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Bhavbhuti Katha (PB)
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Dukhgram (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Chandrakishore Jaiswal
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Chandrakishore Jaiswal
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9788119028092
Category Hindi
Category: Hindi
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दुनिया में सुख भले ही सुलभ न हो, दुख खोजने कहीं जाना नहीं पड़ता। सबके अपने-अपने दुख हैं लेकिन सबसे ज्यादा दुखी हैं अमरनाथ बाबू जिनका पोता मयंक मन्दबुद्धि है, मानसिक विकलांग।
उनके लिए यह छोटी बात नहीं है। वे अपने पोते से गहरे जुड़े हैं। उनके लिए उसका ठीक होना ज़रूरी है जो सम्भव नहीं लग रहा। इसलिए वे दुस्वप्नों में रहते हैं। उन्हें हथियारबन्द हत्यारों के आगे भागते बच्चों की भीड़ दिखाई देती है। दुनिया-भर की सूचनाएँ उनके दुस्वप्नों में आकर जुड़ती जाती हैं, इतिहास के अनेक खून-सने अध्याय जहाँ विकलांग और अनचाहे बच्चों को मारा जाता है।
उनकी बेचैनी उस समय एक नई दिशा अख्तियार करती है जब वे देखते हैं कि सीरिया के एक बच्चे अयलान की सागर किनारे पड़ी निर्जीव देह का चित्र देखकर कैसे पूरा विश्व व्यथित हो उठा। तब आशंकाओं की छायाओं से निकलकर इसी दुनिया से उन्हें उम्मीद की किरणें दिखाई देने लगती हैं। वे दुनिया के दुखग्राम को सुखग्राम बनाने की ठान लेते हैं और इस मुहिम के लिए उन्हें सबसे भरोसेमन्द लगता है साहित्य, किताबें, लिखने और पढ़ने वाले। कहानीकार श्रीकान्त उनके हमराज हैं, जो इस नए सफ़र में भी उनके साथ होंगे।
वरिष्ठ कथाकार चन्द्रकिशोर जायसवाल का यह उपन्यास गहरे जुड़े दादा-पोता के बहाने दुनिया-भर में बच्चों के लिए खराब होते हालात का जायजा लेता है। भ्रूणहत्या से लेकर युद्धों तक बच्चों के लिए लगातार क्रूर होती जा रही दुनिया का हवाला देते हुए यह वस्तुत: सम्पूर्ण मनुष्यता के भविष्य की चिन्ता साझा करता है।
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Description
दुनिया में सुख भले ही सुलभ न हो, दुख खोजने कहीं जाना नहीं पड़ता। सबके अपने-अपने दुख हैं लेकिन सबसे ज्यादा दुखी हैं अमरनाथ बाबू जिनका पोता मयंक मन्दबुद्धि है, मानसिक विकलांग।
उनके लिए यह छोटी बात नहीं है। वे अपने पोते से गहरे जुड़े हैं। उनके लिए उसका ठीक होना ज़रूरी है जो सम्भव नहीं लग रहा। इसलिए वे दुस्वप्नों में रहते हैं। उन्हें हथियारबन्द हत्यारों के आगे भागते बच्चों की भीड़ दिखाई देती है। दुनिया-भर की सूचनाएँ उनके दुस्वप्नों में आकर जुड़ती जाती हैं, इतिहास के अनेक खून-सने अध्याय जहाँ विकलांग और अनचाहे बच्चों को मारा जाता है।
उनकी बेचैनी उस समय एक नई दिशा अख्तियार करती है जब वे देखते हैं कि सीरिया के एक बच्चे अयलान की सागर किनारे पड़ी निर्जीव देह का चित्र देखकर कैसे पूरा विश्व व्यथित हो उठा। तब आशंकाओं की छायाओं से निकलकर इसी दुनिया से उन्हें उम्मीद की किरणें दिखाई देने लगती हैं। वे दुनिया के दुखग्राम को सुखग्राम बनाने की ठान लेते हैं और इस मुहिम के लिए उन्हें सबसे भरोसेमन्द लगता है साहित्य, किताबें, लिखने और पढ़ने वाले। कहानीकार श्रीकान्त उनके हमराज हैं, जो इस नए सफ़र में भी उनके साथ होंगे।
वरिष्ठ कथाकार चन्द्रकिशोर जायसवाल का यह उपन्यास गहरे जुड़े दादा-पोता के बहाने दुनिया-भर में बच्चों के लिए खराब होते हालात का जायजा लेता है। भ्रूणहत्या से लेकर युद्धों तक बच्चों के लिए लगातार क्रूर होती जा रही दुनिया का हवाला देते हुए यह वस्तुत: सम्पूर्ण मनुष्यता के भविष्य की चिन्ता साझा करता है।
About Author
चन्द्रकिशोर जायसवाल
चन्द्रकिशोर जायसवाल का जन्म 15 फरवरी, 1940 को बिहार के मधेपुरा जिले के बिहारीगंज में हुआ। आपने पटना विश्वविद्यालय, पटना से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल की और अरसे तक अध्यापन करने के बाद भागलपुर अभियंत्रणा महाविद्यालय, भागलपुर से प्राध्यापक के रूप में सेवानिवृत्त हुए।
आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘गवाह गैरहाजिर’, ‘जीबछ का बेटा बुद्ध’, ‘शीर्षक’, ‘चिरंजीव’, ‘माँ’, ‘दाह’ ‘पलटनिया’, ‘सात फेरे’, ‘मणिग्राम’, ‘भट्ठा’, ‘दुखग्राम’ (उपन्यास); ‘मैं नहिं माखन खायो’, ‘मर गया दीपनाथ’, ‘हिंगवा घाट में पानी रे!’, ‘जंग’, ‘नकबेसर कागा ले भागा’, ‘दुखिया दास कबीर’, ‘किताब में लिखा है’, ‘आघातपुष्प’, ‘तर्पण’, ‘जमीन’, ‘खट्टे नहीं अंगूर’, ‘हम आजाद हो गए!’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘शृंगार’, ‘सिंहासन’, ‘चीर-हरण’, ‘रतजगा’, ‘गृह-प्रवेश’, ‘रंग-भंग’ (नाटक); ‘आज कौन दिन है?’, ‘त्राहिमाम’, ‘शिकस्त’, ‘जबान की बन्दिश’ (एकांकी)।
आप ‘रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान’ (हजारीबाग), ‘बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान’ (आरा), ‘आनन्द सागर कथाक्रम सम्मान’ (लखनऊ), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का ‘साहित्य साधना सम्मान’ (पटना) और बिहार सरकार का जननायक ‘कर्पूरी ठाकुरी सम्मान’ (पटना) से सम्मानित हैं।
आपके उपन्यास ‘गवाह गैरहाजिर’ पर राष्ट्रीय फ़िल्म विकास निगम द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘रूई का बोझ’ और कहानी ‘हिंगवा घाट में पानी रे!’ पर दूरदर्शन द्वारा निर्मित फ़िल्में काफी चर्चित रही हैं। ‘रूई का बोझ’ नेशनल फ़िल्म फेस्टिवल पैनोरमा (1998) के लिए चयनित हुई थी और अनेक अन्तराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सवों में प्रदर्शित हो चुकी है।
ई-मेल : jaiswal.chandrakishore@gmail.com
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