SalePaperback
Gulmohar Gar Tumhara Naam Hota! (HB)
₹495 ₹396
Save: 20%
Swadhinata, Pyar : Sándor Petőfi Ki Kavitayein (HB)
₹395 ₹277
Save: 30%
Padhiye To Aankh Paaiye (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Ramkumar Krishak
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Ramkumar Krishak
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹250 ₹175
Save: 30%
In stock
Ships within:
3-5 days
In stock
ISBN:
SKU
9789394902909
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
हिन्दी ग़ज़ल को उर्दू की पारम्परिक ग़ज़ल से अलग अपनी पहचान देनेवालों में रामकुमार कृषक का विशिष्ट स्थान है। वृहत्तर सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों और विचार के गद्यात्मक विस्तार को उन्होंने जिस हुनर से ग़ज़ल में बाँधा, वह उन्हें हिन्दी के अग्रणी ग़ज़लकारों की पक्ति में ला देता है।
तत्सम, तद्भव और आम बोलचाल की शब्दावली में कही गई उनकी ग़ज़लों में उनके विशिष्ट भाषा-व्यवहार के अलावा वह सघर्ष भी दिखाई देता है जिससे हर ईमानदार रचनाकार अपने अनुभव को शब्द देते समय गुज़रता है। अपनी बात को उसकी समग्र त्वरा के साथ पाठक तक सम्प्रेषित करने के लिए वे कई बार नए ढंग के अपने रदीफ़ व काफ़ियों से ग़ज़ल की विधागत सीमाओं को विस्तृत भी करते हैं; लेकिन कहीं भी ग़ज़ल के अनुशासन को भंग नहीं होने देते, न उसकी उस तरलता को जो ग़ज़ल की लोकप्रियता का आधार रही है।
इस संग्रह में उनकी 1978 से अब तक की चुनिन्दा ग़ज़लें संकलित हैं जो सिर्फ़ रचनाकार के रूप में उनके विकास-क्रम को ही नहीं दर्शातीं, बल्कि इस पूरे अन्तराल में फैले हमारे सामाजिक-राजनीतिक इतिहास का भावनात्मक रोज़नामचा भी पेश करती हैं। समाज में लगातार बढ़ती ग़ैरबराबरी, लोकतांत्रिक मूल्यों से विचलन, सत्ता और सत्ताधारियों का लगातार विकृत होता चरित्र, धार्मिक आस्थाओं के दुरुपयोग, बाज़ार का आतंकी विस्तार और उसके बरक्स रोज़ और असहाय, और अकेला होता मनुष्य; यानी ऐसा कुछ भी नहीं है जो पिछले चार दशक के दौरान देश के आम आदमी ने झेला हो और रामकुमार कृषक ने उसे अपनी ग़ज़ल में अंकित न किया हो।
हिन्दी ग़ज़ल को एक समर्थतर और स्वायत्त विधा मानने वालों के लिए इन ग़ज़लों से गुज़रना ज़रूरी है।
Be the first to review “Padhiye To Aankh Paaiye (PB)” Cancel reply
Description
हिन्दी ग़ज़ल को उर्दू की पारम्परिक ग़ज़ल से अलग अपनी पहचान देनेवालों में रामकुमार कृषक का विशिष्ट स्थान है। वृहत्तर सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों और विचार के गद्यात्मक विस्तार को उन्होंने जिस हुनर से ग़ज़ल में बाँधा, वह उन्हें हिन्दी के अग्रणी ग़ज़लकारों की पक्ति में ला देता है।
तत्सम, तद्भव और आम बोलचाल की शब्दावली में कही गई उनकी ग़ज़लों में उनके विशिष्ट भाषा-व्यवहार के अलावा वह सघर्ष भी दिखाई देता है जिससे हर ईमानदार रचनाकार अपने अनुभव को शब्द देते समय गुज़रता है। अपनी बात को उसकी समग्र त्वरा के साथ पाठक तक सम्प्रेषित करने के लिए वे कई बार नए ढंग के अपने रदीफ़ व काफ़ियों से ग़ज़ल की विधागत सीमाओं को विस्तृत भी करते हैं; लेकिन कहीं भी ग़ज़ल के अनुशासन को भंग नहीं होने देते, न उसकी उस तरलता को जो ग़ज़ल की लोकप्रियता का आधार रही है।
इस संग्रह में उनकी 1978 से अब तक की चुनिन्दा ग़ज़लें संकलित हैं जो सिर्फ़ रचनाकार के रूप में उनके विकास-क्रम को ही नहीं दर्शातीं, बल्कि इस पूरे अन्तराल में फैले हमारे सामाजिक-राजनीतिक इतिहास का भावनात्मक रोज़नामचा भी पेश करती हैं। समाज में लगातार बढ़ती ग़ैरबराबरी, लोकतांत्रिक मूल्यों से विचलन, सत्ता और सत्ताधारियों का लगातार विकृत होता चरित्र, धार्मिक आस्थाओं के दुरुपयोग, बाज़ार का आतंकी विस्तार और उसके बरक्स रोज़ और असहाय, और अकेला होता मनुष्य; यानी ऐसा कुछ भी नहीं है जो पिछले चार दशक के दौरान देश के आम आदमी ने झेला हो और रामकुमार कृषक ने उसे अपनी ग़ज़ल में अंकित न किया हो।
हिन्दी ग़ज़ल को एक समर्थतर और स्वायत्त विधा मानने वालों के लिए इन ग़ज़लों से गुज़रना ज़रूरी है।
About Author
रामकुमार कृषक
रामकुमार कृषक का जन्म 1 अक्टूबर, 1943 ई. को अमरोहा, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश के गाँव गुलड़िया में हुआ। उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) किया।
‘प्रगतिशील लेखक संघ’ और ‘जनवादी लेखक संघ’ जैसे विभिन्न साहित्यिक-सांस्कृतिक संगठनों में सक्रिय हिस्सेदारी। ‘जन संस्कृति मंच’ की दिल्ली इकाई के संस्थापक सदस्य। उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी रहे।
दूरदर्शन के केन्द्रीय निर्माण विभाग (सी.पी.सी.) द्वारा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को लेकर वृत्तचित्र का निर्माण और प्रसारण हुआ। सेंट्रल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में उनके गीतों और ग़ज़लों पर शोधकार्य हुए।
उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘सुर्खियों के स्याह चेहरे’, ‘नीम की पत्तियाँ’, ‘फिर वही आकाश’, ‘आदमी के नाम पर मज़हब नहीं’, ‘लौट आएँगी आँखें’, ‘अपजस अपने नाम’, ‘मुश्किलें कुछ और’, 'बामियान की चट्टानें' और ‘साधो, कोरोना जनहंता’ (कविता-संग्रह); ‘नमक की डलियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘कहा उन्होंने’ (साक्षात्कार); ‘दास्ताने-दिले-नादां’ (आत्म-संस्मरण); ‘कविता में बँटवारा’, ‘काली दीवार के उस पार’ (आलोचना); ‘संस्मरण ये भी हैं’ (संस्मरण); ‘कर्मवाची शील’ और ‘जनकवि हूँ मैं’ (सम्पादित)।
‘राहुल वाङमय’ जैसी पुस्तक-शृंखलाओं में सम्पादन-सहयोग। ‘अलाव’ और ‘नई पौध’ नामक पत्रिकाओं का सम्पादन-प्रकाशन।
उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली के साहित्यिक कृति सम्मान (1991), सारस्वत सम्मान, मुम्बई (1997), इंडो-रशियन लिटरेरी क्लब, नई दिल्ली (2003), अदबी संगम, अमरोहा (2010), नई धारा रचना सम्मान, पटना (2013), कबीर सम्मान, मुजफ्फरपुर (2014), पं. बृजलाल द्विवेदी साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान, भोपाल (2017) और संतराम बी.ए. स्मृति सम्मान, शाहजहाँपुर (2018) से पुरस्कृत-सम्मानित किया जा चुका है।
सम्पर्क : सी-3/59, नागार्जुन नगर, सादतपुर विस्तार, दिल्ली-110 090
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Padhiye To Aankh Paaiye (PB)” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Related products
RELATED PRODUCTS
Horaratnam of Srimanmishra Balabhadra (Vol. 2): Hindi Vyakhya
Save: 20%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Horaratnam of Srimanmishra Balbhadra (Vol. 1): Hindi Vyakhya
Save: 10%
Purn Safalta ka Lupt Gyan Bhag-1 | Dr.Virindavan Chandra Das
Save: 20%
Sacred Books of the East (50 Vols.)
Save: 10%
Reviews
There are no reviews yet.