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Qaid Bahar Hard Cover
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Ek Thi Sheena Bora : Sansanikhej Katla Ki Pramanik Padatal (PB)
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Qaid Bahar (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Geeta Shri
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Geeta Shri
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹299 ₹209
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ISBN:
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9789395737708
Category Hindi
Category: Hindi
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प्रेमी जहाँ पति मैटेरियल में बदलने लगता है और प्यार विवाह नाम के नरक में, क़ैद की दीवारें वहीं उठना शुरू होती हैं, जिनसे निकलने का संघर्ष इस उपन्यास की स्त्रियाँ कर रही हैं। लेकिन इस मुक्ति का निर्वाह क्या इतना आसान है? प्रेम से रहित हो जाना और अपने एकान्त के वैभव को चारों तरफ जगमगाती-दहाड़ती पारिवारिकताओं के ठीक सामने खड़ा कर देना; क्या यह उतना ही सरल है जितना विचार के रूप में सोच लेना!
यह एक मुश्किल फ़ैसला है, एक कठिन इरादा जिसके लिए अपने आप से भी लड़ना होता है, और अपने आसपास की दुनिया से भी, उन मूल्यों-मान्यताओं से भी जिन्हें जीवन की एकमात्र और स्वीकृत पद्धति के रूप में स्थापित कर दिया गया है। लेकिन आज की स्त्री को यह संघर्ष, यह ख़तरा, यह बहुआयामी युद्ध फिर भी वरेण्य लगता है, बनिस्बत उस ‘सुख’, ‘संतोष’ और ‘पूरेपन’ के जिसकी गारंटी विवाह नाम की संस्था देती रही है, और बदले में स्त्री से ही नहीं, कई बार पुरुष से भी उसकी आज़ादी को छीनती रही है।
स्त्री-स्वातंत्र्य की अवधारणाओं को अपने लेखन से नई धार देनेवाली गीताश्री का यह उपन्यास कथाओं और उपकथाओं में चलती एक बहस ही है। यह उन स्त्रियों के अन्तर्बाह्य संघर्षों का कोलाज है जो समाज को पारम्परिक परिवार के स्थान पर एक नया केन्द्र देना चाहती हैं जहाँ किसी की संवेदना को रौंदा न जाए, न स्त्री की, न पुरुष की; जहाँ इन दोनों का सम्बन्ध आरम्भ से अन्त तक एक-दूसरे को अपने-अपने ‘व्यक्ति’ में खिलने-खुलने-पूरा होने में मदद देता हो।
इस उपन्यास से गुज़रना स्त्री-विमर्श के एक जटिल, लेकिन ज़रूरी पड़ाव से साक्षात्कार करना है।
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Description
प्रेमी जहाँ पति मैटेरियल में बदलने लगता है और प्यार विवाह नाम के नरक में, क़ैद की दीवारें वहीं उठना शुरू होती हैं, जिनसे निकलने का संघर्ष इस उपन्यास की स्त्रियाँ कर रही हैं। लेकिन इस मुक्ति का निर्वाह क्या इतना आसान है? प्रेम से रहित हो जाना और अपने एकान्त के वैभव को चारों तरफ जगमगाती-दहाड़ती पारिवारिकताओं के ठीक सामने खड़ा कर देना; क्या यह उतना ही सरल है जितना विचार के रूप में सोच लेना!
यह एक मुश्किल फ़ैसला है, एक कठिन इरादा जिसके लिए अपने आप से भी लड़ना होता है, और अपने आसपास की दुनिया से भी, उन मूल्यों-मान्यताओं से भी जिन्हें जीवन की एकमात्र और स्वीकृत पद्धति के रूप में स्थापित कर दिया गया है। लेकिन आज की स्त्री को यह संघर्ष, यह ख़तरा, यह बहुआयामी युद्ध फिर भी वरेण्य लगता है, बनिस्बत उस ‘सुख’, ‘संतोष’ और ‘पूरेपन’ के जिसकी गारंटी विवाह नाम की संस्था देती रही है, और बदले में स्त्री से ही नहीं, कई बार पुरुष से भी उसकी आज़ादी को छीनती रही है।
स्त्री-स्वातंत्र्य की अवधारणाओं को अपने लेखन से नई धार देनेवाली गीताश्री का यह उपन्यास कथाओं और उपकथाओं में चलती एक बहस ही है। यह उन स्त्रियों के अन्तर्बाह्य संघर्षों का कोलाज है जो समाज को पारम्परिक परिवार के स्थान पर एक नया केन्द्र देना चाहती हैं जहाँ किसी की संवेदना को रौंदा न जाए, न स्त्री की, न पुरुष की; जहाँ इन दोनों का सम्बन्ध आरम्भ से अन्त तक एक-दूसरे को अपने-अपने ‘व्यक्ति’ में खिलने-खुलने-पूरा होने में मदद देता हो।
इस उपन्यास से गुज़रना स्त्री-विमर्श के एक जटिल, लेकिन ज़रूरी पड़ाव से साक्षात्कार करना है।
About Author
गीताश्री
लेखक-पत्रकार गीताश्री का जन्म 31 दिसम्बर, 1965 को मुजफ़्फ़रपुर, बिहार में हुआ। अब तक सात कहानी-संग्रह, चार उपन्यास और स्त्री-विमर्श पर चार शोध पुस्तकें प्रकाशित। कई चर्चित पुस्तकों का सम्पादन-संयोजन। वर्ष 2008-09 में पत्रकारिता का सर्वोच्च पुरस्कार ‘रामनाथ गोयनका बेस्ट हिन्दी जर्नलिस्ट ऑफ़ द इयर’ समेत अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त। 1991 से 2017 तक सक्रिय पत्रकारिता के बाद फ़िलहाल स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखन।
सम्पर्क : geetashri31@gmail.com
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