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Sharad Parikrama (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Sharad Joshi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Sharad Joshi
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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9789387462557
Category Hindi
Category: Hindi
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शरद जोशी के व्यंग्य का क्षेत्र बहुत व्यापक और विविधवर्णी रहा है। लेखन उनकी आजीविका का भी साधन था। एक सम्पूर्ण लेखक का जीवन जीते हुए उन्होंने अपने दैनंदिन की लगभग हर घटना, हर ख़बर को अपने व्यंग्यकार की निगाह से ही देखा। उनके विषयों में प्रमुख यद्यपि समकालीन राजनीति और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार ही रहा, लेकिन क्षरणशील समाज की भी ज़्यादातर नैतिक दुविधाओं को उन्होंने अपना विषय बनाया।
मुक्तिबोध ने कहीं कहा था कि सच्चा लेखक सबसे पहले अपना दुश्मन होता है, अपने कठघरे में जो लेखक ख़ुद को खड़ा नहीं कर सकता, वह दूसरों को भी नहीं कर सकता। शरद जोशी भी जब मौक़ा आता है, ख़ुद भी अपने व्यंग्य के सामने खड़े हो उसकी धार का सामना करते हैं। अपने अनेक निबन्धों में उन्होंने अपनी मध्यवर्गीय सीमाओं, चिन्ताओं और हास्यास्पदताओं का मज़ाक़ बनाया है।
सच्चे व्यंग्यकार की तरह उन्होंने अपने लेखन में न सिर्फ़ जीवन की समीक्षा की, बल्कि व्यंग्य की ज़मीन पर जमे रहते हुए कहानी और लघु-कथाओं आदि विधाओं में भी प्रयोग किए। कवि-मंचों पर उनकी गद्यात्मक उपस्थिति तो अपने ढंग का प्रयोग थी ही।
‘परिक्रमा’ उनका पहला व्यंग्य-संग्रह है जिसका प्रकाशन 1958 में हुआ था। इस नज़रिए से इसका अध्ययन विशेष महत्त्व रखता है।
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Description
शरद जोशी के व्यंग्य का क्षेत्र बहुत व्यापक और विविधवर्णी रहा है। लेखन उनकी आजीविका का भी साधन था। एक सम्पूर्ण लेखक का जीवन जीते हुए उन्होंने अपने दैनंदिन की लगभग हर घटना, हर ख़बर को अपने व्यंग्यकार की निगाह से ही देखा। उनके विषयों में प्रमुख यद्यपि समकालीन राजनीति और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार ही रहा, लेकिन क्षरणशील समाज की भी ज़्यादातर नैतिक दुविधाओं को उन्होंने अपना विषय बनाया।
मुक्तिबोध ने कहीं कहा था कि सच्चा लेखक सबसे पहले अपना दुश्मन होता है, अपने कठघरे में जो लेखक ख़ुद को खड़ा नहीं कर सकता, वह दूसरों को भी नहीं कर सकता। शरद जोशी भी जब मौक़ा आता है, ख़ुद भी अपने व्यंग्य के सामने खड़े हो उसकी धार का सामना करते हैं। अपने अनेक निबन्धों में उन्होंने अपनी मध्यवर्गीय सीमाओं, चिन्ताओं और हास्यास्पदताओं का मज़ाक़ बनाया है।
सच्चे व्यंग्यकार की तरह उन्होंने अपने लेखन में न सिर्फ़ जीवन की समीक्षा की, बल्कि व्यंग्य की ज़मीन पर जमे रहते हुए कहानी और लघु-कथाओं आदि विधाओं में भी प्रयोग किए। कवि-मंचों पर उनकी गद्यात्मक उपस्थिति तो अपने ढंग का प्रयोग थी ही।
‘परिक्रमा’ उनका पहला व्यंग्य-संग्रह है जिसका प्रकाशन 1958 में हुआ था। इस नज़रिए से इसका अध्ययन विशेष महत्त्व रखता है।
About Author
शरद जोशी
21 मई, 1931 को उज्जैन, मध्य प्रदेश में जन्मे शरद जोशी, होल्कर कॉलेज, इन्दौर के दिनों में ही एक लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके थे। इन्दौर के ‘नई दुनिया’ अख़बार में ‘परिक्रमा’ कॉलम से उनकी प्रसिद्धि और लेखक के रूप में पहचान बनी। पहली पुस्तक ‘परिक्रमा’ (उन्हीं लेखों का समावेश) 1958 में छपी।
उनके दो व्यंग्य नाटक ‘अन्धों का हाथी’ और ‘एक था गधा उर्फ़ अलादाद ख़ाँ’ आज भी देश-विदेश में मंचित हो रहे हैं।
अन्तिम कॉलम 'प्रतिदिन’ नवभारत टाइम्स में लगातार 7 वर्षों तक छपा।
शरद जी की 21 पुस्तकें छपी हैं—‘परिक्रमा’; ‘किसी बहाने’; ‘रहा किनारे बैठ’; ‘दूसरी सतह’; ‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ’; ‘यथासम्भव’; ‘यत्र-तत्र-सर्वत्र’; ‘यथासमय’; ‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे’; ‘प्रतिदिन’ 3 भागों में; ‘नावक के तीर’; ‘मुद्रिका रहस्य’; ‘झरता नीम शाश्वत थीम’; ‘मैं, मैं और केवल मैं’; ‘शरद जोशी एक यात्रा’ (अन्य लेखकों के विचार, डॉ. शशि मिश्रा); ‘जादू की सरकार’; ‘पिछले दिनों’; ‘दो व्यंग्य नाटक’; ‘राग भोपाली’; ‘नदी में खड़ा कवि’; ‘घाव करे गम्भीर’।
सरकारी पुरस्कारों से बचते रहे। मात्र एक ‘पद्मश्री’ 1990 में उनके खाते में। पीएच.डी. के घोर विरोधी रहे, आज उन पर ही कई पीएच.डी. हो गई हैं।
हिन्दी की पहली कॉमेडी Sitcom सीरियल ‘यह जो है ज़िन्दगी’ लिखने का श्रेय भी। ‘मालगुडी डेज़’ (हिन्दी संवाद), ‘विक्रम और बेताल’, ‘सिंहासन बत्तीसी’, ‘वाह जनाब’, ‘दाने अनार के’, ‘यह दुनिया ग़ज़ब की’ सीरियल्स भी लिखे... और ‘क्षितिज’, ‘गोधूलि’, ‘उत्सव’, ‘उड़ान’, ‘चोरनी’, ‘साँच को आँच नहीं’ और ‘दिल है कि मानता नहीं’ फ़िल्मों के संवाद भी...!
निधन : 5 सितम्बर, 1991
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