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Ek Manzila Makan Mein Lift (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Sampat Saral
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Sampat Saral
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹250 ₹175
Save: 30%
In stock
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3-5 days
In stock
ISBN:
SKU
9788119028009
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
वाह, क्या डिजिटल इंडिया हुआ है। ऊँची पहुँच वाले महानुभाव न सिर्फ एक करोड़ का लोन उनसठ मिनट में ले सकते हैं, बल्कि उनसठ करोड़ का लोन लेकर एक मिनट में विदेश तक फरार हो सकते हैं।
मेरे खयाल से हाथ मिलाने और हाथ जोड़ने की परम्परा का उद्भव और विकास उन भारतीय कारोबारियों ने किया है जिनका एकमात्र लक्ष्य बैंकों से उधार लेकर न चुकाना रहा है। उधार लेते वक्त हाथ मिलाया और चुकाने की बात आई तो हाथ जोड़ दिए।
जिस तरह एक के बाद एक बैंक घोटाले उजागर हो रहे हैं और भुगतना जनसामान्य को पड़ रहा है, लगता है, भारतीय बैंकों का अब एक ही काम रह गया है—‘आम लोगों का जमा, खास लोगों को थमा’।…
बैंकों के इसी ‘भरपाई-कर्म’ के तहत इन दिनों हमारा बैंक खाता भी क्या खूब खाता है। यदि कोई राहगीर किसी व्यक्ति से गन्तव्य का रास्ता पूछते वक्त यह भर और जानना चाहे कि भैया रास्ते में कोई बैंक-वैंक तो नहीं पड़ेगा तो वाक्य खत्म होने से पहले ही उसके मोबाइल फोन पर उसके खाते से पाँच रुपये कटने का सन्देश आ टपकता है। इन्क्वारी चार्ज।
—इसी पुस्तक से
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Description
वाह, क्या डिजिटल इंडिया हुआ है। ऊँची पहुँच वाले महानुभाव न सिर्फ एक करोड़ का लोन उनसठ मिनट में ले सकते हैं, बल्कि उनसठ करोड़ का लोन लेकर एक मिनट में विदेश तक फरार हो सकते हैं।
मेरे खयाल से हाथ मिलाने और हाथ जोड़ने की परम्परा का उद्भव और विकास उन भारतीय कारोबारियों ने किया है जिनका एकमात्र लक्ष्य बैंकों से उधार लेकर न चुकाना रहा है। उधार लेते वक्त हाथ मिलाया और चुकाने की बात आई तो हाथ जोड़ दिए।
जिस तरह एक के बाद एक बैंक घोटाले उजागर हो रहे हैं और भुगतना जनसामान्य को पड़ रहा है, लगता है, भारतीय बैंकों का अब एक ही काम रह गया है—‘आम लोगों का जमा, खास लोगों को थमा’।…
बैंकों के इसी ‘भरपाई-कर्म’ के तहत इन दिनों हमारा बैंक खाता भी क्या खूब खाता है। यदि कोई राहगीर किसी व्यक्ति से गन्तव्य का रास्ता पूछते वक्त यह भर और जानना चाहे कि भैया रास्ते में कोई बैंक-वैंक तो नहीं पड़ेगा तो वाक्य खत्म होने से पहले ही उसके मोबाइल फोन पर उसके खाते से पाँच रुपये कटने का सन्देश आ टपकता है। इन्क्वारी चार्ज।
—इसी पुस्तक से
About Author
सम्पत सरल
अपने तीखे वैचारिक व्यंग्यों से सामाजिक-राजनीतिक विसंगतियों को उजागर करने वाले सम्पत सरल का जन्म 8 अप्रैल, 1962 को गाँव मणकसास, झुंझनू, राजस्थान में हुआ। वे हिन्दुस्तानी व्यंग्य लेखकों में अपनी अलग पहचान रखते हैं। दुःख और करुणा को हँसते हुए रचना बना देने का फ़न बहुत मुश्किल है, लेकिन उन्होंने इसे न सिर्फ़ बड़ी सरलता से साधा है, बल्कि नए मुहावरों और नए प्रतीकों के साथ व्यंग्य की नई ज़मीन भी खोजी है।
लेखन और वाचन दोनों माध्यमों से हिन्दी व्यंग्य को वैश्विक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सम्पत सरल को पढ़-सुनकर हठात् जो मुस्कान उभरती है, वह भीतर तक उद्वेलित भी करती है।
ई-मेल : sampatsaralshow@gmail.com
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