Meri Yatrayen-(HB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
RAMDHARI SINGH DIWAKAR
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Lokbharti
Author:
RAMDHARI SINGH DIWAKAR
Language:
Hindi
Format:
Hardback

556

Save: 20%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Weight 0.35 g
Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789389243178 Category
Category:
Page Extent:

इस पुस्तक में पोलैंड, जर्मनी, चीन, मॉरिशस, कीनिया आदि देशों की यात्राओं का रोचक वर्णन है। दिनकर जी ने अपनी इन यात्राओं को जिस तरह रचनात्मक संवाद का विषय बनाया है, वह अपने प्रभाव में विलक्षण है। पुस्तक का हर अध्याय एक आत्मीयता के साथ सहज ही अपने बहाव में लिए चला जाता है। पोलैंड का वारसा नगर, जहाँ हिटलर के राज्यकाल में नाजियों द्वारा लाखों बेगुनाह मारे गए थे, वह अपने बदले समय में किस तरह राजनीतिक स्वतंत्रता, साहित्यिक-सांस्कृतिक उर्वरता का प्रतीक है; साथ ही अपने साम्यवादी देश की अर्थ-व्यवस्था के लिए आम नागरिकों में भी किस तरह की संघर्ष-चेतना है; दिनकर जी ने तटस्थ होकर आकलन प्रस्तुत किया है। ऐसा वे चीन की यात्रा के दौरान भी करते हैं। वहाँ भी उन्होंने एक साम्यवादी देश के समाज, साहित्य, राजनीति के साथ रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल आदि को बहुत ही क़रीब से देखने-समझने की कोशिश की है और अन्तर्विरोधों के प्रति अपने बेबाक मंतव्यों से परिचय कराया है। इसी तरह जर्मनी, लंदन, कीनिया जैसे देशों के वर्तमान और अतीत का जो वृत्तान्त है, वह अपने वैज्ञानिक और दार्शनिक बोध में आज भी बेहद महत्त्वपूर्ण है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों से गए लोगों का अपने मूल और मूल्यों के प्रति श्रद्धा और आस्था किस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी हुई है, उसका गहन अन्वेषण दिनकर जी अपनी मारीशस यात्रा के दौरान करते हैं। कुल मिलाकर ‘मेरी यात्राएँ’ पुस्तक एक ऐसी थाती है जिसके ज़रिए बीसवीं सदी में कई देशों के उस यथार्थ से अवगत होते हैं, उन देशों के विकास में जिसकी निर्णायक भूमिका रही।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Meri Yatrayen-(HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

इस पुस्तक में पोलैंड, जर्मनी, चीन, मॉरिशस, कीनिया आदि देशों की यात्राओं का रोचक वर्णन है। दिनकर जी ने अपनी इन यात्राओं को जिस तरह रचनात्मक संवाद का विषय बनाया है, वह अपने प्रभाव में विलक्षण है। पुस्तक का हर अध्याय एक आत्मीयता के साथ सहज ही अपने बहाव में लिए चला जाता है। पोलैंड का वारसा नगर, जहाँ हिटलर के राज्यकाल में नाजियों द्वारा लाखों बेगुनाह मारे गए थे, वह अपने बदले समय में किस तरह राजनीतिक स्वतंत्रता, साहित्यिक-सांस्कृतिक उर्वरता का प्रतीक है; साथ ही अपने साम्यवादी देश की अर्थ-व्यवस्था के लिए आम नागरिकों में भी किस तरह की संघर्ष-चेतना है; दिनकर जी ने तटस्थ होकर आकलन प्रस्तुत किया है। ऐसा वे चीन की यात्रा के दौरान भी करते हैं। वहाँ भी उन्होंने एक साम्यवादी देश के समाज, साहित्य, राजनीति के साथ रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल आदि को बहुत ही क़रीब से देखने-समझने की कोशिश की है और अन्तर्विरोधों के प्रति अपने बेबाक मंतव्यों से परिचय कराया है। इसी तरह जर्मनी, लंदन, कीनिया जैसे देशों के वर्तमान और अतीत का जो वृत्तान्त है, वह अपने वैज्ञानिक और दार्शनिक बोध में आज भी बेहद महत्त्वपूर्ण है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों से गए लोगों का अपने मूल और मूल्यों के प्रति श्रद्धा और आस्था किस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी हुई है, उसका गहन अन्वेषण दिनकर जी अपनी मारीशस यात्रा के दौरान करते हैं। कुल मिलाकर ‘मेरी यात्राएँ’ पुस्तक एक ऐसी थाती है जिसके ज़रिए बीसवीं सदी में कई देशों के उस यथार्थ से अवगत होते हैं, उन देशों के विकास में जिसकी निर्णायक भूमिका रही।

About Author

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

जन्म : 23 सितम्बर, 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था। शिक्षा मोकामा घाट तथा फिर पटना में हुई, जहाँ से उन्होंने इतिहास विषय लेकर बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, सब-रजिस्ट्रार, जन-सम्पर्क के उप निदेशक, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार आदि विभिन्न पदों पर रहकर उन्होंने अपनी प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया। 1924 में पाक्षिक ‘छात्र सहोदर’ (जबलपुर) में प्रकाशित कविता से साहित्यिक जीवन का आरम्भ।

प्रमुख कृतियाँ : कविता–रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, बापू, धूप और धुआँ, रश्मिरथी, नील कुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, हारे को हरिनाम आदि। गद्य–मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, काव्य की भूमिका, पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरण, शुद्ध कविता  की  खोज, संस्मरण  और श्रद्धांजलियाँ आदि।

सम्मान : 1959 में संस्कृति के चार अध्याय के
लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय की तरफ से डॉक्टर ऑफ लिटरेचर  
की मानद उपाधि। 1973 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार। भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्‍मानित।
निधन : 24 अप्रैल, 1974

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Meri Yatrayen-(HB)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED