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Yahi Tum The : Smaran "Viren Dangwal" (PB)
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Yahi Tum The : Smaran “Viren Dangwal” (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Pankaj Chaturvedi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Pankaj Chaturvedi
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹595 ₹417
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In stock
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3-5 days
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ISBN:
SKU
9789392757921
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
किसी भी मृत्यु के शोक से हर कोई अपनी तरह उबरता है। कई बार तो इस प्रक्रिया का भान नहीं होता और हम उस व्यक्ति को अपने भीतर से भी खो देते हैं, जिसे दैहिक तौर पर पहले खो चुके हैं। हिन्दी के विलक्षण कवि वीरेन डंगवाल के निधन के बाद अवसन्न छूट गई हिन्दी की दुनिया भी जब अपने ढंग से इस शोक से उबरने की कोशिश कर रही थी, तब कवि और आलोचक पंकज चतुर्वेदी कवि के साथ अपनी स्मृति को पुनर्जीवित कर रहे थे। इसी का परिणाम है यह सुविचारित और संवेदनसिक्त किताब यही तुम थे; जिसके ज़रिए हम कुछ अचरज के साथ दो कवियों के बीच अंतर्गुम्फित उस संसार को देख सकते हैं, जो अपनी तरह से बेहद अर्थपूर्ण और तहदार था।
पंकज चतुर्वेदी की यह किताब दो लोगों के सम्बन्धों के बारे में ही नहीं है, यह इस बात के बारे में भी है कि हम अपने सम्बन्धों को किस तरह देखें और महसूस करें। फिर कहने की ज़रूरत है कि यह काम कोशिश करके सम्भव नहीं है; यह रिश्तों की उस संलग्नता, ऊष्मा और तीव्रता से ही सम्भव है, जो इस किताब के दोनों किरदारों—पंकज चतुर्वेदी और वीरेन डंगवाल के बीच बनती रही और दोनों को बनाती भी रही।
मूलतः स्मृतिविन्यस्त होने के बावजूद यह किताब शास्त्रीय या प्रचलित अर्थों में संस्मरण नहीं है। यह किताब अपने छोटे-छोटे प्रसंगों में हमें साहित्य, कविता, विचार और ज़िन्दगी के बारे में सोचने पर मजबूर तो करती ही है, लेकिन सबसे ज़्यादा इस बात की तरफ़ ध्यान खींचती है कि दो मनुष्य कैसे एक-दूसरे को देख और सिरज सकते हैं।
—प्रियदर्शन
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Description
किसी भी मृत्यु के शोक से हर कोई अपनी तरह उबरता है। कई बार तो इस प्रक्रिया का भान नहीं होता और हम उस व्यक्ति को अपने भीतर से भी खो देते हैं, जिसे दैहिक तौर पर पहले खो चुके हैं। हिन्दी के विलक्षण कवि वीरेन डंगवाल के निधन के बाद अवसन्न छूट गई हिन्दी की दुनिया भी जब अपने ढंग से इस शोक से उबरने की कोशिश कर रही थी, तब कवि और आलोचक पंकज चतुर्वेदी कवि के साथ अपनी स्मृति को पुनर्जीवित कर रहे थे। इसी का परिणाम है यह सुविचारित और संवेदनसिक्त किताब यही तुम थे; जिसके ज़रिए हम कुछ अचरज के साथ दो कवियों के बीच अंतर्गुम्फित उस संसार को देख सकते हैं, जो अपनी तरह से बेहद अर्थपूर्ण और तहदार था।
पंकज चतुर्वेदी की यह किताब दो लोगों के सम्बन्धों के बारे में ही नहीं है, यह इस बात के बारे में भी है कि हम अपने सम्बन्धों को किस तरह देखें और महसूस करें। फिर कहने की ज़रूरत है कि यह काम कोशिश करके सम्भव नहीं है; यह रिश्तों की उस संलग्नता, ऊष्मा और तीव्रता से ही सम्भव है, जो इस किताब के दोनों किरदारों—पंकज चतुर्वेदी और वीरेन डंगवाल के बीच बनती रही और दोनों को बनाती भी रही।
मूलतः स्मृतिविन्यस्त होने के बावजूद यह किताब शास्त्रीय या प्रचलित अर्थों में संस्मरण नहीं है। यह किताब अपने छोटे-छोटे प्रसंगों में हमें साहित्य, कविता, विचार और ज़िन्दगी के बारे में सोचने पर मजबूर तो करती ही है, लेकिन सबसे ज़्यादा इस बात की तरफ़ ध्यान खींचती है कि दो मनुष्य कैसे एक-दूसरे को देख और सिरज सकते हैं।
—प्रियदर्शन
About Author
पंकज चतुर्वेदी
पंकज चतुर्वेदी का जन्म 24 अगस्त, 1971 को उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में हुआ। इटावा और कानपुर के गाँवों-क़स्बों में आरम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट हुए। आगे की पढ़ाई और शोधकार्य जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से किया।
इनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘एक सम्पूर्णता के लिए’, ‘एक ही चेहरा’, ‘रक्तचाप और अन्य कविताएँ’ (कविता-संग्रह); ‘आत्मकथा की संस्कृति’, ‘निराशा में भी सामर्थ्य’, ‘रघुवीर सहाय’ (साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के लिए विनिबन्ध), ‘जीने का उदात्त आशय’ (आलोचना); भर्तृहरि के इक्यावन श्लोकों की हिन्दी अनुरचनाएँ। इन्होंने मंगलेश डबराल की ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ का सम्पादन भी किया है।
इन्हें कविता के लिए वर्ष 1994 के ‘भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार’ और आलोचना के लिए 2003 के ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’ एवं उ.प्र. हिन्दी संस्थान के ‘रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। 2019 में इन्हें ‘रज़ा फ़ेलोशिप’ प्रदान की गई है।
फ़िलहाल विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म कॉलेज (कानपुर) में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष हैं।
सम्पर्क : pankajgauri2013@gmail.com
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