को समझ नहीं पाते। पूरी मनुष्य जाति धर्म के इन संकेतों को लेकर विभाजित एवं संघर्षरत है। ये संकेत जिस ओर इशारा करते हैं, उस गन्तव्य तक हमारी दृष्टि ही नहीं जा पाती। ऊपर से देखने पर पूरी मनुष्यता ही धार्मिक दिखाई पड़ती है, किन्तु ऐसा वास्तविकता में नहीं है। अगर ऐसा होता तो दुनिया के सारे दुःख-सन्ताप मिट जाते। किन्तु बाहर धर्म के संकेतों में वृद्धि हो रही है और उसी अनुपात में मनुष्य अशान्त होता जा रहा है।
प्रस्तुत पुस्तक धर्म के संकेतों के माध्यम से भारत की सर्वांगीण चेतना को समझने की कोशिश करती है। प्रागैतिहासिक युग से अब तक भारत की धार्मिक चेतना को क्रमिक रूप से उद्घाटित करना ही पुस्तक का उद्देश्य है। इस विषय पर सामग्री बिखरी होने के कारण विद्यार्थी एवं शोधार्थियों को कठिनाई होती है। इस कठिनाई से निजात पाने की कोशिश में ही इस पुस्तक की रचना हुई है। भारतीय इतिहास के कालक्रमानुसार नवीनतम अनुसन्धानों एवं शोधों को सम्मिलित करते हुए पुस्तक को समृद्ध बनाया गया है। यह पुस्तक सिविल सेवा के प्रतियोगी छात्रों, विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों के भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के छात्रों तथा सामान्य जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त लाभप्रद एवं उपयोगी है।

About Author

रविनन्दन सिंह

जन्म : ग्राम-पोस्ट—बरुईन, जमानियाँ (रे.स्टे.), गाजीपुर।

शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिन्दी एवं अंग्रेज़ी साहित्य)।

प्रकाशित पुस्तकें : काव्य संग्रह—‘जब मै रिक्त होता हूँ’, ‘मेरे और तुम्हारे बीच’, ‘मैं इतिहास की जेब में हूँ’, ‘सभी रंग एक नहीं हो सकते हैं, ‘लहरों की तरह जीवन’, आलोचना—‘आलोचना और समाज-चिंतन सम्बन्धी-भाषा’, ‘रचना और आलोचना’, ‘हिन्दी, उर्दू और खड़ी बोली की ज़मीन’, ‘भारतीय आर्यभाषा हिन्दी’, ‘भारतीय धार्मिक चेतना के आयाम’, ‘साहित्य, समाज और जीवन’, ‘लहरें टूटती नहीं’, ‘हिन्दुस्तानी एकेडेमी का इतिहास’; सम्‍पादन—‘कर्म-कबीर और कबीर के प्रतिबिम्ब’, ‘तुलसी साहित्य : अभिव्यक्ति के विविध स्वर’, ‘जायसी : आलोचना के निकष पर’, ‘अदब के सुख़नवर और उनका अन्‍दाज़े बयाँ’, ‘रामविलास शर्मा और हिन्दी आलोचना’, ‘काव्य संवेदना और हिन्दी कविता’, ‘हिन्दी, उर्दू और हिन्‍दुस्तानी : एक विमर्श’, ‘लोक साहित्य : अभिव्यक्ति और अनुशीलन’, ‘हिन्दुस्तानी एकेडमी : एक परिचय’, ‘फ़िराक़ : शख्सियत और फ़न’, ‘निराला : काव्य चेतना के अन्‍तर्द्वन्‍द्व’।

सम्मान/पुरस्कार : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘नरेश मेहता सम्मान’, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान’, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘डॉ. धीरेन्द्र वर्मा सम्मान’, संचेतना का ‘सर्वेश्वरदयाल सक्सेना सम्मान’, समन्वय संस्था का ‘फादर डॉ. कामिल बुल्के सम्मान’, साहित्यकार संघ वाराणसी का ‘सेवक स्मृति सम्मान’, भारतीय वाड़्मय पीठ कोलकाता का ‘साहित्य शिरोमणि सारस्वत सम्मान’, राष्ट्रीय पुस्तक मेला प्रयाग का ‘साहित्य शिरोमणि सम्मान’, भारत लोकरंग महोत्सव का ‘लोक कलाविद् सम्मान’ आदि।

सम्प्रति : सम्पादक—‘हिन्दुस्तानी' शोध त्रैमासिक।

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