Nagpash Mein Stree (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Ed. Gitashree
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Ed. Gitashree
Language:
Hindi
Format:
Hardback

347

Save: 30%

In stock

Ships within:
3-5 days

In stock

Weight 0.368 g
Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9788126719006 Category
Category:
Page Extent:

आज बाज़ार के दबाव और सूचना-संचार माध्यमों के फैलाव ने राजनीति, समाज और परिवार का चरित्र पूरी तरह बदल डाला है, मगर पितृसत्ता का पूर्वग्रह और स्त्री को देखने का उसका नज़रिया नहीं बदला है, जो एक तरफ़ स्त्री की देह को ललचाई नज़रों से घूरता है, तो दूसरी तरफ़ उससे कठोर यौन-शुचिता की अपेक्षा भी रखता है। पितृसत्ता का चरित्र वही है। हाँ, समाज में बड़े पैमाने पर सक्रिय और आत्मनिर्भर होती स्त्री की स्वतंत्र चेतना पर अंकुश लगाने के उसके हथकंडे ज़रूर बदले हैं। मगर ख़ुशी की बात यह है कि इसके बरक्स बड़े पैमाने पर आत्मनिर्भर होती स्त्रियों ने अब इस व्यवस्था से निबटने की रणनीति अपने-अपने स्तर पर तय करनी शुरू कर दी है।
आख़िर कब तक स्त्रियाँ ऐसे समय और नैतिकता की बाट जोहती रहेंगी जब उन्हें स्वतंत्र और सम्मानित इकाई के रूप में स्वीकार किया जाएगा? क्या यह वाकई ज़रूरी है कि स्त्रियाँ पुरुषों के साहचर्य को तलाशती रहें? क्यों स्त्री की प्राथमिकताओं में नई नैतिकता को जगह नहीं मिलनी चाहिए?
इस पुस्तक में साहित्य, पत्रकारिता, थिएटर, समाज-सेवा और कला-जगत की ऐसी ही कुछ प्रबुद्ध स्त्रियों ने पितृसत्ता द्वारा रची गई छद्म नैतिकता पर गहराई और गम्भीरता से चिन्तन किया है और स्त्री-मुक्ति के रास्तों की तलाश की है। प्रभा खेतान कहती हैं, ‘नारीवाद, राजनीति से सम्बन्धित नैतिक सिद्धान्तों को पहचानना होगा, ताकि सेवा जैसा नैतिक गुण राजनीतिक रूपान्तरण का आधार बन सके।’

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Nagpash Mein Stree (HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

आज बाज़ार के दबाव और सूचना-संचार माध्यमों के फैलाव ने राजनीति, समाज और परिवार का चरित्र पूरी तरह बदल डाला है, मगर पितृसत्ता का पूर्वग्रह और स्त्री को देखने का उसका नज़रिया नहीं बदला है, जो एक तरफ़ स्त्री की देह को ललचाई नज़रों से घूरता है, तो दूसरी तरफ़ उससे कठोर यौन-शुचिता की अपेक्षा भी रखता है। पितृसत्ता का चरित्र वही है। हाँ, समाज में बड़े पैमाने पर सक्रिय और आत्मनिर्भर होती स्त्री की स्वतंत्र चेतना पर अंकुश लगाने के उसके हथकंडे ज़रूर बदले हैं। मगर ख़ुशी की बात यह है कि इसके बरक्स बड़े पैमाने पर आत्मनिर्भर होती स्त्रियों ने अब इस व्यवस्था से निबटने की रणनीति अपने-अपने स्तर पर तय करनी शुरू कर दी है।
आख़िर कब तक स्त्रियाँ ऐसे समय और नैतिकता की बाट जोहती रहेंगी जब उन्हें स्वतंत्र और सम्मानित इकाई के रूप में स्वीकार किया जाएगा? क्या यह वाकई ज़रूरी है कि स्त्रियाँ पुरुषों के साहचर्य को तलाशती रहें? क्यों स्त्री की प्राथमिकताओं में नई नैतिकता को जगह नहीं मिलनी चाहिए?
इस पुस्तक में साहित्य, पत्रकारिता, थिएटर, समाज-सेवा और कला-जगत की ऐसी ही कुछ प्रबुद्ध स्त्रियों ने पितृसत्ता द्वारा रची गई छद्म नैतिकता पर गहराई और गम्भीरता से चिन्तन किया है और स्त्री-मुक्ति के रास्तों की तलाश की है। प्रभा खेतान कहती हैं, ‘नारीवाद, राजनीति से सम्बन्धित नैतिक सिद्धान्तों को पहचानना होगा, ताकि सेवा जैसा नैतिक गुण राजनीतिक रूपान्तरण का आधार बन सके।’

About Author

गीताश्री

जन्म : 31 दिसम्बर, 1965; मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार)।

औरत की आज़ादी और अस्मिता की पक्षधर गीताश्री के लेखन की शुरुआत कॉलेज के दिनों से ही हो गई थी और वह रचनात्मक सफ़र पिछले कई सालों से जारी है। साहित्य की प्राय: सभी विधाओं में दस्तक। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया में काम करने का लम्बा अनुभव।

देश की सभी महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में रिपोर्ताज और यात्रा-वृत्तान्त प्रकाशित, जो कहीं न कहीं से औरत की पहचान का आईना बने।

एक पत्रकार और संस्कृतिकर्मी के रूप में ईरान, अमेरिका, चीन, बेल्जियम, जर्मनी, ब्रिटेन, तिब्बत और प्रमुख खाड़ी देशों के अलावा सीरिया जैसे देशों की यात्रा। 

देश के कई प्रतिष्ठित संस्थानों की ओर से फ़ेलोशिप, जिनमें नेशनल फ़ाउंडेशन फॉर मीडिया फ़ेलोशिप (2008), इनफ़ोचेंज मीडिया फ़ेलोशिप (2008), नेशनल फ़ाउंडेशन फॉर मीडिया (2010) और सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (2010) प्रमुख हैं।

राजस्थान के बँधुआ मज़दूरों के दर्द को शब्द देने के लिए ‘ग्रासरूट फीचर अवार्ड’, औरत की अस्मिता पर लेखन के लिए ‘न्यूज़ पेपर एसोसिएशन’ और ‘मातृश्री अवार्ड’। वर्ष 2008-09 में पत्रकारिता का सर्वोच्च ‘रामनाथ गोयनका पुरस्कार’, ‘बेस्ट हिन्दी जर्नलिस्ट ऑफ़ द इयर’, ‘बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान’ समेत अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त।

कई पत्र-पत्रिकाओं की कॉलमिस्ट रहीं और सिनेमा और कला के लिए भी लिखा।

अब तक चार कहानी-संग्रह, एक उपन्यास। स्त्री-विमर्श पर चार शोध किताबें प्रकाशित। कई चर्चित किताबों का सम्पादन-संयोजन।

कई सालों तक सक्रिय पत्रकारिता के बाद फ़िलहाल स्वतंत्र पत्रकारिता और साहित्य-लेखन।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Nagpash Mein Stree (HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED