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Shri Ramcharitmanas : Shasth Sopan (Lankakand) (HB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
Yogendra Pratap Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Lokbharti
Author:
Yogendra Pratap Singh
Language:
Hindi
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Hardback

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‘श्रीरामचरितमानस’ लीलान्‍वयी काव्य है। इनकी मान्यताएँ वाल्मीकि रामायण से न जुड़कर भागवत पुराण से जुड़ती हैं। वाल्मीकि अपनी ‘रामायण’ के ‘लंकाकांड’ में ‘रावण वध’ की समापन कथा कहते हैं, किन्तु तुलसीकृत मानस का ‘लंकाकांड’ रावण का मुक्ति का आख्यान है।
प्रभु के प्रति द्वेष भी भक्ति ही है और उस अमर्ष भाव में आकंठ डूबे रावण जैसे व्यक्तित्व के प्रति श्रीराम का क्रोध उनकी कृपा तथा अनुग्रह है। इसलिए तुलसीदासकृत लंकाकांड को कथा समापन के रूप में नहीं लेना चाहिए, वरन् मध्यकालीन लीलाभक्ति की उस अवधारणा से जोड़कर देखना चाहिए, जहाँ शत्रु-मित्र, साधु-असाधु, राक्षस-मानव के बीच स्थिर दीवार को तोड़कर सभी को एक मंच पर बैठाने की तत्परता दिखाई पड़ती है। हिन्दू-अहिन्दू को एक तार से जोड़नेवाली यह भक्ति निश्चित ही भारतीय संस्कृति की विषमता के युग में एक बहुत बड़ी सम्बल थी।
तुलसी अपने इस ‘लंकाकांड’ में ‘रावण वध’ की कथा न कहकर राम एवं रावण के बीच रागात्मक ऐक्य की स्थापना की कथा कहते हैं। रावण के भौतिक शरीर को विनष्ट करके उसकी तेजोमयी चेतना का श्रीराम के शरीर में विलयन भक्ति द्वारा स्थापित रागात्मक समन्‍वय का सबसे बड़ा साक्ष्य है।

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Description

‘श्रीरामचरितमानस’ लीलान्‍वयी काव्य है। इनकी मान्यताएँ वाल्मीकि रामायण से न जुड़कर भागवत पुराण से जुड़ती हैं। वाल्मीकि अपनी ‘रामायण’ के ‘लंकाकांड’ में ‘रावण वध’ की समापन कथा कहते हैं, किन्तु तुलसीकृत मानस का ‘लंकाकांड’ रावण का मुक्ति का आख्यान है।
प्रभु के प्रति द्वेष भी भक्ति ही है और उस अमर्ष भाव में आकंठ डूबे रावण जैसे व्यक्तित्व के प्रति श्रीराम का क्रोध उनकी कृपा तथा अनुग्रह है। इसलिए तुलसीदासकृत लंकाकांड को कथा समापन के रूप में नहीं लेना चाहिए, वरन् मध्यकालीन लीलाभक्ति की उस अवधारणा से जोड़कर देखना चाहिए, जहाँ शत्रु-मित्र, साधु-असाधु, राक्षस-मानव के बीच स्थिर दीवार को तोड़कर सभी को एक मंच पर बैठाने की तत्परता दिखाई पड़ती है। हिन्दू-अहिन्दू को एक तार से जोड़नेवाली यह भक्ति निश्चित ही भारतीय संस्कृति की विषमता के युग में एक बहुत बड़ी सम्बल थी।
तुलसी अपने इस ‘लंकाकांड’ में ‘रावण वध’ की कथा न कहकर राम एवं रावण के बीच रागात्मक ऐक्य की स्थापना की कथा कहते हैं। रावण के भौतिक शरीर को विनष्ट करके उसकी तेजोमयी चेतना का श्रीराम के शरीर में विलयन भक्ति द्वारा स्थापित रागात्मक समन्‍वय का सबसे बड़ा साक्ष्य है।

About Author

योगेन्द्र प्रताप सिंह

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर तथा अध्यक्ष रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्राचार संस्थान में निदेशक, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद में अध्यक्ष तथा भारतीय हिन्दी परिषद, हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यक्ष रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘हिन्दी वैष्णव भक्तिकाव्य में निहित काव्यादर्श एवं काव्यशास्त्रीय सिद्धान्त’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र की रूपरेखा’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन’, ‘भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र तथा हिन्दी आलोचना’, ‘काव्यांग परिचय’, ‘रामचरितमानस के रचनाशिल्प का विश्लेषण’, ‘तुलसी के रचना सामर्थ्य का विवेचन’, ‘तुलसी : रचना सन्दर्भ का वैविध्य’, ‘गोस्वामी तुलसीदास की जीवनगाथा’, ‘कबीर की कविता’, ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’, ‘निबन्ध संरचना और काव्य-चिन्तन’, ‘कबीर सूर तुलसी’, ‘इतिहास दर्शन एवं हिन्दी साहित्य की समस्याएँ’, ‘भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका’, ‘सर्जन और रसास्वादन : भारतीय पक्ष’, ‘हिन्दी आलोचना : सिद्धान्त और इतिहास’, ‘जन-जन के कवि तुलसीदास’, ‘हिन्दी साहित्य के इतिहास की समस्याएँ’, ‘काव्यभाषा भारतीय पक्ष’, ‘हिन्दी काव्यशास्त्र के मूलाधार’ (आलोचना); ‘गीति अर्धशती’ (गीतिकाव्य); ‘बीती शती के नाम’, ‘उर्वशी’ (गाथा-गीति); ‘गाधि पुत्र’, ‘सागर गाथा’ (नाट्य-काव्य); ‘टूटते गाँव बनते रिश्ते’, ‘देवकी का आठवाँ बेटा’, ‘पहला क़दम’, ‘अंधी गली की रोशनी’ (उपन्यास); ‘श्रीरामचरितमानस’ (सम्पूर्ण), ‘बालकांड’, ‘अयोध्याकांड’, ‘सुन्दरकांड’, ‘लंकाकांड’, ‘उत्तरकांड’, ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’ (समग्र सम्पादन-टीका तथा भूमिका सहित), ‘जोरावर प्रकाश’, ‘कृष्ण चन्द्रिका’, ‘करुणाभरण नाटक’ (प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर), ‘घट रामायण तुलसी साहब हाथरस वाले’, ‘प्रयाग की रामलीला’, ‘भारतीय भाषाओं में रामकथा’, ‘Ramkatha in Indian Languages’, ‘रामसाहित्य कोश’—दो खंडों में—‘हिन्दी साहित्य’, भाग-3, ‘हिन्दी साहित्य कोश’ भाग-1 तथा 2, ‘काव्यभाषा : भारतीय पक्ष’, ‘काव्य भाषा : अलंकार रचना तथा अन्य समस्याएँ’—(संयुक्त लेखन)।

कई पत्रिकाओं का सम्पादन—‘अनुसंधान’, ‘विकल्प’, ‘हिन्दी अनुशीलन’ तथा ‘हिन्दुस्तानी’।

निधन : 18 मई, 2020

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