Pratinidhi Kavitayen : Bharatbhushan Agrawal (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Bharatbhushan Agrawal
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
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Bharatbhushan Agrawal
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भारतभूषण अग्रवाल की कविता बिना किसी नाटकीयता, बिना कोई चीख़-पुकार मचाए ईमानदारी से अपनी सच्चाई को देखती-परखती कविता है। उसमें रूमानी आवेग से लेकर मुक्त हास्य, विद्रूप से लेकर अनुराग और कोमलता की कई छवियाँ, सभी शामिल हैं। कामकाजी मध्यवर्ग की विडम्बनाएँ, संवेदनशील व्यक्ति के ऊहापोह, शहराती ज़िन्दगी के रोज़मर्रा के सुख-दु:ख आदि को भारत जी ईमानदारी और पारदर्शिता से अपनी कविता में जगह देते हैं। उनमें अपनी विशिष्टता का रत्ती-भर भी आग्रह नहीं है। बल्कि अगर आग्रह है तो अपनी सीधी-सादी, सरल जान पड़ती लेकिन दरअसल जटिल साधारणता का। यह आग्रह उनकी आवाज़ को और सघन तथा उत्कट बनाता है।
उनकी कविता अपने को महत्त्वाकांक्षा के किसी विराट लोक में विलीन नहीं करती। वह अपनी उत्सुकताओं और बेचैनियों को जतन से नबेरती है। वह कविता में विकल्प इतना नहीं खोजती जितना सच्चाई की ही कई अन्यथा अलक्षित रह जानेवाली परतों को। कविता में कवि का यह अहसास बराबर मौजूद है कि सच्चाई और ज़िन्दगी कविता से कहीं बड़ी और व्यापक हैं और वे कविता में अँट नहीं पा रही हैं।
 

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भारतभूषण अग्रवाल की कविता बिना किसी नाटकीयता, बिना कोई चीख़-पुकार मचाए ईमानदारी से अपनी सच्चाई को देखती-परखती कविता है। उसमें रूमानी आवेग से लेकर मुक्त हास्य, विद्रूप से लेकर अनुराग और कोमलता की कई छवियाँ, सभी शामिल हैं। कामकाजी मध्यवर्ग की विडम्बनाएँ, संवेदनशील व्यक्ति के ऊहापोह, शहराती ज़िन्दगी के रोज़मर्रा के सुख-दु:ख आदि को भारत जी ईमानदारी और पारदर्शिता से अपनी कविता में जगह देते हैं। उनमें अपनी विशिष्टता का रत्ती-भर भी आग्रह नहीं है। बल्कि अगर आग्रह है तो अपनी सीधी-सादी, सरल जान पड़ती लेकिन दरअसल जटिल साधारणता का। यह आग्रह उनकी आवाज़ को और सघन तथा उत्कट बनाता है।
उनकी कविता अपने को महत्त्वाकांक्षा के किसी विराट लोक में विलीन नहीं करती। वह अपनी उत्सुकताओं और बेचैनियों को जतन से नबेरती है। वह कविता में विकल्प इतना नहीं खोजती जितना सच्चाई की ही कई अन्यथा अलक्षित रह जानेवाली परतों को। कविता में कवि का यह अहसास बराबर मौजूद है कि सच्चाई और ज़िन्दगी कविता से कहीं बड़ी और व्यापक हैं और वे कविता में अँट नहीं पा रही हैं।
 

About Author

भारतभूषण अग्रवाल

जन्म : 3 अगस्त, 1919 (तुलसी जयंती); मथुरा।

शिक्षा : आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम.ए. (1941) | दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी में पीएच.डी. (1968)।

कार्य : ‘समाज सेवक’ (कलकत्ता) के सम्‍पादक (1941-42); कलकत्ता तथा हाथरस के व्यावसायिक-औद्योगिक संस्थानों में उच्च पदस्थ कर्मचारी (1942-47); कुछ दिन 'प्रतीक' (इलाहाबाद) में रहने के बाद आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी (1948-59); साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली में उप-सचिव (1960-74); उच्चतर अध्ययन संस्थान, शिमला में विजिटिंग फ़ेलो (1975)।

प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह—‘छवि के बन्धन’ (1941), ‘जागते रहो’ (1942), ‘तारसप्तक’ (सहयोगी संकलन, 1943), ‘मुक्ति मार्ग’ (1947), ‘ओ अप्रस्तुत मन’ (1958), ‘काग़ज़ के फूल’ (तुक्तक, 1963), ‘अनुपस्थित लोग’ (1965), ‘एक उठा हुआ हाथ’ (1970), ‘उतना वह सूरज है’ (1977), ‘बहुत बाक़ी है’ (1978); नाटक—‘पलायन’ (1942), ‘सेतुबन्धन’ (1955), ‘और खाई बढ़ती गई' (1956), ‘अग्नि-लीक' (1976), ‘पलायन’ (1982), ‘युग-युग या पाँच मिनट’ (1983); आलोचना—‘प्रसंगवश’ (1970), ‘हिन्दी उपन्यासों पर पाश्चात्य प्रभाव’ (शोध-प्रबन्ध, 1971), ‘कवि की दृष्टि’ (1978); ललित निबन्ध—‘लीक-अलीक’ (1980); उपन्यास—‘लौटती लहरों की बाँसुरी’ (1964); कहानी—'आधे-आधे जिस्म' (1978); बाल साहित्य—'किसने फल खिलाए' (1956), ‘भाषा ज्ञान’ (1964), ‘मेरे खिलौने’ (1980)। 

निधन : 23 जून, 1975 (कबीर जयंती); शिमला।

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