Masoom
Publisher:
| Author:
| Language:
| Format:
Publisher:
Author:
Language:
Format:
₹395 ₹316
Save: 20%
In stock
Ships within:
In stock
Weight | 270 g |
---|---|
Book Type |
ISBN:
Page Extent:
मासूम साहित्य में मंज़रनामा एक मुकम्मिल फॉर्म है । यह एक ऐसी वि/ाा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें । लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े–बयान अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इन्टरप्रेटेशन हो जाता है । मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फॉर्म से रू–ब–रू हो सकें और दूसरा यह कि टी–वी– और सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले लोग यह देख–जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है । टी–वी– की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इजाप़़ा हो गया है । ‘मासूम’ गुलज़ार की बेहद लोकप्रिय पि़़ल्मों में रही है । यह इसी पि़़ल्म का मंज़रनामा है । गुलज़ार का ही लिखा हुआ इस पि़़ल्म का एक गाना ‘लकड़ी की काठी–––’ आज भी बच्चों की जुबान पर रहता है । पिता के नाम को तरसते एक मासूम बच्चे के इर्द–गिर्द बुनी हुई यह अत्यन्त संवेदनशील और भावप्रवण पि़़ल्म मूलत% रिश्तों के बदलते हुए ‘फ्रेम्स’ की कहानी है । एक तरप़़ रिश्तों का एक परिभाषित व मान्य रूप है और दूसरी तरप़़ वह रूप, जिसे सामान्यत% समाज का समर्थन नहीं होता । लेकिन अन्तत%, लम्बे तनाव के बाद जीत मानवीय संवेदना और प्रेम की ही होती है । यही इस पि़़ल्म का मंतव्य है । निश्चय ही यह कृति पाठकों को औपन्यासिक रचना का आस्वाद प्रदान करेगी ।
मासूम साहित्य में मंज़रनामा एक मुकम्मिल फॉर्म है । यह एक ऐसी वि/ाा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें । लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े–बयान अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इन्टरप्रेटेशन हो जाता है । मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फॉर्म से रू–ब–रू हो सकें और दूसरा यह कि टी–वी– और सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले लोग यह देख–जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है । टी–वी– की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इजाप़़ा हो गया है । ‘मासूम’ गुलज़ार की बेहद लोकप्रिय पि़़ल्मों में रही है । यह इसी पि़़ल्म का मंज़रनामा है । गुलज़ार का ही लिखा हुआ इस पि़़ल्म का एक गाना ‘लकड़ी की काठी–––’ आज भी बच्चों की जुबान पर रहता है । पिता के नाम को तरसते एक मासूम बच्चे के इर्द–गिर्द बुनी हुई यह अत्यन्त संवेदनशील और भावप्रवण पि़़ल्म मूलत% रिश्तों के बदलते हुए ‘फ्रेम्स’ की कहानी है । एक तरप़़ रिश्तों का एक परिभाषित व मान्य रूप है और दूसरी तरप़़ वह रूप, जिसे सामान्यत% समाज का समर्थन नहीं होता । लेकिन अन्तत%, लम्बे तनाव के बाद जीत मानवीय संवेदना और प्रेम की ही होती है । यही इस पि़़ल्म का मंतव्य है । निश्चय ही यह कृति पाठकों को औपन्यासिक रचना का आस्वाद प्रदान करेगी ।
About Author
गुलज़ार
गुलज़ार एक मशहूर शायर हैं जो फ़िल्में बनाते हैं। गुलज़ार एक अप्रतिम फ़िल्मकार हैं जो कविताएँ लिखते हैं।
बिमल राय के सहायक निर्देशक के रूप में शुरू हुए। फ़िल्मों की दुनिया में उनकी कविताई इस तरह चली कि हर कोई गुनगुना उठा। एक 'गुलज़ार-टाइप' बन गया। अनूठे संवाद, अविस्मरणीय पटकथाएँ, आसपास की ज़िन्दगी के लम्हे उठाती मुग्धकारी फ़िल्में। ‘परिचय’, ‘आँधी’, ‘मौसम’, ‘किनारा’, ‘ख़ुशबू’, ‘नमकीन’, ‘अंगूर’, ‘इजाज़त’—हर एक अपने में अलग।
1934 में दीना (अब पाकिस्तान) में जन्मे गुलज़ार ने रिश्ते और राजनीति—दोनों की बराबर परख की। उन्होंने ‘माचिस’ और ‘हू-तू-तू’ बनाई, ‘सत्या’ के लिए लिखा—'गोली मार भेजे में, भेजा शोर करता है...।‘
कई किताबें लिखीं। ‘चौरस रात’ और ‘रावी पार’ में कहानियाँ हैं तो ‘गीली मिट्टी’ एक उपन्यास। 'कुछ नज़्में’, ‘साइलेंसेस’, ‘पुखराज’, ‘चाँद पुखराज का’, ‘ऑटम मून’, ‘त्रिवेणी’ वग़ैरह में कविताएँ हैं। बच्चों के मामले में बेहद गम्भीर। बहुलोकप्रिय गीतों के अलावा ढेरों प्यारी-प्यारी किताबें लिखीं जिनमें कई खंडों वाली ‘बोसकी का पंचतंत्र’ भी है। ‘मेरा कुछ सामान’ फ़िल्मी गीतों का पहला संग्रह था, ‘छैयाँ-छैयाँ’ दूसरा। और किताबें हैं : ‘मीरा’, ‘ख़ुशबू’, ‘आँधी’ और अन्य कई फ़िल्मों की पटकथाएँ। 'सनसेट प्वॉइंट', 'विसाल', 'वादा', 'बूढ़े पहाड़ों पर' या 'मरासिम' जैसे अल्बम हैं तो 'फिज़ा' और 'फ़िलहाल' भी। यह विकास-यात्रा का नया चरण है।
बाक़ी कामों के साथ-साथ 'मिर्ज़ा ग़ालिब' जैसा प्रामाणिक टी.वी. सीरियल बनाया। ‘ऑस्कर अवार्ड’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ सहित कई अलंकरण पाए। सफ़र इसी तरह जारी है। फ़िल्में भी हैं और 'पाजी नज़्मों' का मजमुआ भी आकार ले रहा है।
Reviews
There are no reviews yet.
Reviews
There are no reviews yet.