Haashiye Par Padi Duniya (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Balkrishna Gupta
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Balkrishna Gupta
Language:
Hindi
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Hardback

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‘हाशिए पर पड़ी दुनिया’ बहुआयामी व्यक्तित्व-कृतित्व के धनी बालकृष्ण गुप्त पर केन्द्रित अनूठी पुस्तक है। डॉ. राममनोहर लोहिया और बालकृष्ण गुप्त की राजनीतिक सहभागिता एक इतिहास निर्मित कर चुकी है। अध्ययन, अनुभव, सक्रियता व प्रतिबद्धता का ऐसा उदाहरण दुर्लभ है। प्रस्तुत पुस्तक की भूमिका में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रवि राय लिखते हैं : ‘आप यदि लोहिया पर लिखेंगे तो बालकृष्ण जी छाया बन जाएँगे और बालकृष्ण जी पर लिखेंगे तो लोहिया की देह बनना तय है। वैसे लोहिया मेरे राजनीतिक गुरु रहे हैं जबकि बालकृष्ण जी मेरे गुरु के गुरुत्व होने की शक्ति, यानी कि वह वजह, जिससे लोहिया थे, उस शक्ति पर लिखना निश्चित ही आसान काम नहीं है।’
स्वाभाविक है कि बालकृष्ण गुप्त पर लिखे गए संस्मरणों एवं स्वयं उनके महत्त्वपूर्ण आलेखों से समृद्ध यह पुस्तक अपने समय का ज्वलन्त साक्ष्य है। सम्पादक द्वय सारंग उपाध्याय व अनुराग चतुर्वेदी ने पुस्तक का संयोजन पाँच खंडों में किया है। खंड-1 में आत्मीयजनों के संस्मरण बालकृष्ण गुप्त के कर्मठ जीवन का व्यवस्थित विवेचन करते हैं। खंड-2 (हाशिए पर पड़ी दुनिया), खंड-3 (बुद्धिजीवी नेहरू, लोहिया और वामपंथ) तथा खंड-4 (बिड़ला, गोयनका और अंधी योजनाएँ) में बालकृष्ण गुप्त के विपुल लेखन से चुने गए कुछ महत्त्वपूर्ण आलेख हैं। समाज, राजनीति, अर्थनीति, लोकतंत्र, विदेशनीति, प्रशासन और विश्व परिदृश्य आदि विविध विषयों से सम्बद्ध ये लेख गुप्त की लेखन क्षमता का अकाट्य प्रमाण हैं।
इन आलेखों की प्रासंगिकता स्वयंसिद्ध है। समकालीन राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भों को समझने में इन विचारों से बहुत प्रकाश मिलता है। यह भी पता चलता है कि राजनीति में सक्रिय रहने के लिए कितने अध्ययन व विवेक की आवश्यकता होती है। ‘लोहियावाद’ को मूर्तिमान करनेवाले बालकृष्ण गुप्त का लेखन प्रेरणा प्रदान करता है।
खंड—5 (दस्तावेज़) में कुछ ऐतिहासिक महत्त्व के प्रसंग सँजोए गए हैं। पुस्तक में अनेक चित्र हैं जो स्वयं में एक दस्तावेज़ हैं। समग्रत: यह सुसम्पादित व विचार-समृद्ध पुस्तक प्रत्येक जागरूक पाठक के लिए अनिवार्य है।

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Description

‘हाशिए पर पड़ी दुनिया’ बहुआयामी व्यक्तित्व-कृतित्व के धनी बालकृष्ण गुप्त पर केन्द्रित अनूठी पुस्तक है। डॉ. राममनोहर लोहिया और बालकृष्ण गुप्त की राजनीतिक सहभागिता एक इतिहास निर्मित कर चुकी है। अध्ययन, अनुभव, सक्रियता व प्रतिबद्धता का ऐसा उदाहरण दुर्लभ है। प्रस्तुत पुस्तक की भूमिका में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रवि राय लिखते हैं : ‘आप यदि लोहिया पर लिखेंगे तो बालकृष्ण जी छाया बन जाएँगे और बालकृष्ण जी पर लिखेंगे तो लोहिया की देह बनना तय है। वैसे लोहिया मेरे राजनीतिक गुरु रहे हैं जबकि बालकृष्ण जी मेरे गुरु के गुरुत्व होने की शक्ति, यानी कि वह वजह, जिससे लोहिया थे, उस शक्ति पर लिखना निश्चित ही आसान काम नहीं है।’
स्वाभाविक है कि बालकृष्ण गुप्त पर लिखे गए संस्मरणों एवं स्वयं उनके महत्त्वपूर्ण आलेखों से समृद्ध यह पुस्तक अपने समय का ज्वलन्त साक्ष्य है। सम्पादक द्वय सारंग उपाध्याय व अनुराग चतुर्वेदी ने पुस्तक का संयोजन पाँच खंडों में किया है। खंड-1 में आत्मीयजनों के संस्मरण बालकृष्ण गुप्त के कर्मठ जीवन का व्यवस्थित विवेचन करते हैं। खंड-2 (हाशिए पर पड़ी दुनिया), खंड-3 (बुद्धिजीवी नेहरू, लोहिया और वामपंथ) तथा खंड-4 (बिड़ला, गोयनका और अंधी योजनाएँ) में बालकृष्ण गुप्त के विपुल लेखन से चुने गए कुछ महत्त्वपूर्ण आलेख हैं। समाज, राजनीति, अर्थनीति, लोकतंत्र, विदेशनीति, प्रशासन और विश्व परिदृश्य आदि विविध विषयों से सम्बद्ध ये लेख गुप्त की लेखन क्षमता का अकाट्य प्रमाण हैं।
इन आलेखों की प्रासंगिकता स्वयंसिद्ध है। समकालीन राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भों को समझने में इन विचारों से बहुत प्रकाश मिलता है। यह भी पता चलता है कि राजनीति में सक्रिय रहने के लिए कितने अध्ययन व विवेक की आवश्यकता होती है। ‘लोहियावाद’ को मूर्तिमान करनेवाले बालकृष्ण गुप्त का लेखन प्रेरणा प्रदान करता है।
खंड—5 (दस्तावेज़) में कुछ ऐतिहासिक महत्त्व के प्रसंग सँजोए गए हैं। पुस्तक में अनेक चित्र हैं जो स्वयं में एक दस्तावेज़ हैं। समग्रत: यह सुसम्पादित व विचार-समृद्ध पुस्तक प्रत्येक जागरूक पाठक के लिए अनिवार्य है।

About Author

बालकृष्ण गुप्त

समाजवादी विचारक और डॉ. राममनोहर लोहिया के राजनीतिक साथी बालकृष्ण गुप्त जी का जन्म 5 मार्च, 1910 में राजस्थान के बीकानेर ज़िले के भादरा गाँव में हुआ। उन्होंने 1930 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी से फ़र्स्ट-क्लास ऑनर्स के साथ बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1931-1934 में लन्दन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में बी.एससी. ऑनर्स की डिग्री ली। वे प्रो. हेराल्डे लास्की और प्रो. डाल्टन के प्रिय शिष्यों में रहे। वे ट्रॉटस्की से मिलने पेरिस भी गए। लंदन में हैम्पस्टीड क्षेत्र की इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी और सोशलिस्ट लीग के सचिव भी थे। वे वहाँ ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ और ‘हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड’ के संवाददाता व साप्ताहिक-पत्र लेखक भी थे।

बालकृष्ण गुप्त ने हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में बहुत से लेख लिखे। छह सालों तक योरोप तथा एशिया के विभिन्न देशों में घूमकर वहाँ की राजनीति तथा अर्थनीति का गहरा अध्ययन किया। इसके बाद 1932 में रूस की राजनीतिक व्यवस्था का विशेष अध्ययन करने गए। भारत आकर उन्होंने 1942 के आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया। जयप्रकाश नारायण,
डॉ. राममनोहर लोहिया और अरुणा आसफ़ अली की गुप्त रूप से सक्रिय आन्दोलन की रणनीति में सक्रिय हिस्सेदारी से सहायता की।

गुप्त ने अच्युत पटवर्धन और सुचेता कृपलानी की भी बड़ी मदद की। निज़ामशाही के ख़िलाफ़ सोशलिस्ट पार्टी के साथ लड़ाई लड़ी। नेपाल कांग्रेस की स्थापना से लेकर क्रान्ति तक राणाशाही के विरुद्ध चले आन्दोलन में सक्रिय मदद की। सोशलिस्ट पार्टी के शुरू से ही मेम्बर रहे श्री गुप्त अंग्रेज़ी, हिन्दी के कुशल वक्ता व गम्भीर लेखक थे। वे अर्थशास्त्र और अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के पंडित माने जाते थे। बालकृष्ण जी बिहार विधानसभा क्षेत्र से राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1972 में उनका निधन हुआ।

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