Shriramcharitmanas (HB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
RAM SINGH THAKUR
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Lokbharti
Author:
RAM SINGH THAKUR
Language:
Hindi
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Hardback

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‘श्रीरामचरितमानस’ भारतीय संस्कारों का श्रेष्ठतम महाकाव्य है। भारतीय संस्कार का अर्थ है—समग्र मानव जाति के निखिल मंगल, कल्याण एवं हितैषिता के प्रति समर्पित होकर प्रेम, स्नेह, उदारता, ममता, सहिष्णुता, दया, अस्तित्व, अहिंसा, सत्य, परोपकार आदि मूल्यों की प्रतिष्ठा करना। इस प्रकार, ‘मानस’ मानव अस्तित्व को सर्वोपरि मानकर उसके लिए सबसे सुलभ, सर्वाधिक सुगम तथा श्रेयस्कर मार्ग की तलाश की छटपटाहट से संयुक्त है। समाज के सर्वोच्च शुभ की प्रतिष्ठा ही मानसकार तुलसी का महत्तम शुभ है।
गोस्वामी तुलसीदास ने मानवीय अस्तित्व की सार्थकता के लिए जिस भव्यतम शुभ का दर्शन किया है, ‘मानस’ की कविता के विविध पात्रों द्वारा उसे जिस प्रकार व्यंजित किया है तथा नैतिक मंगल के सर्वोच्च मूल्य श्रीराम और उनके ठीक विपरीत गर्हित अशुभ एवं अधर्म के प्रतीक रावण को आमने-सामने रखकर जिस मानवीय शुभ की स्थापना की है—उसकी चरम परिणति असत्य पर सत्य की विजय, अशुभ पर शुभ की स्थापना, क्रूरता पर प्रेम तथा दया का प्रसार, प्रपंच तथा छल पर मानवीय सहजता की छाया की स्थापना में होती है। इस सृष्टि पर जब तक मानव जाति रहेगी, अपनी सांस्कृतिक धरोहर सत्य, प्रेम, दया, उदारता आदि श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों से संपृक्त ‘श्रीरामचरितमानस’ जैसे काव्य की रक्षा करती रहेगी।
इस प्रकार ‘श्रीरामचरितमानस’ निखिल मानव जाति की सनातन धरोहर है और इस टीका का मन्तव्य है—उसकी इस अमूल्य तथा परम शुभमयी धरोहर से उसे बराबर परिचित कराते रहना।

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Description

‘श्रीरामचरितमानस’ भारतीय संस्कारों का श्रेष्ठतम महाकाव्य है। भारतीय संस्कार का अर्थ है—समग्र मानव जाति के निखिल मंगल, कल्याण एवं हितैषिता के प्रति समर्पित होकर प्रेम, स्नेह, उदारता, ममता, सहिष्णुता, दया, अस्तित्व, अहिंसा, सत्य, परोपकार आदि मूल्यों की प्रतिष्ठा करना। इस प्रकार, ‘मानस’ मानव अस्तित्व को सर्वोपरि मानकर उसके लिए सबसे सुलभ, सर्वाधिक सुगम तथा श्रेयस्कर मार्ग की तलाश की छटपटाहट से संयुक्त है। समाज के सर्वोच्च शुभ की प्रतिष्ठा ही मानसकार तुलसी का महत्तम शुभ है।
गोस्वामी तुलसीदास ने मानवीय अस्तित्व की सार्थकता के लिए जिस भव्यतम शुभ का दर्शन किया है, ‘मानस’ की कविता के विविध पात्रों द्वारा उसे जिस प्रकार व्यंजित किया है तथा नैतिक मंगल के सर्वोच्च मूल्य श्रीराम और उनके ठीक विपरीत गर्हित अशुभ एवं अधर्म के प्रतीक रावण को आमने-सामने रखकर जिस मानवीय शुभ की स्थापना की है—उसकी चरम परिणति असत्य पर सत्य की विजय, अशुभ पर शुभ की स्थापना, क्रूरता पर प्रेम तथा दया का प्रसार, प्रपंच तथा छल पर मानवीय सहजता की छाया की स्थापना में होती है। इस सृष्टि पर जब तक मानव जाति रहेगी, अपनी सांस्कृतिक धरोहर सत्य, प्रेम, दया, उदारता आदि श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों से संपृक्त ‘श्रीरामचरितमानस’ जैसे काव्य की रक्षा करती रहेगी।
इस प्रकार ‘श्रीरामचरितमानस’ निखिल मानव जाति की सनातन धरोहर है और इस टीका का मन्तव्य है—उसकी इस अमूल्य तथा परम शुभमयी धरोहर से उसे बराबर परिचित कराते रहना।

About Author

रामसिंह ठाकुर

जन्म : 03 जुलाई, 1932; जगदलपुर (बस्तर-छत्तीसगढ़)

शिक्षा : मैट्रिक।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी किन्तु मूलत: चित्रकार एवं छायाकार। कवि, लेखक एवं हल्बी के वैयाकरणाचार्य पिता स्व. पूरनसिंह ठाकुर के सान्निध्य में साहित्य-सृजन की ओर प्रवृत्त। हल्बी में साहित्य-सृजन को प्राथमिकता। हल्बी साहित्य की सभी विधाओं में लेखन। विशेषत: गीत-रचना में सिद्धहस्त। बस्तर की आदिवासी एवं लोक-संस्कृति पर हल्बी में प्रचुर लेखन-प्रकाशन। ‘हल्बी-व्याकरण’ के रचयिता, जिसका प्रकाशन क़िस्तों में जगदलपुर (बस्तर-छत्तीसगढ़) से प्रकाशित होनेवाले समाचार-पत्र ‘दण्डकारण्य समाचार' में हुआ। गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘श्रीरामचरितमानस’ का हल्बी अनुवाद (मानस चतुश्शताब्दी समारोह समिति, भोपाल से प्रकाशित)। इसकी संगीतमय प्रस्तुति आकाशवाणी के जगदलपुर केन्द्र से वर्षों तक होती रही। अनेक आंचलिक एवं प्रान्तीय सम्मानों से विभूषित।

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