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Mahamari Ka Rojnamacha (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Sorit
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Sorit
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹599 ₹419
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ISBN:
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9789395737777
Category Hindi
Category: Hindi
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अच्छे वक्त के बारे में तो नहीं जानता पर हर बुरे वक्त का अपना एक खास चेहरा होता है। कभी वह दंगों की शक्ल में आता है तो कभी वह अकाल, बाढ़ या युद्ध की शक्ल में। सदियों में एक बार यह महामारी की शक्ल में भी आता है। 1919 में एक महामारी आई थी—स्पेनिश फ्लू। मेरे दादाजी और उनके साथ के लोगों ने एक महामारी को जीया। उसके बाद हम थे जिन्होंने कोविड को जीया।
एक महामारी हजारों, लाखों लोगों को अपने साथ ले जाती है। इस बार भी कुछ वैसा ही होना था। वैसा हुआ भी पर इस बार की महामारी अब तक की दूसरी महामारियों से अलग थी। इस बार महामारी से ज्यादा परेशानी लोगों को उस लॉकडाउन के चलते हुई जिसे अफरातफरी में लागू किया गया।
महामारियाँ हमेशा से पूरी आबादी को दो हिस्सों में बाँट देती हैं। एक हिस्सा उन लोगों का जो इस महामारी का शिकार बने। जो आज हमारे बीच नहीं हैं। दूसरा हिस्सा हमारा-आपका जो इस महामारी में बच गए, जिन्दा रहे। महामारी में जो हमें छोड़ गए, उन्होंने हम जिन्दा बच गए लोगों पर एक जिम्मेदारी डाली कि हम आने वाली पीढ़ियों को लॉकडाउन और महामारी से उनकी लड़ाई की कहानियाँ बताएँ।
यह किताब बस उसी जिम्मेदारी को पूरा करने की एक छोटी-सी कोशिश भर है।
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Description
अच्छे वक्त के बारे में तो नहीं जानता पर हर बुरे वक्त का अपना एक खास चेहरा होता है। कभी वह दंगों की शक्ल में आता है तो कभी वह अकाल, बाढ़ या युद्ध की शक्ल में। सदियों में एक बार यह महामारी की शक्ल में भी आता है। 1919 में एक महामारी आई थी—स्पेनिश फ्लू। मेरे दादाजी और उनके साथ के लोगों ने एक महामारी को जीया। उसके बाद हम थे जिन्होंने कोविड को जीया।
एक महामारी हजारों, लाखों लोगों को अपने साथ ले जाती है। इस बार भी कुछ वैसा ही होना था। वैसा हुआ भी पर इस बार की महामारी अब तक की दूसरी महामारियों से अलग थी। इस बार महामारी से ज्यादा परेशानी लोगों को उस लॉकडाउन के चलते हुई जिसे अफरातफरी में लागू किया गया।
महामारियाँ हमेशा से पूरी आबादी को दो हिस्सों में बाँट देती हैं। एक हिस्सा उन लोगों का जो इस महामारी का शिकार बने। जो आज हमारे बीच नहीं हैं। दूसरा हिस्सा हमारा-आपका जो इस महामारी में बच गए, जिन्दा रहे। महामारी में जो हमें छोड़ गए, उन्होंने हम जिन्दा बच गए लोगों पर एक जिम्मेदारी डाली कि हम आने वाली पीढ़ियों को लॉकडाउन और महामारी से उनकी लड़ाई की कहानियाँ बताएँ।
यह किताब बस उसी जिम्मेदारी को पूरा करने की एक छोटी-सी कोशिश भर है।
About Author
सोरित गुप्तो
सोरित गुप्तो का जन्म 03 मई, 1970 को इलाहाबाद में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राणिविज्ञान में एम.एससी. की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने बच्चों के लिए तीस से अधिक पुस्तकें लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं— ‘बंटी और बबली’, ‘पिउ और उसके जादुई दोस्त’। भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं में इन पुस्तकों के कई अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। इनके अतिरिक्त नोटबंदी और समाज पर पड़े उसके असर की छानबीन करती किताब ‘नोटबंदी की ओट में’ तथा व्यंग्य-संग्रह ‘दिल्ली बाईस्कोप’ प्रकाशित। ‘डाउन टू अर्थ’ पत्रिका में नियमित व्यंग्य स्तम्भ ‘बैठे ठाले’ का लेखन।
लम्बे समय तक ‘द पायनियर’, ‘सहारा टाइम्स’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘आउटलुक’ आदि पत्र-पत्रिकायों में एडिटोरियल कार्टूनिस्ट रहे।
फिलहाल सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (CSE) से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘डाउन टू अर्थ’ में चीफ कार्टूनिस्ट के रूप में कार्यरत हैं।
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