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Narak Yatra (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Gyan Chaturvedi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Gyan Chaturvedi
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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9788171786930
Category Hindi
Category: Hindi
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ज्ञान चतुर्वेदी का यह उपन्यास ‘नरक-यात्रा’ महान रूसी उपन्यासों की परंपरा में है, जो कहानी और इसके चरित्रों के हर संभव पक्ष तथा तनावों को अपने में समेटकर बढ़ा है। यह उपन्यास भारत के किसी भी बड़े सरकारी अस्पताल के किसी एक दिन मात्र की कथा कहता है। अस्पताल, जो नरक से कम नहीं, विशेष तौर पर गरीब आम आदमी के लिए।
लेखक हमें अस्पताल के इसी नरक की सतत यात्रा पर ले जाता है, जो अस्पताल के हर कोने में तो व्याप्त है ही, साथ ही इसमें कार्यरत लोगों की आत्मा में भी फैल गया है। ऑपरेशन थिएटर से अस्पताल के रसोईघर तक, वार्ड बॉय से सर्जन तक–हर चरित्र और स्थिति के कर्म-कुकर्म को लेखक ने निर्ममता से उजागर किया है। उसकी मीठी छुरी-सी पैनी जुबान और उछालकर मजा लेने की प्रवृत्ति इस निर्मम लेखन-कर्म को और भी महत्त्वपूर्ण बनाती है। किसी सुधारक अथवा क्रांतिकारी लेखक का लबादा ओढ़े बगैर ज्ञान चतुर्वेदी ने निर्मम, गलीज यथार्थ पर सर्जनात्मक टिप्पणी की है और खूब की है।
यह उपन्यास अद्भुत जीवन तथा उतने ही अद्भुत जीवन-चरित्रों की कथा को ऐसी भाषा में बयान करता है जो आम आदमी के मुहावरों और बोली से संपन्न है, जिसमें मजे लेकर बोली जानेवाली अदा और बाँध लेने की शक्ति है।
–स्वदेश दीपक
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Description
ज्ञान चतुर्वेदी का यह उपन्यास ‘नरक-यात्रा’ महान रूसी उपन्यासों की परंपरा में है, जो कहानी और इसके चरित्रों के हर संभव पक्ष तथा तनावों को अपने में समेटकर बढ़ा है। यह उपन्यास भारत के किसी भी बड़े सरकारी अस्पताल के किसी एक दिन मात्र की कथा कहता है। अस्पताल, जो नरक से कम नहीं, विशेष तौर पर गरीब आम आदमी के लिए।
लेखक हमें अस्पताल के इसी नरक की सतत यात्रा पर ले जाता है, जो अस्पताल के हर कोने में तो व्याप्त है ही, साथ ही इसमें कार्यरत लोगों की आत्मा में भी फैल गया है। ऑपरेशन थिएटर से अस्पताल के रसोईघर तक, वार्ड बॉय से सर्जन तक–हर चरित्र और स्थिति के कर्म-कुकर्म को लेखक ने निर्ममता से उजागर किया है। उसकी मीठी छुरी-सी पैनी जुबान और उछालकर मजा लेने की प्रवृत्ति इस निर्मम लेखन-कर्म को और भी महत्त्वपूर्ण बनाती है। किसी सुधारक अथवा क्रांतिकारी लेखक का लबादा ओढ़े बगैर ज्ञान चतुर्वेदी ने निर्मम, गलीज यथार्थ पर सर्जनात्मक टिप्पणी की है और खूब की है।
यह उपन्यास अद्भुत जीवन तथा उतने ही अद्भुत जीवन-चरित्रों की कथा को ऐसी भाषा में बयान करता है जो आम आदमी के मुहावरों और बोली से संपन्न है, जिसमें मजे लेकर बोली जानेवाली अदा और बाँध लेने की शक्ति है।
–स्वदेश दीपक
About Author
ज्ञान चतुर्वेदी
मऊरानीपुर (झाँसी) उत्तर प्रदेश में 2 अगस्त, 1952 को जन्मे डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी की मध्य प्रदेश में ख्यात हृदयरोग विशेषज्ञ के रूप में विशिष्ट पहचान है। चिकित्सा शिक्षा के दौरान सभी विषयों में ‘स्वर्ण पदक’ प्राप्त करनेवाले छात्र का गौरव हासिल किया। भारत सरकार के एक संस्थान (बी.एच.ई.एल.) के चिकित्सालय में कोई तीन दशक से ऊपर सेवाएँ देने के पश्चात् शीर्षपद से सेवा-निवृत्ति।
लेखन की शुरुआत सत्तर के दशक से ‘धर्मयुग’ से। प्रथम उपन्यास ‘नरक-यात्रा’ अत्यन्त चर्चित रहा, जो भारतीय चिकित्सा-शिक्षा और व्यवस्था पर था। इसके पश्चात् ‘बारामासी’, ‘मरीचिका’ तथा ‘हम न मरब’ जैसे उपन्यास आए।
दस वर्षों तक ‘इंडिया टुडे’ तथा ‘नया ज्ञानोदय’ में नियमित स्तम्भ। इसके अतिरिक्त ‘राजस्थान पत्रिका’ और ‘लोकमत समाचार’ दैनिकों में भी काफ़ी समय तक व्यंग्य स्तम्भ-लेखन।
अभी तक तक़रीबन हज़ार व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन। ‘प्रेत कथा’, ‘दंगे में मुर्गा’, ‘मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ’, ‘बिसात बिछी है’, ‘ख़ामोश! नंगे हमाम में हैं’, ‘प्रत्यंचा’ और ‘बाराखड़ी’ व्यंग्य-संग्रह।
शरद जोशी के ‘प्रतिदिन’ के प्रथम खंड का अंजनी चौहान के साथ सम्पादन।
भारत सरकार द्वारा 2015 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित। ‘राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान’, (म.प्र. सरकार); दिल्ली अकादमी का व्यंग्य-लेखन के लिए दिया जानेवाला प्रतिष्ठित ‘अकादमी सम्मान’; ‘अन्तरराष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा-सम्मान’ (लन्दन) तथा ‘चकल्लस पुरस्कार’ के अलावा कई विशिष्ट सम्मान।
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