Purnmidam-(HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Saroj Kaushik
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Radhakrishna Prakashan
Author:
Saroj Kaushik
Language:
Hindi
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Hardback

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ऋचा, ऋचा थी—अतुलनीय, अनिंद्य, उसका हृदय एक छलछलाता हुआ प्रवाह था—प्रेम और निष्ठा के पारदर्शी जल से लबालब। उसकी आत्मा जैसी सहजता, वैसी पवित्रता को आजीवन बनाए रखना सरल नहीं। न वैसा आवेग, न वैसी अकुंठ तत्परता और न दूसरों के प्रति ऐसा नि:संकोच स्वीकार जीवन जीते हुए अक्षुण्ण रखना सम्भव है। जीवन की यात्रा में अक्सर मन और जीवन के पैर मैले हो ही जाते हैं, लेकिन ऋचा के नहीं। और वीरेश्वर जैसे उसी के लिए बना हुआ, उतना ही दृढ़, उसी अनुपात में स्वाभिमानी और ईमानदार। मन और वचन के संकल्पों को लेकर उतना ही गम्भीर और भरोसेमन्द। ऋचा और वीरेश्वर की यह कहानी स्त्री-जीवन के साथ-साथ स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के बारे में एक नई दृष्टि देती है। स्त्री यहाँ पूर्णत: एक जिजीविषा का स्वरूप ग्रहण कर लेती है जो अपने आत्म की खोज-यात्रा में जीवन और मूल्यों के नए-नए सोपान चढ़ती चली जाती है। ब्राह्मण होते हुए वह दलित युवक वीरेश्वर से प्रेम करती है और पूरा जीवन उस प्रेम को अपनी आस्था का अवलम्बन बनाए रखती है और स्वयं भी उसके लिए एक स्तम्भ बनी रहती है। इसी रिश्ते से जन्मी उनकी बेटी प्रज्ञा पुन: समाज की रूढ़ियों और स्वयं उनके लिए एक मानक बनकर सामने आती है। नए मूल्यों की स्थापना करता सहज भाषा और शिल्प में अत्यन्त पठनीय उपन्यास।

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Description

ऋचा, ऋचा थी—अतुलनीय, अनिंद्य, उसका हृदय एक छलछलाता हुआ प्रवाह था—प्रेम और निष्ठा के पारदर्शी जल से लबालब। उसकी आत्मा जैसी सहजता, वैसी पवित्रता को आजीवन बनाए रखना सरल नहीं। न वैसा आवेग, न वैसी अकुंठ तत्परता और न दूसरों के प्रति ऐसा नि:संकोच स्वीकार जीवन जीते हुए अक्षुण्ण रखना सम्भव है। जीवन की यात्रा में अक्सर मन और जीवन के पैर मैले हो ही जाते हैं, लेकिन ऋचा के नहीं। और वीरेश्वर जैसे उसी के लिए बना हुआ, उतना ही दृढ़, उसी अनुपात में स्वाभिमानी और ईमानदार। मन और वचन के संकल्पों को लेकर उतना ही गम्भीर और भरोसेमन्द। ऋचा और वीरेश्वर की यह कहानी स्त्री-जीवन के साथ-साथ स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के बारे में एक नई दृष्टि देती है। स्त्री यहाँ पूर्णत: एक जिजीविषा का स्वरूप ग्रहण कर लेती है जो अपने आत्म की खोज-यात्रा में जीवन और मूल्यों के नए-नए सोपान चढ़ती चली जाती है। ब्राह्मण होते हुए वह दलित युवक वीरेश्वर से प्रेम करती है और पूरा जीवन उस प्रेम को अपनी आस्था का अवलम्बन बनाए रखती है और स्वयं भी उसके लिए एक स्तम्भ बनी रहती है। इसी रिश्ते से जन्मी उनकी बेटी प्रज्ञा पुन: समाज की रूढ़ियों और स्वयं उनके लिए एक मानक बनकर सामने आती है। नए मूल्यों की स्थापना करता सहज भाषा और शिल्प में अत्यन्त पठनीय उपन्यास।

About Author

जीलानी बानो

जन्म : 1936; बदायूँ (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए. (उर्दू)।

इनकी कहानियों और उपन्यासों से आज के समय के बदलते जीवन-मूल्यों और समाज में औरत की हैसियत का एहसास होता है। जीलानी बानो अपनी धरती और दुनिया को ही अपनी कहानियों का मज़मून बनाती हैं।

हैदराबाद की तहज़ीबी ज़िन्दगी पर उनका पहला उर्दू उपन्यास ‘ऐवान ग़ज़ल’ काफ़ी चर्चित हुआ। अब तक हिन्दी और गुजराती में इसका अनुवाद हो चुका है। नेशनल बुक ट्रस्ट की योजना इसे हिन्दुस्तान की चौदह भाषाओं में प्रकाशित करने की है। इनके एक अन्य उपन्यास का नाम है—‘बारिश-ए-संग’। इसका हिन्दी अनुवाद ‘पत्थरों की बारिश’ नाम से छपा। इसके अतिरिक्त नौ कहानी-संग्रह प्रकाशित।

इनकी कई कहानियों का अनुवाद विभिन्न देशी और विदेशी भाषाओं में हो चुका है। इन्होंने रेडियो और टी.वी. के लिए कई नाटक लिखे।

सम्मान : ‘ग़ालिब एवार्ड’ (1978), ‘सोवियत लैंड नेहरू एवार्ड’ (1985), ‘महाराष्ट्र उर्दू एकेडमी एवार्ड’ (1988), ‘हरियाणा उर्दू एकेडमी एवार्ड’ (1989), ‘पाकिस्तान का नुकुश एवार्ड’ (1991)। इनके अतिरिक्त कई अन्य पुरस्कार।

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