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Hindi Kahaniyon Ki Shilp Vidhi Ka Vikas (HB)
Publisher:
SAHITYA BHAWAN PVT.LTD.
| Author:
Laxmi Narayan Lal
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
SAHITYA BHAWAN PVT.LTD.
Author:
Laxmi Narayan Lal
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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9789389243499
Category Hindi
Category: Hindi
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हिन्दी कहानी साहित्य अन्य साहित्यांगों की अपेक्षा अधिक गतिशील है। मासिक और साप्ताहिक पत्र-पत्रिकाओं के नियमित प्रकाशन ने इस साहित्य के विकास में बहुत अधिक योग दिया है। फलस्वरूप कहानी साहित्य में सर्वाधिक प्रयोग हुए हैं और कहानी किसी निर्झरिणी की गतिशीलता लेकर विविध दिशाओं में प्रवाहित हुई है। इस वेग में मर्यादा रहनी चाहिए। बरसात में किसी नदी के किनारे कमज़ोर हों तो गाँव और नगर में पानी भर जाता है। इसलिए वेग को विस्तार देने की आवश्यकता है। प्रवाह में गम्भीरता आनी चाहिए। मनोरंजन की लहरें उठानेवाला कहानी साहित्य, तट को तोड़कर बहनेवाला साहित्य नहीं है। उसमें जीवन की गहराई है, जीवन का सत्य है। दिग्वधू के घनश्यामल केशराशि में सजा हुआ इन्द्रधनुष बालकों का कुतूहल ही नहीं है, वह प्रकृति का सत्य भी है। कितनी प्रकाश-किरणों ने जीवन की बूँदों से हृदय में प्रवेश कर इस सौन्दर्य-विधि में अपना आत्म-समर्पण किया है। कहानी के इस सत्य को समझने की आवश्यकता है। डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल के इस ग्रन्थ से मैं आशा करता हूँ कि साहित्य-जगत का उत्तरोत्तर हित होगा और विद्वान लेखक का भावी पथ अधिक प्रशस्त बनेगा।
—डॉ. रामकुमार वर्मा
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Description
हिन्दी कहानी साहित्य अन्य साहित्यांगों की अपेक्षा अधिक गतिशील है। मासिक और साप्ताहिक पत्र-पत्रिकाओं के नियमित प्रकाशन ने इस साहित्य के विकास में बहुत अधिक योग दिया है। फलस्वरूप कहानी साहित्य में सर्वाधिक प्रयोग हुए हैं और कहानी किसी निर्झरिणी की गतिशीलता लेकर विविध दिशाओं में प्रवाहित हुई है। इस वेग में मर्यादा रहनी चाहिए। बरसात में किसी नदी के किनारे कमज़ोर हों तो गाँव और नगर में पानी भर जाता है। इसलिए वेग को विस्तार देने की आवश्यकता है। प्रवाह में गम्भीरता आनी चाहिए। मनोरंजन की लहरें उठानेवाला कहानी साहित्य, तट को तोड़कर बहनेवाला साहित्य नहीं है। उसमें जीवन की गहराई है, जीवन का सत्य है। दिग्वधू के घनश्यामल केशराशि में सजा हुआ इन्द्रधनुष बालकों का कुतूहल ही नहीं है, वह प्रकृति का सत्य भी है। कितनी प्रकाश-किरणों ने जीवन की बूँदों से हृदय में प्रवेश कर इस सौन्दर्य-विधि में अपना आत्म-समर्पण किया है। कहानी के इस सत्य को समझने की आवश्यकता है। डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल के इस ग्रन्थ से मैं आशा करता हूँ कि साहित्य-जगत का उत्तरोत्तर हित होगा और विद्वान लेखक का भावी पथ अधिक प्रशस्त बनेगा।
—डॉ. रामकुमार वर्मा
About Author
लक्ष्मीनारायण लाल
जन्म : 4 मार्च, 1927
शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी.।
प्रकाशित कृतियाँ : नाटक—‘अन्धा कुआँ’, ‘मादा कैक्टस’, ‘सुन्दर रस’, ‘सूखा सरोवर’, ‘नाटक तोता मैना’, ‘रातरानीֹ’, ‘दर्पण’, ‘सूर्यमुख’, ‘कलंकी’, ‘मिस्टर अभिमन्यु’, ‘कर्फ़्यू’, ‘दूसरा दरवाज़ा’, ‘अब्दुल्ला दीवाना’, ‘यक्ष प्रश्न’, ‘व्यक्तिगत’, ‘एक सत्य हरिश्चन्द्र’, ‘सगुन पंछी’, ‘सब रंग मोहभंग’, ‘राम की लड़ाई’, ‘पंच पुरुष’, ‘लंका कांड’, ‘गंगा माटी’, ‘नरसिंह कथा’, ‘चन्द्रमा’; एकांकी संग्रह—‘पर्वत के पीछे’, ‘नाटक बहुरूपी’, ‘ताजमहल के आँसू’, ‘मेरे श्रेष्ठ एकांकी’; उपन्यास—‘धरती की आँखें’, ‘बया का घोंसला और साँप’, ‘काले फूल का पौधा’, ‘रूपाजीवा’, ‘बड़ी चम्पा छोटी चम्पा’, ‘मन वृन्दावन’, ‘प्रेम एक अपवित्र नदी’, ‘अपना-अपना राक्षस’, ‘बड़के भैया‘, ‘हरा समन्दर गोपी चन्दर’, ‘वसंत की प्रतीक्षा’, ‘श्रृंगार’, ‘देवीना’, ‘पुरुषोत्तम’।
कहानी-संग्रह—‘आनेवाला कल’, ‘लेडी डॉक्टरֹ’, ‘सूने आँगन रस बरसै’, ‘नए स्वर नई रेखाएँ’, ‘एक और कहानी’, ‘एक बूँद जल’, ‘डाकू आए थे’, ‘मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ’; ‘शोध एवं समीक्षा—हिन्दी कहानियों की शिल्प-विधि का विकास’, ‘आधुनिक हिन्दी कहानी’, ‘रंगमंच और नाटक की भूमिका’, ‘पारसी हिन्दी रंगमंच’, ‘आधुनिक हिन्दी नाटक और रंगमंच’, ‘रंगमंच : देखना और जानना’।
सम्मान : सन् 1977 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा श्रेष्ठ नाटककार के रूप में सम्मानित। सन् 1979 में साहित्य कला परिषद् तथा सन् 1987 में हिन्दी अकादमी द्वारा साहित्यिक योगदान के लिए पुरस्कृत हुए।
निधन : 20 नवम्बर, 1987
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