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Main Jahan Jahan Chala Hun Hard Cover
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Dr. Gyaneshwar Muley, Tr. Shashi Nighojkar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Dr. Gyaneshwar Muley, Tr. Shashi Nighojkar
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹495 ₹347
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ISBN:
SKU
9788119159680
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
मैं जहाँ-जहाँ चला हूँ पारम्परिक अर्थ में न सिर्फ़ यात्रा-वृत्त है, न सिर्फ़ संस्मरण, यह इन दोनों का मिला-जुला रूप है। हम इसे लेखक का प्रवास-वृत्त कह सकते हैं; वे स्वयं इन्हें ‘मेरे पड़ाव’ कहते हैं। गहरी उत्सुकता, जिज्ञासा, सहज ग्रहणशीलता और उत्फुल्ल हास्यबोध के साथ लेखक ने इन संस्मरणात्मक निबन्धों में उन स्थानों का वर्णन किया है, जहाँ-जहाँ उन्हें कुछ समय रहने का मौक़ा मिला जैसे जापान, मॉरीशस व पाकिस्तान और जहाँ-जहाँ उनका मन रुका, जैसे रेलवे स्टेशन, दिल्ली की सड़कें और देश-विदेश के नाई।
ज्ञानेश्वर मुले भारतीय विदेश सेवा में अधिकारी रहे हैं और मराठी के चर्चित लेखक, कवि तथा स्तम्भकार हैं। इस पुस्तक में वे हमें सूचनाओं और संवेदनाओं में सन्तुलित एक सुग्राह्य और आकर्षक गद्य उपलब्ध कराते हैं। जापान के लोगों का ‘साकुरा-प्रेम’ हो, या मॉरीशस के नागरिकों का ‘भारत-प्रेम’, पाकिस्तान के सरकारी तंत्र का सशंक बर्ताव हो या दिल्ली में फैला भारतीय इतिहास, उलझी सड़कें और अपने वंशजों को सीधी चुनौती देने वाले बन्दर, हर चीज़ और स्थान को वे एक रचनात्मक उछाह के साथ देखते हैं और उसी उछाह के साथ उसे पाठक तक पहुँचाते हैं। जहाँ ज़रूरत हो वहाँ व्यंग्य करते हैं, जहाँ ज़रूरत हो वहाँ संवेदना का भीना वितान बुन देते हैं और जहाँ ज़रूरत हो प्राकृतिक दृश्यों के सजीव-सचल चित्र खींच देते हैं।
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Description
मैं जहाँ-जहाँ चला हूँ पारम्परिक अर्थ में न सिर्फ़ यात्रा-वृत्त है, न सिर्फ़ संस्मरण, यह इन दोनों का मिला-जुला रूप है। हम इसे लेखक का प्रवास-वृत्त कह सकते हैं; वे स्वयं इन्हें ‘मेरे पड़ाव’ कहते हैं। गहरी उत्सुकता, जिज्ञासा, सहज ग्रहणशीलता और उत्फुल्ल हास्यबोध के साथ लेखक ने इन संस्मरणात्मक निबन्धों में उन स्थानों का वर्णन किया है, जहाँ-जहाँ उन्हें कुछ समय रहने का मौक़ा मिला जैसे जापान, मॉरीशस व पाकिस्तान और जहाँ-जहाँ उनका मन रुका, जैसे रेलवे स्टेशन, दिल्ली की सड़कें और देश-विदेश के नाई।
ज्ञानेश्वर मुले भारतीय विदेश सेवा में अधिकारी रहे हैं और मराठी के चर्चित लेखक, कवि तथा स्तम्भकार हैं। इस पुस्तक में वे हमें सूचनाओं और संवेदनाओं में सन्तुलित एक सुग्राह्य और आकर्षक गद्य उपलब्ध कराते हैं। जापान के लोगों का ‘साकुरा-प्रेम’ हो, या मॉरीशस के नागरिकों का ‘भारत-प्रेम’, पाकिस्तान के सरकारी तंत्र का सशंक बर्ताव हो या दिल्ली में फैला भारतीय इतिहास, उलझी सड़कें और अपने वंशजों को सीधी चुनौती देने वाले बन्दर, हर चीज़ और स्थान को वे एक रचनात्मक उछाह के साथ देखते हैं और उसी उछाह के साथ उसे पाठक तक पहुँचाते हैं। जहाँ ज़रूरत हो वहाँ व्यंग्य करते हैं, जहाँ ज़रूरत हो वहाँ संवेदना का भीना वितान बुन देते हैं और जहाँ ज़रूरत हो प्राकृतिक दृश्यों के सजीव-सचल चित्र खींच देते हैं।
About Author
ज्ञानेश्वर मुळे
ज्ञानेश्वर मुळे का जन्म 5 नवम्बर, 1958 को हुआ। उन्होंने मुम्बई विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया। पेशे से राजनयिक ज्ञानेश्वर मुळे 1983 से भारतीय विदेश सेवा में कार्यरत रहे। जापान, रूस, मॉरीशस, सीरिया और मालदीव के भारतीय दूतावासों में विभिन्न उच्च पदों पर आसीन रहे। भारत सरकार के वाणिज्य एवं वित्त मंत्रालयों में भी कार्य किया। विदेश मंत्रालय में सचिव रहे श्री मुळे सेवानिवृत्ति के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य के रूप में कार्यरत हैं।
उन्होंने मुख्यतः मराठी और हिन्दी में उपन्यास, कविता, निबन्ध, यात्रा-वृत्तान्त व आत्मकथात्मक लेखन किया है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—नोकरशाइचे रंग, ग्यानबाची मेख, स्वताहातील अवकाश, रशिया—नव्या दिशांचे आमंत्रण, रस्ताच वेगला धरला, माणूस आणि मुक्काम, दूर राहिला गाव, माती पंख आणि आकाश, जोनाकी (मराठी); ऋतु उग रही है, मन के खलिहानों में, सुबह है कि होती नहीं, अन्दर एक आसमान (हिन्दी-उर्दू); अहलान व सहलान—ए सीरियन जर्नी; ए कम्पेरेटिव स्टडी ऑफ पोस्ट वर्ल्ड वार-II, जापानीज एंड पोस्ट इंडिपेंडेंस मराठी पोएट्री (अंग्रेज़ी); माती पंख आणि आकाश का हिन्दी अनुवाद माटी पंख और आकाश तथा माणूस आणि मुक्काम का हिन्दी अनुवाद मैं जहाँ-जहाँ चला हूँ नाम से प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन।
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