Hindi Kavita : Naye Purane Paridrishya (HB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
S TANKMANI AMMA
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Lokbharti
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S TANKMANI AMMA
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Hindi
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लोकगीतों से शुरू होकर आदिकाल, भक्तिकाल और रीतिकाल के विभिन्न परिवेशों से गुज़रकर आधुनिक काल तक पहुँच गई हिन्दी कविता अपनी विकास-यात्रा की विविध मंज़‍िलों को तय करके सम्‍प्रति इक्सीसवीं शदी के दूसरे दशक के अन्तिम चरण तक पहुँच चुकी है। इस लम्बी विकास-यात्रा के दौरान हिन्दी कविता स्थल और काल के परिवेश के अनुकूल नूतन प्रवृत्तियों को आत्मसात् कर कई आन्दोलनों से होकर गुज़री है। प्रचलित प्रवृत्तियों से भिन्न प्रवृत्तियाँ जब काव्यक्षेत्र में घर कर लेती हैं तथा कविता उनके अनुकूल परिभाषित होती है तभी तो नए काव्यान्दोलनों का प्रादुर्भाव होता है। इन काव्यान्दोलनों ने समय-समय पर कविता की संवेदना और संरचना में परिवर्तन और परिवर्द्धन उपस्थित कर दिए हैं। सुखद आश्चर्य की ही बात है कि ‘कवि की मौत’, ‘कविता की मौत’ जैसे वैश्विक नारों और चुनौतियों का सामना करते हुए, अपनी संजीवनी शक्ति के बल पर कविता अब भी सम्‍पूर्ण मानवराशि को तथा प्रकृति और पर्यावरण को बचाए रखने की कोशिश में लगी हुई है। विनष्ट होते अथवा क्षरित होते श्रेष्ठ मानव मूल्यों को बचाने की चिन्‍ता ही समकालीन विविध विमर्शों में मुखरित होती है। तभी मुक्तिबोध की ये पक्तियाँ सार्थक सिद्ध होती हैं–
 
“नहीं होती। कहीं भी ख़त्म कविता नहीं होती
कि वह आवेग त्वरित काल यात्री है…
 
हिन्दी कविता की यात्रा अभी जारी है–वर्तमान सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याओँ से जूझते हुए…मानव हित की चिन्ता करते हुए।

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Description

लोकगीतों से शुरू होकर आदिकाल, भक्तिकाल और रीतिकाल के विभिन्न परिवेशों से गुज़रकर आधुनिक काल तक पहुँच गई हिन्दी कविता अपनी विकास-यात्रा की विविध मंज़‍िलों को तय करके सम्‍प्रति इक्सीसवीं शदी के दूसरे दशक के अन्तिम चरण तक पहुँच चुकी है। इस लम्बी विकास-यात्रा के दौरान हिन्दी कविता स्थल और काल के परिवेश के अनुकूल नूतन प्रवृत्तियों को आत्मसात् कर कई आन्दोलनों से होकर गुज़री है। प्रचलित प्रवृत्तियों से भिन्न प्रवृत्तियाँ जब काव्यक्षेत्र में घर कर लेती हैं तथा कविता उनके अनुकूल परिभाषित होती है तभी तो नए काव्यान्दोलनों का प्रादुर्भाव होता है। इन काव्यान्दोलनों ने समय-समय पर कविता की संवेदना और संरचना में परिवर्तन और परिवर्द्धन उपस्थित कर दिए हैं। सुखद आश्चर्य की ही बात है कि ‘कवि की मौत’, ‘कविता की मौत’ जैसे वैश्विक नारों और चुनौतियों का सामना करते हुए, अपनी संजीवनी शक्ति के बल पर कविता अब भी सम्‍पूर्ण मानवराशि को तथा प्रकृति और पर्यावरण को बचाए रखने की कोशिश में लगी हुई है। विनष्ट होते अथवा क्षरित होते श्रेष्ठ मानव मूल्यों को बचाने की चिन्‍ता ही समकालीन विविध विमर्शों में मुखरित होती है। तभी मुक्तिबोध की ये पक्तियाँ सार्थक सिद्ध होती हैं–
 
“नहीं होती। कहीं भी ख़त्म कविता नहीं होती
कि वह आवेग त्वरित काल यात्री है…
 
हिन्दी कविता की यात्रा अभी जारी है–वर्तमान सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याओँ से जूझते हुए…मानव हित की चिन्ता करते हुए।

About Author

एस. तंकमणि अम्मा

 

जन्म : 18 मार्च, 1950; तिरुवनन्तपुरम।

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (हिन्दी)।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘मलयालम के खंडकाव्य’, ‘आधुनिक हिन्दी खंडकाव्य’, ‘संस्कृति के स्वर’, ‘भारतीय संस्कृति : एक झलक’, ‘सम्‍प्रेषण की हिन्दी’ (मौलिक); ‘मोहन राकेश’, ‘गोत्रयान’, ‘स्वयंवर’, ‘कर्मयोगी’, ‘कठगुलाब’, ‘अन्दर कोई’, ‘बरसी, एक धरती’, ‘एक आसमान’, ‘एक सूरज’, ‘एन. कृष्ण पिल्लै’, ‘करारनामा’, ‘आवाँ’, ‘अग्निसामर से अमृत’, ‘मलयालम की लोकप्रिय कहानियाँ’ आदि (अनूदित)। 300 से ज्‍़यादा आलेख प्रकाशित।

 

पूर्व सदस्य, विद्या परिषद एवं कार्य परिषद, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा। अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिन्दी अकादमी, तिरुवनन्तपुरम।

 

सम्मान : ‘उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान साहित्य पुरस्कार’ (1976); ‘केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय पुरस्कार’ (1990); ‘द्विवागीश पुरस्कार’, भारतीय अनुवाद परिषद, नई दिल्ली (1999); ‘सौहार्द पुरस्कार’, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (2000); ‘विश्व हिन्दी सम्मान’, सातवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन, सूरीनाम, प्रयाग (2012); ‘सूर्या अन्‍तर भारती भाषा सम्मान’ (2015); ‘ओजस्विनी अलंकरण गोपाल’ (2015)।

सन् 1973 से केरल के कॉलेजों में अध्यापन, 1979 से केरल विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यापन, प्रोफ़ेसर अध्यक्ष तथा डीन। 25 शोधार्थी पीएच.डी. उपाधि प्राप्त। 2010 में सेवानिवृत्त। विजिटिंग प्रोफ़ेसर, कालीकट विश्वविद्यालय।

 

 

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