Shankho Chaudhury -(HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Madan Lal
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Madan Lal
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Hindi
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Hardback

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– शंखो चौधुरी आधुनिक भारतीय कला के एक मूर्धन्य हैं : मूर्तिकार होने के अलावा आधुनिक कलाबोध को सक्रिय-व्यापक करने में उनकी निजी और संस्थापरक भूमिका भी रही है। वे शान्तिनिकेतन, बड़ौदा, ललित कला अकादेमी आदि से जुड़े रहे और उनकी जीवन-कथा भारत में आधुनिक कला के वितान और विस्तार की, उसकी अन्तर्भूत बहुलता, निजी और सार्वजनिक प्रसंगों की रोचक गाथा भी है। जिन कई लोगों ने शंखो दा से प्रेरणा और शिक्षा पाई, उनमें से वरिष्ठ शिल्पकार मदन लाल हैं जिन्होंने बहुत जतन से, अध्यवसाय और कल्पनाशीलता से, एक तरह से गुरु ऋण चुकाने के भाव से, यह पुस्तक तैयार की है। इसमें जो सामग्री एकत्र है वह शंखो दा के अनेक पक्षों का मार्मिक, समझदार और कलात्मक बखान और विश्लेषण करती है। मेरे जानने में हमारे अनेक मूर्धन्य कलाकारों पर ऐसी पुस्तकें कम ही हैं और हिन्दी में शायद यह पहली है।
इस पुस्तक में जीवनी, कला-विश्लेषण, संस्मरण और स्मृतियों का बहुत मानवीय और रोचक गड्डमड्ड है—उसमें कई दृष्टिकोण भी उभरते हैं जो हमें शंखो दा को समझने में कई तरह से मददगार हैं। इस समय व्यापक विस्मृति और दुर्व्‍याख्या का जो दौर चल रहा है, उसमें एक बड़े कलाकार को इस तरह से याद करना उस विस्मृति को प्रतिरोध देना भी है। कला हमेशा जीवन के प्रति कृतज्ञ होती है और कलाकार अपने दिशा दिखानेवाले पुरखों के प्रति। शंखो चौधुरी के प्रति यह पुस्तक कृतज्ञता-ज्ञापन है और वह उसकी प्रासंगिकता को और प्रखर करता है। रज़ा पुस्तक माला में इसे प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।    
—अशोक वाजपेयी

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Description

– शंखो चौधुरी आधुनिक भारतीय कला के एक मूर्धन्य हैं : मूर्तिकार होने के अलावा आधुनिक कलाबोध को सक्रिय-व्यापक करने में उनकी निजी और संस्थापरक भूमिका भी रही है। वे शान्तिनिकेतन, बड़ौदा, ललित कला अकादेमी आदि से जुड़े रहे और उनकी जीवन-कथा भारत में आधुनिक कला के वितान और विस्तार की, उसकी अन्तर्भूत बहुलता, निजी और सार्वजनिक प्रसंगों की रोचक गाथा भी है। जिन कई लोगों ने शंखो दा से प्रेरणा और शिक्षा पाई, उनमें से वरिष्ठ शिल्पकार मदन लाल हैं जिन्होंने बहुत जतन से, अध्यवसाय और कल्पनाशीलता से, एक तरह से गुरु ऋण चुकाने के भाव से, यह पुस्तक तैयार की है। इसमें जो सामग्री एकत्र है वह शंखो दा के अनेक पक्षों का मार्मिक, समझदार और कलात्मक बखान और विश्लेषण करती है। मेरे जानने में हमारे अनेक मूर्धन्य कलाकारों पर ऐसी पुस्तकें कम ही हैं और हिन्दी में शायद यह पहली है।
इस पुस्तक में जीवनी, कला-विश्लेषण, संस्मरण और स्मृतियों का बहुत मानवीय और रोचक गड्डमड्ड है—उसमें कई दृष्टिकोण भी उभरते हैं जो हमें शंखो दा को समझने में कई तरह से मददगार हैं। इस समय व्यापक विस्मृति और दुर्व्‍याख्या का जो दौर चल रहा है, उसमें एक बड़े कलाकार को इस तरह से याद करना उस विस्मृति को प्रतिरोध देना भी है। कला हमेशा जीवन के प्रति कृतज्ञ होती है और कलाकार अपने दिशा दिखानेवाले पुरखों के प्रति। शंखो चौधुरी के प्रति यह पुस्तक कृतज्ञता-ज्ञापन है और वह उसकी प्रासंगिकता को और प्रखर करता है। रज़ा पुस्तक माला में इसे प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।    
—अशोक वाजपेयी

About Author

मदन लाल

जन्म : 5 अप्रैल, 1954; लालगंज, आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश।

शिक्षा : वाराणसी—1973-1978; बड़ौदा—1979-1981; तोक्यो, जापान—1986-1988

प्रदर्शनियाँ : 1975 से 2017 तक वाराणसी, कोलकाता, शान्तिनिकेतन, लखनऊ, बड़ौदा, नई दिल्ली, मुम्बई एवं पुणे के अतिरिक्त जापान के तोक्यो और ओसाका शहरों में 36 एकल प्रदर्शनियाँ आयोजित, अन्तरराष्ट्रीय ख्याति की प्रदर्शनियों व कला शिविरों में व्यापक शिरकत।

सम्मान/पुरस्कार : उत्तर प्रदेश तथा गुजरात कला अकादेमियों द्वारा पुरस्कृत; हमातेन कला प्रदर्शनी, योकोहामा, जापान (1986), ‘सेमी ग्रैंड प्राइज’, कानागावा, योकोहामा, जापान (1987) और ‘द पोलोक केजनर फाउंडेशन ग्रांट’, न्यूयार्क के अतिरिक्त जूनियर (1983-84) एवं सीनियर फ़ेलोशिप, (1995-97) भारत सरकार, नई दिल्ली तथा जापान सरकार द्वारा प्रदान शोधवृत्ति, तामा आर्ट-यूनिवर्सिटी, जापान (1985-1988) सम्मिलित, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय ‘कालिदास सम्मान’ के लिए जुरी सदस्य (2001-2003)।

विश्व के अनेक प्रतिष्ठित कला संस्थानों एवं संग्रहालयों में कृतियाँ संगृहीत।

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