Pratinidhi Kahaniyan : Suryabala (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Suryabala
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Suryabala
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सूर्यबाला सहज लेकिन बहुस्तरीय अभिव्यक्ति की कथाकार हैं। उनके पात्र अपने जीवन को जीते हुए उन सच्चाइयों को बयान कर जाते हैं जिन्हें विचारों और शिल्प-चातुर्य से बोझिल कथाएँ अकसर नहीं कर पातीं। उनका रचना-संकल्प अपने परिवेश और उसमें रची-बसी सहज मानवीय जिजीविषा के आलोड़नों से उठता है; इसलिए वे ऐसी कहानियाँ रच पाती हैं जिन्हें हर पाठक अपनी संवेदना की गहराई के साथ पढ़ सकता है, उनमें अपने किसी न किसी भाव-पक्ष का बिम्ब देख सकता है। कथा-कथन की पारम्परिक प्रवाहमयता को बरकरार रखते हुए वे उसे आधुनिक जीवन-संघर्षों की सहज वाहक बना देती हैं। पठनीयता जिसकी सबसे बड़ी उपलब्धि होती है, जिसके चलते पाठक कब भीतर से बदलना शुरू हो जाता है, पता ही नहीं चलता। भाव-प्रवण स्थितियों को वे ऐसे तटस्थ कौशल से चित्रित करती हैं कि पाठक-मन में होनेवाला करुणा का उद्रेक निरर्थक सहानुभूति की तरफ नहीं, यथार्थ की विडम्बना के प्रति प्रतिकार और अस्वीकार की ओर मुड़ जाता है। वे किसी आन्दोलन की अनुयायी नहीं रहीं, उनके विमर्श का आधार उनका अपना सरोकार बोध है, जो उन्हें अपने वृत्त के बाहर से जुटाए गए आग्रहों की कृत्रिमता से भी बचाता है।

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सूर्यबाला सहज लेकिन बहुस्तरीय अभिव्यक्ति की कथाकार हैं। उनके पात्र अपने जीवन को जीते हुए उन सच्चाइयों को बयान कर जाते हैं जिन्हें विचारों और शिल्प-चातुर्य से बोझिल कथाएँ अकसर नहीं कर पातीं। उनका रचना-संकल्प अपने परिवेश और उसमें रची-बसी सहज मानवीय जिजीविषा के आलोड़नों से उठता है; इसलिए वे ऐसी कहानियाँ रच पाती हैं जिन्हें हर पाठक अपनी संवेदना की गहराई के साथ पढ़ सकता है, उनमें अपने किसी न किसी भाव-पक्ष का बिम्ब देख सकता है। कथा-कथन की पारम्परिक प्रवाहमयता को बरकरार रखते हुए वे उसे आधुनिक जीवन-संघर्षों की सहज वाहक बना देती हैं। पठनीयता जिसकी सबसे बड़ी उपलब्धि होती है, जिसके चलते पाठक कब भीतर से बदलना शुरू हो जाता है, पता ही नहीं चलता। भाव-प्रवण स्थितियों को वे ऐसे तटस्थ कौशल से चित्रित करती हैं कि पाठक-मन में होनेवाला करुणा का उद्रेक निरर्थक सहानुभूति की तरफ नहीं, यथार्थ की विडम्बना के प्रति प्रतिकार और अस्वीकार की ओर मुड़ जाता है। वे किसी आन्दोलन की अनुयायी नहीं रहीं, उनके विमर्श का आधार उनका अपना सरोकार बोध है, जो उन्हें अपने वृत्त के बाहर से जुटाए गए आग्रहों की कृत्रिमता से भी बचाता है।

About Author

सूर्यबाला

जन्म : 25 अक्टूबर, 1943; वाराणसी।

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी., काशी विश्वविद्यालय, वाराणसी।

प्रकाशित कृतियाँ : 'मेरे संधि-पत्र’, ‘कौन देस को वासी : वेणु की डायरी’, ‘सुबह के इन्‍तज़ार तक’, ‘अग्निपंखी’, 'यामिनी-कथा’, ‘दीक्षान्‍त’ (उपन्यास); ‘एक इन्‍द्रधनुष जुबेदा के नाम’, 'दिशाहीन’, 'थाली-भर चाँद’, 'मुँडेर पर’, 'गृह-प्रवेश', ‘साँझवाती', ‘कात्यायनी संवाद’, ‘मानुष-गंध’, ‘गौरा गुनवंती’ (कहानी); 'अजगर करे न चाकरी’, ‘धृतराष्ट्र टाइम्स’, ‘देश सेवा के अखाड़े में’, 'भगवान ने कहा था’, 'यह व्यंग्य कौ पंथ’ (व्यंग्य); ‘अलविदा अन्ना’ (विदेश संस्मरण); ‘झगड़ा निपटारक दफ़्तर' (बाल हास्य उपन्यास)।

कई रचनाएँ भारतीय एवं विदेशी भाषाओँ में अनूदित।

टीवी धारावाहिकों के माध्यम से अनेक कहानियों, उपन्यासों तथा हास्य-व्यंग्यपरक रचनाओं का रूपान्‍तर प्रसारित। ‘सज़ायाफ़्ता’ कहानी पर बनी टेलीफ़िल्म को वर्ष 2007 का सर्वश्रेष्ठ टेलीफ़िल्म पुरस्कार।

कोलंबिया विश्वविद्यालय (न्यूयार्क), वेस्टइंडीज़ विश्‍वविद्यालय (त्रिनिदाद) एवं नेहरू सेंटर (लंदन) में कहानी एवं व्यंग्य रचनाओं का पाठ। न्यूयार्क के ‘शब्द’ टी.वी. चैनल पर कहानी एवं व्यंग्य-पाठ।

सम्मान : ‘प्रियदर्शिनी पुरस्कार’, ‘व्यंग्यश्री पुरस्कार’, ‘रत्नादेवी गोयनका वाग्देवी पुरस्कार’, ‘हरिशंकर परसाई स्मृति सम्मान’, महाराष्ट्र साहित्य अकादेमी का राजस्तरीय सम्मान, महाराष्ट्र साहित्य अकादेमी का सर्वोच्च ‘शिखर सम्मान’, ‘राष्ट्रीय शरद जोशी प्रतिष्ठा पुरस्कार’, भारतीय प्रसार-परिषद का ‘भारती गौरव सम्मान’ आदि से सम्मानित।

सम्पर्क : बी—504, रूनवाल सेंटर, गोवंडी स्टेशन रोड, देवनार, चेम्बूर, मुम्बई—400088

 

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