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Sham Ka Pahla Tara (PB)
Publisher:
RADHA
| Author:
Zohra Nigah
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
RADHA
Author:
Zohra Nigah
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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9788183613378
Category Hindi
Category: Hindi
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शुरुआती वक़्त में जब ज़ोहरा निगाह मुशायरों में अपनी ग़ज़लें पढ़तीं तो लोग कहा करते थे कि ये दुबली-पतली लड़की इतनी उम्दा शायरी कैसे कर लेती है, ज़रूर कोई बुज़ुर्ग है जो इसको लिखकर देता होगा; लेकिन बाद में सबने जाना कि उनका सोचना सही नहीं था। छोटी-सी उम्र में मुशायरों में अपनी धाक ज़माने के बाद उन्होंने दूसरा क़दम सामाजिक सच्चाइयों की ख़ुरदरी ज़मीन पर रखा; यहीं से उनकी नज़्म की भी शुरुआत होती है जो शायरा की आपबीती और जगबीती के मेल से एक अलग ही रंग लेकर आती है और ‘मुलायम गर्म समझौते की चादर’, ‘कसीदा-ए-बहार’ तथा ‘नया घर’ जैसी नज़्में वजूद में आती हैं।
ज़ोहरा निगाह आज पाकिस्तान की पहली पंक्ति के शायरों में गिनी जाती हैं; ‘शाम का पहला तारा’ उनकी पहली किताब थी, जिसे भारत और पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर सराहा गया था। ज़ोहरा निगाह औरत की ज़बान में दुनिया के बारे में लिखती हैं, फ़ैमिनिस्ट कहा जाना उन्हें उतना पसन्द नहीं है। वे ऐसे किसी वर्गीकरण के हक़ में नहीं हैं। इस किताब में शामिल नज़्में और ग़ज़लें उनकी दृष्टि की व्यापकता और गहराई की गवाह हैं।
‘‘दिल गुज़रगाह है आहिस्ता ख़रामी के लिए
तेज़ गामी को जो अपनाओ तो खो जाओगे
इक ज़रा देर ही पलकों को झपक लेने दो
इस क़दर ग़ौर से देखोगे तो खो जाओगे।’’
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Description
शुरुआती वक़्त में जब ज़ोहरा निगाह मुशायरों में अपनी ग़ज़लें पढ़तीं तो लोग कहा करते थे कि ये दुबली-पतली लड़की इतनी उम्दा शायरी कैसे कर लेती है, ज़रूर कोई बुज़ुर्ग है जो इसको लिखकर देता होगा; लेकिन बाद में सबने जाना कि उनका सोचना सही नहीं था। छोटी-सी उम्र में मुशायरों में अपनी धाक ज़माने के बाद उन्होंने दूसरा क़दम सामाजिक सच्चाइयों की ख़ुरदरी ज़मीन पर रखा; यहीं से उनकी नज़्म की भी शुरुआत होती है जो शायरा की आपबीती और जगबीती के मेल से एक अलग ही रंग लेकर आती है और ‘मुलायम गर्म समझौते की चादर’, ‘कसीदा-ए-बहार’ तथा ‘नया घर’ जैसी नज़्में वजूद में आती हैं।
ज़ोहरा निगाह आज पाकिस्तान की पहली पंक्ति के शायरों में गिनी जाती हैं; ‘शाम का पहला तारा’ उनकी पहली किताब थी, जिसे भारत और पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर सराहा गया था। ज़ोहरा निगाह औरत की ज़बान में दुनिया के बारे में लिखती हैं, फ़ैमिनिस्ट कहा जाना उन्हें उतना पसन्द नहीं है। वे ऐसे किसी वर्गीकरण के हक़ में नहीं हैं। इस किताब में शामिल नज़्में और ग़ज़लें उनकी दृष्टि की व्यापकता और गहराई की गवाह हैं।
‘‘दिल गुज़रगाह है आहिस्ता ख़रामी के लिए
तेज़ गामी को जो अपनाओ तो खो जाओगे
इक ज़रा देर ही पलकों को झपक लेने दो
इस क़दर ग़ौर से देखोगे तो खो जाओगे।’’
About Author
ज़ोहरा निगाह
जन्म : 14 मई, 1937; हैदराबाद, ब्रिटिश इंडिया। 1947 में बँटवारे के दौरान आपका परिवार पाकिस्तान जा बसा।
साहित्य क्षितिज पर एक बाल प्रतिभा के रूप में आपका उदय 1950 में हुआ और तब से आज तक आप मुशायरों की एक लोकप्रिय आवाज़ बनी हुई हैं।
जीवन को आप निस्सन्देह स्त्री की निगाह से देखती हैं लेकिन आपके सरोकार स्त्रियों तक ही सीमित नहीं हैं। स्त्री-सुलभ बिम्बों और मुहावरों का इस्तेमाल करते हुए आपने समकालीन, सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर गम्भीर टिप्पणियाँ की हैं। बांग्लादेश युद्ध और अफ़ग़ानिस्तान की हृदयविदारक घटनाओं की तरफ़ आपने इशारा किया। जनरल ज़िया के शासनकाल में आपने दमनकारी हुदूद अध्यादेश पर भी लिखा। मुहब्बत, दोस्ती और रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के सुख-दु:ख आपकी शायरी के प्रिय विषय रहे हैं।
आपकी अभी तक प्रकाशित कविता पुस्तकों में ‘शाम का पहला तारा’ और ‘वर्क़’ शामिल हैं। आपने कभी ज़्यादा लिखने की कोशिश नहीं की, इसीलिए आपकी क़लम से जो भी निकला, मोती-सी मानिन्द चमकता हुआ निकला।
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