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Vayumandaleeya Pradooshan (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Harinarayan Srivastava
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Harinarayan Srivastava
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹395 ₹316
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In stock
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3-5 days
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ISBN:
SKU
9788171782734
Category Hindi
Category: Hindi
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वायुमंडलीय प्रदूषण आज जिस तरह सघन होता जा रहा है, उससे पृथ्वी, प्रकृति और सम्पूर्ण जीवन-जगत को गम्भीर ख़तरा पैदा हो गया है। इसके मूल कारणों में हैं—तीव्र होता जा रहा शहरीकरण, अनियंत्रित औद्योगिक विकास और बढ़ती हुई आबादी।
डॉ. हरिनारायण श्रीवास्तव की यह पुस्तक पर्यावरण अथवा वायुमंडल-प्रदूषण की गम्भीर समस्या का वैज्ञानिक अध्ययन है। अपने अध्ययन-क्षेत्र के विशिष्ट विद्वान डॉ. श्रीवास्तव ने पूरी पुस्तक को आठ अध्यायों में बाँटा है। पहले अध्याय में वायुमंडल, जलवायु और वायुविलय सम्बन्धी जानकारी है। दूसरे में मौसम और प्रदूषण-मापक आधुनिक उपकरणों का विवरण है। तीसरे, चौथे और पाँचवें अध्याय में वायु, जल तथा ध्वनि-प्रदूषण के प्रभाव, उनके नियंत्रण आदि की चर्चा है। छठे में क्लोरोफ़्लूरो कार्बन के ओजोन परत पर पड़ रहे दुष्प्रभाव और उसकी प्रक्रिया को समझाया गया है। सातवें अध्याय में अम्ल-वर्षा के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, तथा आठवें में तापमान, वर्षा, पवनगति, सौर-विकिरण एवं कृषि आदि पर निरन्तर बढ़ती जा रही कार्बन डाइऑक्साइड एवं विरल गैसों के सम्भावित दुष्प्रभावों का विवेचन किया गया है। परिशिष्ट में दिए गए कुछ महत्त्वपूर्ण अध्ययन-निष्कर्षों तथा प्रत्येक अध्याय में यथास्थान शामिल विभिन्न तालिकाओं और रेखाचित्रों ने इस पुस्तक की उपयोगिता में और बढ़ोतरी की है।
कहना न होगा कि वर्तमान सभ्यता पर मँडराते सर्वाधिक घातक ख़तरे के प्रति आगाह करनेवाली यह कृति एक मूल्यवान वैज्ञानिक अध्ययन है।
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Description
वायुमंडलीय प्रदूषण आज जिस तरह सघन होता जा रहा है, उससे पृथ्वी, प्रकृति और सम्पूर्ण जीवन-जगत को गम्भीर ख़तरा पैदा हो गया है। इसके मूल कारणों में हैं—तीव्र होता जा रहा शहरीकरण, अनियंत्रित औद्योगिक विकास और बढ़ती हुई आबादी।
डॉ. हरिनारायण श्रीवास्तव की यह पुस्तक पर्यावरण अथवा वायुमंडल-प्रदूषण की गम्भीर समस्या का वैज्ञानिक अध्ययन है। अपने अध्ययन-क्षेत्र के विशिष्ट विद्वान डॉ. श्रीवास्तव ने पूरी पुस्तक को आठ अध्यायों में बाँटा है। पहले अध्याय में वायुमंडल, जलवायु और वायुविलय सम्बन्धी जानकारी है। दूसरे में मौसम और प्रदूषण-मापक आधुनिक उपकरणों का विवरण है। तीसरे, चौथे और पाँचवें अध्याय में वायु, जल तथा ध्वनि-प्रदूषण के प्रभाव, उनके नियंत्रण आदि की चर्चा है। छठे में क्लोरोफ़्लूरो कार्बन के ओजोन परत पर पड़ रहे दुष्प्रभाव और उसकी प्रक्रिया को समझाया गया है। सातवें अध्याय में अम्ल-वर्षा के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, तथा आठवें में तापमान, वर्षा, पवनगति, सौर-विकिरण एवं कृषि आदि पर निरन्तर बढ़ती जा रही कार्बन डाइऑक्साइड एवं विरल गैसों के सम्भावित दुष्प्रभावों का विवेचन किया गया है। परिशिष्ट में दिए गए कुछ महत्त्वपूर्ण अध्ययन-निष्कर्षों तथा प्रत्येक अध्याय में यथास्थान शामिल विभिन्न तालिकाओं और रेखाचित्रों ने इस पुस्तक की उपयोगिता में और बढ़ोतरी की है।
कहना न होगा कि वर्तमान सभ्यता पर मँडराते सर्वाधिक घातक ख़तरे के प्रति आगाह करनेवाली यह कृति एक मूल्यवान वैज्ञानिक अध्ययन है।
About Author
डॉ. हरिनारायण श्रीवास्तव
भारत मौसम विज्ञान विभाग में अपर महानिदेशक (अनुसंधान) के पद पर कार्य करने के उपरान्त विशिष्ट वैज्ञानिक पद पर नियुक्त किए गए। आपने मौसम और भूकम्प विज्ञान आदि विषयों पर अब तक 200 शोधपत्र एवं लेख लिखे हैं। 1994 में आपकी पुस्तक ‘वायुमंडलीय प्रदूषण’ को भारत सरकार (पर्यावरण तथा वन मंत्रालय) द्वारा प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इससे पूर्व आपकी पुस्तक ‘भूकम्प’ को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विशिष्ट पुरस्कार दिया गया। 1989 में आपको भारत सरकार ने राष्ट्रीय खनिज पुरस्कार प्रदान किया। 1990 में राष्ट्रीय साइंस अकादमी के फेलो चुने गए। डॉ. श्रीवास्तव कई अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्थाओं के सदस्य और विश्व के कई देशों में आयोजित गोष्ठियों में भाग लेते रहे हैं। भारत सरकार के विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग तथा पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा आयोजित समितियों के सदस्य के रूप में भी अपना बहुमूल्य योगदान देते रहे हैं।
नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित आपकी पुस्तक ‘फोरकास्टिंग अर्थक्वेक’ विशेष लोकप्रिय हुई है।
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