Pikadili Circus (PB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
Nimai Bhattacharya
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Lokbharti
Author:
Nimai Bhattacharya
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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बहुत बातें सुन चुकी हूँ, बोल चुकी हूँ मगर आज दिल्ली जाने के दौरान लग रहा है, नहीं, कोई बात न बोल सकी हूँ और न ही सुन सकी हूँ। फिर जा क्यों रही हूँ? दूर से संवेदना प्रकट करना या प्यार करना मुश्किल बात नहीं है, लेकिन समाज के अनगिन लोगों की आलोचना अनसुनी कर मुझ जैसी भाग्यहीन युवती को सम्मान के साथ जीवन में स्वीकार कर लेना आसान काम नहीं है। विवेक क्या वह कर सकेगा?
मालूम नहीं। सचमुच मालूम नहीं है। किसी को अच्छी तरह जानने-पहचानने के लिए जितने दिनों तक घनिष्ठता के साथ मिलने-जुलने की आवश्यकता पड़ती है, विवेक से उस रूप में मैं कभी मिल-जुल नहीं सकी हूँ। प्याली को बिना जताए, किसी भी व्यक्ति को समझने का मौक़ा दिए बग़ैर कलकत्ते में विवेक और मैं मिलते-जुलते रहे हैं, साथ-साथ घूमते-फिरते रहे हैं और सिनेमा देखते रहे हैं। अच्छा ज़रूर लगता था मगर उसे अपने निकट पाने के लिए मन में कभी बेचैनी का अहसास नहीं होता था। प्यार सिर्फ़ अच्छा ही नहीं लगता, वह आदमी के जीवन में पूर्णता और तृप्ति ले आता है। प्यार तुच्छता के अँधेरे को बेधकर महान जीवन की ओर ले जाता है। विवेक को अपने निकट पाकर मैंने कभी उस पूर्णता, तृप्ति और तुच्छता की ग्लानि से मुक्त महान जबान का स्वाद नहीं पाया था। पाने की प्रत्याशा भी नहीं की थी।
—इसी पुस्तक से

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Description

बहुत बातें सुन चुकी हूँ, बोल चुकी हूँ मगर आज दिल्ली जाने के दौरान लग रहा है, नहीं, कोई बात न बोल सकी हूँ और न ही सुन सकी हूँ। फिर जा क्यों रही हूँ? दूर से संवेदना प्रकट करना या प्यार करना मुश्किल बात नहीं है, लेकिन समाज के अनगिन लोगों की आलोचना अनसुनी कर मुझ जैसी भाग्यहीन युवती को सम्मान के साथ जीवन में स्वीकार कर लेना आसान काम नहीं है। विवेक क्या वह कर सकेगा?
मालूम नहीं। सचमुच मालूम नहीं है। किसी को अच्छी तरह जानने-पहचानने के लिए जितने दिनों तक घनिष्ठता के साथ मिलने-जुलने की आवश्यकता पड़ती है, विवेक से उस रूप में मैं कभी मिल-जुल नहीं सकी हूँ। प्याली को बिना जताए, किसी भी व्यक्ति को समझने का मौक़ा दिए बग़ैर कलकत्ते में विवेक और मैं मिलते-जुलते रहे हैं, साथ-साथ घूमते-फिरते रहे हैं और सिनेमा देखते रहे हैं। अच्छा ज़रूर लगता था मगर उसे अपने निकट पाने के लिए मन में कभी बेचैनी का अहसास नहीं होता था। प्यार सिर्फ़ अच्छा ही नहीं लगता, वह आदमी के जीवन में पूर्णता और तृप्ति ले आता है। प्यार तुच्छता के अँधेरे को बेधकर महान जीवन की ओर ले जाता है। विवेक को अपने निकट पाकर मैंने कभी उस पूर्णता, तृप्ति और तुच्छता की ग्लानि से मुक्त महान जबान का स्वाद नहीं पाया था। पाने की प्रत्याशा भी नहीं की थी।
—इसी पुस्तक से

About Author

निमाई भट्टाचार्य

जन्म 10 अप्रैल 1931 जशोर के गांव शालिखा बांग्लादेश में हुआ था।
निमाई भट्टाचार्य ने पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया और लगभग 25 वर्षों तक राजनीतिक, राजनयिक और संसद संवाददाता के रूप में काम किया। उनका पहला उपन्यास 1963 में साप्ताहिक अमृतबाजार अखबार में प्रकाशित हुआ था।

प्रकाशित रचनायें: लगभग 150 पुस्तकों के लेखक निमाई भट्टाचार्य की कृतियाँ 'मेमसाहिब', 'मिनीबस', 'माताल', 'इंकलाब', 'इमोन कल्याण', 'प्रबेश निशेध', 'क्लर्क', 'वाया डलहौजी', 'हॉकर्स कॉर्नर', 'राजधानी एक्सप्रेस', 'एंग्लो- इंडियन', 'डार्लिंग', 'मैडम', 'गुधुलिया', 'आकाश भरा सूर्य तारा', 'मुगल सराय जंक्शन', 'कॉकटेल', 'अनुरोध अशोर', 'युवां निकुंजे', 'शेष परानीर कारी', 'हरेकृष्णा' ज्वैलर्स', और 'पाथेर शेष' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उनका उपन्यास 'मेमसाहिब' बंगाली साहित्य की एक मील का पत्थर है। 1972 में, इसी शीर्षक के तहत उपन्यास पर आधारित एक फिल्म बनाई गई थी। इनका निधन 25 जून 2020 को कोलकाता में हुआ |

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