Shabdon Ka Jeevan (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Bhola Nath Tiwari
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Bhola Nath Tiwari
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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शब्दों के जन्म, निर्माण, अर्थ, ध्वनि परिवर्तन और आदान-प्रदान आदि से सम्बद्ध भाषावैज्ञानिक तथ्य प्रायः नीरस होते हैं। उन्हें समझना और समझाना, दोनों ही कार्य किसी चुनौती से कम नहीं है। इसलिए लेखक का ध्यान इस ओर पाठक से भी पहले जाता है और इस विषय को वह अधिकाधिक पठनीय बनाकर प्रस्तुत करता है।
शब्दों का जीवन सुप्रसिद्ध भाषाविज्ञानी भोलानाथ तिवारी के ऐसे ही प्रयास का परिणाम है। उनकी यह कृति हिन्दी में ऐसा पहला ही प्रयास था, जब किसी ने भाषावैज्ञानिक तथ्यों को ललित निबन्धों के शिल्प में पेश किया हो। भाषाविज्ञान पर यह उनकी सर्वथा अनूठी कृति है। उनकी कल्पना ने इन ललित निबन्धों में शब्दों को मनुष्य की तरह ही जन्म लेते, मरते, उलटते-पलटते और उठते-बैठते दिखाया है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे शब्दों का मानवीकरण करने में सफल रहे हैं।
प्रत्येक शब्द का अपना इतिहास है और अपना भूगोल। कहना न होगा कि सामान्य पाठकों के लिए यदि यह कृति ललित निबन्धों का संग्रह है तो विद्यार्थियों के लिए भाषाविज्ञान जैसे विषय को अत्यन्त मनोरंजक भाषा-शैली में हृदयंगम करानेवाली बहुचर्चित कृति।

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Description

शब्दों के जन्म, निर्माण, अर्थ, ध्वनि परिवर्तन और आदान-प्रदान आदि से सम्बद्ध भाषावैज्ञानिक तथ्य प्रायः नीरस होते हैं। उन्हें समझना और समझाना, दोनों ही कार्य किसी चुनौती से कम नहीं है। इसलिए लेखक का ध्यान इस ओर पाठक से भी पहले जाता है और इस विषय को वह अधिकाधिक पठनीय बनाकर प्रस्तुत करता है।
शब्दों का जीवन सुप्रसिद्ध भाषाविज्ञानी भोलानाथ तिवारी के ऐसे ही प्रयास का परिणाम है। उनकी यह कृति हिन्दी में ऐसा पहला ही प्रयास था, जब किसी ने भाषावैज्ञानिक तथ्यों को ललित निबन्धों के शिल्प में पेश किया हो। भाषाविज्ञान पर यह उनकी सर्वथा अनूठी कृति है। उनकी कल्पना ने इन ललित निबन्धों में शब्दों को मनुष्य की तरह ही जन्म लेते, मरते, उलटते-पलटते और उठते-बैठते दिखाया है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे शब्दों का मानवीकरण करने में सफल रहे हैं।
प्रत्येक शब्द का अपना इतिहास है और अपना भूगोल। कहना न होगा कि सामान्य पाठकों के लिए यदि यह कृति ललित निबन्धों का संग्रह है तो विद्यार्थियों के लिए भाषाविज्ञान जैसे विषय को अत्यन्त मनोरंजक भाषा-शैली में हृदयंगम करानेवाली बहुचर्चित कृति।

About Author

भोलानाथ तिवारी

कोशकार, भाषावैज्ञानिक एवं भाषाचिन्तक भोलानाथ तिवारी का जन्म 4 नवम्बर, 1923 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के हुसैनपुर नामक गाँव में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पहले आरीपुर गाँव, फिर गाजीपुर में हुई। आगे की पढ़ाई इलाहाबाद के इविंग क्रिश्चियन कॉलेज में हुई। माध्यमिक स्कूल के दौरान ही वे भारत के स्वाधीनता-संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल हुए। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद राजनीति छोड़ दी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से अध्यापन की शुरुआत की। दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग में लम्बे समय तक अध्यापन किया। 1962-64 तक सोवियत संघ के ताशकंद विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे।

उन्होंने भाषाविज्ञान और हिन्दी भाषा पर अस्सी से अधिक पुस्तकें और कोश लिखे, जिनमें प्रमुख हैं—हिन्दी भाषा का इतिहास, मुहावरा-लोकोक्ति कोश, भाषाविज्ञान, हिन्दी भाषा की संरचना, अनुवाद के सिद्धान्त और प्रयोग, कोश-रचना, साहित्य समालोचन, अनुवाद कला, अनुवाद-विज्ञान, अनुवाद की व्यावहारिक समस्याएँ, काव्यानुवाद की समस्याएँ, पारिभाषिक शब्दावली, पत्रकारिता में अनुवाद की समस्याएँ, वैज्ञानिक साहित्य के अनुवाद की समस्याएँ, हिन्दी वर्तनी की समस्याएँ, हिन्दी ध्वनियाँ और उनका उच्चारण, मानक हिन्दी का स्वरूप, व्यावहारिक शैली विज्ञान, शैली विज्ञान, भाषाविज्ञान प्रवेश, भाषाविज्ञान प्रवेश एवं हिन्दी भाषा, कोश विज्ञान, व्यावसायिक हिन्दी, अमीर खुसरो और उनका हिन्दी साहित्य, हिन्दी पर्यायवाची कोश, राजभाषा हिन्दी।

25 अक्टूबर, 1989 को उनका निधन हुआ।

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